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दहेज पर नकेल : बेटियों को समान अवसर मिले तो भायेगी बिना दहेज हर दुल्हन

दहेजमुक्त शादियों के लिए राज्य सरकार ने शुरू किया है महत्वाकांक्षी अभियान लेकिन अभी तय करना होगा लंबा सफर पटना : देवोत्त्थान एकादशी के साथ ही शादी-ब्याह के शुभ मुहूर्त शुरू हो गये हैं. अब से लेकर 14 दिसंबर तक होने वाली ढेरों शादियों की तैयारियां भी शुरू हो गयी हैं. विवाह के लिए बैंड-बाजा, […]

दहेजमुक्त शादियों के लिए राज्य सरकार ने शुरू किया है महत्वाकांक्षी अभियान लेकिन अभी तय करना होगा लंबा सफर
पटना : देवोत्त्थान एकादशी के साथ ही शादी-ब्याह के शुभ मुहूर्त शुरू हो गये हैं. अब से लेकर 14 दिसंबर तक होने वाली ढेरों शादियों की तैयारियां भी शुरू हो गयी हैं.
विवाह के लिए बैंड-बाजा, कम्यूनिटी हॉल, टेंट-समियाना और तमाम ताम-झाम के साथ वर पक्ष को दी जाने वाली दहेज की व्यवस्था शिद्दत से की जा रही है. इन तैयारियों पर उस वक्त पानी फिर जाता है, जब हमारी लाडो दहेज के लिए प्रताड़ित की जाती है या फिर उन्हें दहेज की भेंट चढ़ा दिया जाता है.
जी हां, बीते दो अक्तूबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दहेज प्रथा के खिलाफ अभियान शुरू कर बेटियों की सुरक्षा का जिम्मा लिया है, पर आंकड़े इसका भयावह रूप पेश कर रही हैं. ऐसे में इस अभियान को सफल बनाने में सरकार को लंबी दूरी तय करनी होगी.
हत्या के 1154 और प्रताड़ना के 1867 मामले : एनसीआरबी 2015 के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में दहेज हत्या के 1154 मामले और 1867 मामले दहेज प्रताड़ना के दर्ज हैं. पांच जिले ऐसे हैं, जहां दहेज प्रताड़ना और हत्या के मामले सौ से भी अधिक हैं.
इनमें पटना जिले का पहला स्थान है. दूसरे नबंर पर मुजफ्फरपुर और तीसरा स्थान पश्चिम चंपारण का है. इन जिलों में आंकड़ा सौ के पार है. महिला हेल्पलाइन में दर्ज मामलों को देखें तो बीते छह साल में दहेज प्रताड़ना के 5738 मामले दर्ज किये गये हैं. इनमें 4284 मामलों का निष्पादन काउंसेलिंग के जरिये किया गया है.
दहेज प्रताड़ना के टॉप फाइव जिलों में पटना अव्वल, मुजफ्फरपुर दूसरे स्थान पर
टूट जाती हैं शादियां जला दी जाती हैं बेटियां
सामाजिक कार्यकर्ता मंजु डुंगडुंग बताती हैं कि गांवों में कई बेटियों की शादी मंडप में ही टूट जाती हैं. क्योंकि लड़की के पिता लड़के वालों की कभी मोटरसाइकिल, तो कभी मोटी चेन की फरमाइश पूरी नहीं कर पाते. ऐसे में वर पक्ष बरात लौटा कर उलटे पैर वापस चले जाते हैं.
जबकि शादी तय होने तक उनकी कई शर्तें पूरी कर दी जाती हैं. बावजूद इसके ससुराल में दुल्हन बनी बेटियां बिना दहेज की स्वीकार नहीं की जाती हैं. मंजु बताती हैं कि कई बेटियों को उन्होंने दहेज की आग में झुलसते देखा है.
दहेज प्रथा को लेकर राज्य सरकार के पास कोई फैक्ट डाटा फिगर नहीं है. थानों में दर्ज शिकायतों के आधार पर काम किया जा रहा है. समाज से इस कुप्रथा को समाप्त करना हम सब की जिम्मेदारी है.
आनंद माधव, कार्यक्रम प्रमुख, जेंडर रिसोर्स सेंटर
बना स्टेटस सिंबल
समाजशास्त्री डॉ रेणु रंजन बताती हैं कि दहेज सदियों से स्टेटस सिंबल बना हुआ है. लेकिन अब इन वर्जनाअों को पढ़े-लिखे तबकों द्वारा मिटाने का प्रयास भी किया जा रहा है. बुद्धिजीवी वर्ग में जहां बराबरी की बात आती है, वहां दहेज की मांग कम देखने काे मिलती है. पर मध्यवर्गीय परिवारों में जहां लोग जमीन और खेती-बारी से जुड़े हुए हैं, वहां अब भी दहेज की मांग बेधड़क की जा रही है. मध्य वर्ग बेटियों की शादी अच्छे वर से और ऊंचे खानदान में करना पसंद करता है, पर बेटियों की शिक्षा पर खर्च नहीं करना चाहता.
इससे वर और वधू पक्ष में असमानता की स्थिति बन जाती है, जिससे वहां दहेज अधिक प्रचलित है. कुछ ऐसे समुदाय, जहां शिक्षा का घोर अभाव है जैसे महादलित टोलों में भी दहेज की मांग है. ऐसे में जब तक लोग बेटियों को शिक्षित नहीं करेंगे, इस अभिशाप से मुक्ति नहीं मिलेगी. समाज को दहेज प्रथा की इस बुराई को समाप्त करने के लिए लड़का और लड़की को समान अवसर प्रदान करना होगा.
दहेज लिया तो जायेंगे जेल
इस लग्न में होने वाली शादियों में दहेज के नाम पर किसी प्रकार का कोई लेनदेन न हो. इसके लिए अब महिला विकास निगम भी कमर कस चुका है.
सभी जिलों में काम कर रही स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं अब शादी वाले घरों में जायेंगी और उन्हें बिना दहेज की शादी करने को प्रेरित करेंगी. दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने वाली ये महिलाएं लोगों को बतायेंगी कि शादी की तैयारी के साथ ही शपथपत्र देना भी जरूरी है. दहेज लेने पर जेल जाना होगा. सभी प्रखंडों और ग्राम पंचायतों में शपथ पत्र भेजने संबंधी निर्देश दिया गया है.

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