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बिहार : गाड़ियों के शोर में गुम हो गये शहर के साइलेंट जोन, पाबंद क्षेत्रों में तय डेसिबल से अधिक शोर
पटना : राजधानी से साइलेंट जोन गायब हैं. जिन इलाकों को साइलेंट जोन घोषित किये जाते हैं, वहां भी कर्कश शोर सुनने को मिल जाता है. अस्पताल हों या शैक्षणिक क्षेत्र, हर तरफ वाहनों का शोर पसरा रहता है. साइलेंट जोन में डिस्प्ले तक नहीं लगे हैं. इस दिशा में स्थानीय प्रशासन ने औपचारिक पहल […]
पटना : राजधानी से साइलेंट जोन गायब हैं. जिन इलाकों को साइलेंट जोन घोषित किये जाते हैं, वहां भी कर्कश शोर सुनने को मिल जाता है. अस्पताल हों या शैक्षणिक क्षेत्र, हर तरफ वाहनों का शोर पसरा रहता है. साइलेंट जोन में डिस्प्ले तक नहीं लगे हैं. इस दिशा में स्थानीय प्रशासन ने औपचारिक पहल भी नहीं की है.
फिलहाल जब प्रभात खबर ने साइलेंट जोन घोषित इलाकों में पड़ताल की तो पता चला कि यहां पर ध्वनि प्रदूषण मानक 40-50 डेसीबल से डेढ़ से दो गुणा अधिक है.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक साइलेंस जोन में 40 से 50 डेसिबल (डीबी) ध्वनि को सामान्य माना जाता है, लेकिन साइलेंट जोन वाले जगहों पर यह 90 तक पाया गया है. इन इलाकों में पीएमसीएच, अशोक राजपथ, आईजीआईएमएस आदि स्थान हैं. इनकम टैक्स गोलंबर से लेकर नया सचिवालय के इलाके में भी मानक से अधिक ध्वनि प्रदूषण पाया गया. साइलेंट जोन मेें अस्पताल, स्कूल, वृद्धाश्रम, मानसिक आरोग्यशाला, सरकारी विभागों के कार्यलय और कोर्ट आदि से गुजरने वाली सड़कें शामिल होती हैं.
बिहार पॉल्यूशन बोर्ड कर रहा है आंकड़ों का संग्रह
बिहार स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से पीएमसीएच, बेल्ट्रॉन भवन के पास, इंडस्ट्रियल एरिया में कोका कोला के पास, तारामंडल परिसर, आईजीआईएमएस परिसर में ध्वनि प्रदूषण को नापने वाले यंत्र लगे हैं जिससे धव्नि-स्तर मापा जाता है. तारामंडल के पास इसी सप्ताह ध्वनि प्रदूषण 80 डेसिबल से ऊपर रिकाॅर्ड किया गया है. वहीं पीएमसीएच और आईजीआईएमएस में 100 डेसिबल तक का डाटा सामने आया है. साइलेंस जोन में दिन में 50 तो रात में 40 डेसिबल ध्वनि का स्तर होना चाहिए जो पार हो रहा है.
ध्वनि प्रदूषण की मानक स्थिति?
कैटेगरी एरिया दिन रात स्थिति
ए इंडस्ट्रियल 75 70 100-125
बी कॉमर्शियल 65 55 70-90
सी रेसीडेंशियल 55 45 60-90
डी साइलेंस 50 40 60-90
नोट-डेसिबल में सभी आंकड़े प्रदूषण नियंत्रण
बोर्ड और एक निजी एजेंसी के अनुसार
– पेड़ कम करते हैं प्रदूषण स्तर लेकिन लगातार काटे जा रहे: तरुमित्र के फादर राबर्ट बताते हैं कि राजधानी में ध्वनि प्रदूषण की बहुत एलार्मिंग स्थिति है. प्रेशर हॉर्न पर बैन है पर बजते सुन सकते हैं. धड़ल्ले से पेड़ काटे जा रहे हैं. इससे ध्वनि प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है. पेड़ों की पत्तियां ध्वनि को एब्जॉर्ब कर लेती हैं, इसलिए पेड़ नहीं रहने से ध्वनि का असर शरीर पर पड़ता है.
नुकसान?
पर्यावरणविदों के मुताबिक 80 डीबी या इससे अधिक आवाज शारीरिक दर्द का कारण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. ध्वनि प्रदूषण पर अध्ययन करने वाले पर्यावरण कर्मी फैयाज इकबाल कहते हैं कि उच्च स्तर का ध्वनि प्रदूषण सबसे ज्यादा चिड़चिड़ापन लाता है, विशेष रूप से रोगियों, वृद्धों और गर्भवती महिलाओं के व्यवहार में बदलाव लाता है. बेवजह शोर मनुष्यों के साथ जानवरों और पेड़ पौधों के भी जीवन को प्रभावित करता है.
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