पटना: राज्य के 28 जिले बाढ़ग्रस्त हैं. इनमें से 15 जिले बाढ़ की चपेट में अधिक आया करते हैं. जबकि, इसके ठीक उलट राज्य के 17 जिले सूखा की चपेट में रहते हैं. इनमें 11 जिलों में सूखे का सर्वाधिक असर होता है. इस परिस्थिति में बिहार में जल प्रबंधन का खासा महत्व है. ये बातें अपने अध्यक्षीय भाषण में एएन सिन्हा अध्ययन एवं शोध संस्थान के अध्यक्ष सह पूर्व राज्यपाल डीएन सहाय ने कहीं. उन्होंने कहा कि कृषि प्रधान राज्य में जल प्रबंधन की अधिक अहमियत है. इसके लिए ठोस प्रबंध नीति होनी चाहिए. बिहार में भी इस तरह का प्रयोग किया जा सकता है.
राज्य सरकार भी चिंतित
योजना एवं विकास विभाग के प्रधान सचिव विजय प्रकाश ने कहा कि राज्य में 53 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता में मात्र 29 लाख हेक्टेयर ही सृजित हो सकी है. इनमें से भी 17 लाख हेक्टेयर में ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो पाती है. जल प्रबंधन राज्य सरकार की भी चिंता है. इसके लिए समेकित पहल व नीति बनाने की आवश्यकता है. गांव, क्षेत्र, राज्य, देश व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पष्ट नीति बने. समस्या पानी नहीं, बल्कि इसका भंडारण है. वाटर होल्डिंग कैपिसिटी पर काम करना होगा. आहर-पइन को संरक्षित करना होगा. उत्तर बिहार के साथ ही दक्षिण बिहार के लिए भी नीति बनानी होगी. लेकिन, हमें यह ध्यान रखना होगा कि जो भी तकनीक हम अपनाएं, वह 20-25 साल में आउटडेटेड न हो. बांध बने, पर गाद निकासी की व्यवस्था नहीं होने के कारण समस्या कायम है.
एएनएसआइएसएस के प्रो नीलरतन ने कहा कि बिहार में पानी की कमी नहीं है. सही जल प्रबंधन से सुखाड़ वाले इलाकों में पर्याप्त पानी पहुंचाया जा सकता है.
बांध से बढ़ी जलजमाव की समस्या
संस्थान के निदेशक डीएम दिवाकर ने कहा कि मानव सभ्यता की शुरुआत जल से जुड़ी है. जल जीवन का प्रतीक है, इसे हमलोगों ने संकट में बदल दिया. यह कैसे हुआ, समझने की जरूरत है. समाज ने जो विकास किया, उससे जल से तारतम्य बैठा कर रखने में सफल नहीं हुआ. जीवन व जनता से जोड़ कर विज्ञान को रखेंगे, तभी सही मायने में विकास होगा. जो भी बांध बने उससे जलजमाव की समस्या भी बढ़ती गयी.
यह कैसा हुआ, इस पर भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है. बिहार में नहरें जहां से गुजरीं, वह प्रभुत्ववाले लोगों ने तय किया. इस पर तकनीकी पहलू को नजरअंदाज किया गया. सड़कों के किनारे जो भी तालाब थे, आज वहां मकान बन गये. ये मकान भी प्रभुत्ववाले लोगों के हैं. राज्य में 96 फीसदी छोटे व सीमांत किसान हैं. इनकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जल प्रबंधन होना चाहिए. पूर्व आइपीएस अधिकारी रामचंद्र खान ने विज्ञान के माध्यम से हो रहे विकास से आम आदमी को जोड़ने की वकालत की.
चीन की शोक नदी से लें सीख
सेमिनार का विषय प्रवेश कराते हुए प्रभात खबर के कॉरपोरेट एडिटर राजेंद्र तिवारी ने कहा कि राज्य का दो-तिहाई इलाका बाढ़ग्रस्त रहता है. ऐसा हर साल होता है, लेकिन इसका समाधान नहीं निकल सका है. हमारी कोशिश है कि हम बिना किसी आरोप-प्रत्यारोप के जल प्रबंधन पर आम सहमति बनाएं. चीन में शोक की नदी कही जानेवाली अब लाभकारी हो गयी है. चीन ने साबित किया है कि कैसे अभिशाप को वरदान में बदला जा सकता है. बिहार में यह कैसे होगा, इस पर मंथन करने के लिए ही प्रभात खबर ने यह पहल की है. इससे पहले हम आबादी व शिक्षा पर सेमिनार आयोजित कर चुके हैं.
सेमिनार का संचालन प्रभात खबर के संपादक (बिहार) स्वयं प्रकाश व धन्यवाद ज्ञापन ब्यूरो चीफ मिथिलेश ने किया. मौके पर सूर्यस्थली हृयूमन वेलफेयर सोसायटी के सचिव डॉ संजीव कुमार, एएनएसआइएसएस के रिसर्च अफसर डॉ नंदजी सिंह, कॉफ्फेड के निदेशक छोटे सहनी, सेंटर फॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के राहुल सिंह, राष्ट्रीय विकल्प पार्टी के डॉ अरविंद कुमार, स्ट्रैस मैनेजमेंट के मिलन कुमार सिन्हा, सामाजिक कार्यकर्ता सुमन कुमार मल्लिक, प्रत्युष नंदन, कुमार विजय, चक्रपाणि हिमांशु, समाचार वाचिका प्रीति श्रीवास्तव, रेडिएंस मीडिया के अजीत कुमार, पटना हाइकोर्ट के अधिवक्ता मिथिलेश सिंह, शंकर प्रसाद सिंह, मनीष आदि मौजूद थे.