पटना : लालू प्रसाद और नीतीश कुमार का संबंध बड़े भाई-छोटे भाई का रहा है. सार्वजनिक मंचों पर भी दोनों नेता कभी एक-दूसरे के करीब रहे तो कभी दूर. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब दोनों राजनीतिक भाइयों की दूरी बढ़ी है. खटास उत्पन्न हुई है. बिहार की सियासत की धूरी बने इन दोनों राजनीतिक भाइयों के बीच इससे पहले भी कई दफा दूरी बढ़ चुकी है.
वर्ष 1994 में पहली बार नीतीश कुमार समाजवादी आंदोलन के प्रमुख रहे जॉर्ज फर्नांडिस के साथ जनता दल से होकर समता पार्टी गठित की थी. लालू प्रसाद यादव अपनी ही जाति के शरद यादव को जनता दल का अध्यक्ष बनाना चाहते थे. दस समय लालू प्रसाद द्वारा शरद यादव को अध्यक्ष पद के लिए समर्थन दिये जाने के कारण नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से दूरी बढ़ा ली थी.
दूसरी बार दूरी तब बढ़ी जब नीतीश कुमार बिहार की राजनीति छोड़ कर केंद्र की राजनीति करने लगे. वर्ष 2001 में नीतीश कुमार ने जब रेल मंत्री का जब प्रभार ग्रहण किया, वह सार्वजनिक क्षेत्र के इस विशाल उपक्रम में बड़े सुधार लाने के लिए प्रयासरत रहे. इस दौरान वह सत्ता के गलियारों में अपने राजनीतिक और प्रशासनिक कौशल को मांजने में तल्लीन रहे और लालू प्रसाद से उनकी दूरी बढ़ती गयी.
अब तीसरी बार, बेनामी संपत्ति मामले को लेकर सूबे के डिप्टी सीएम व राजद नेता तेजस्वी यादव के इस्तीफे की मांग से मचे बिहार में सियासी घमसान के बीच एक बार फिर जदयू और राजद के बीच तल्खी बढ़ी है. एक ओर जहां नीतीश कुमार नैतिकता की दुहाई देते हुए अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंपा है, वहीं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के तेवर उखड़ नजर आ रहे हैं. उन्होंने नीतीश कुमार पर सीधा निशाना साधते हुए कई संगीन आरोप लगाये हैं. दोनों नेताओं के बीच उपजा विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है. अब वे एक बार फिर एक-दूसरे पर निशाना साधते नजर आ रहे हैं.