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कभी इन कुओं के नाम से मशहूर थे मोहल्ले
सूखा पड़ा तो केरल में 115 साल पुराने कुएं को किया गया चालू, पर पटना में बदहाल हैं कई कुएं अनिकेत त्रिवेदी पटना : कहावत है कि जब प्यास लगी हो तो कुआं नहीं खोदा जाता. भले ही हमारे यहां भूजल की कमी नहीं हो, लेकिन जब गरमी के मौसम में जलस्तर नीचे जाता है […]
सूखा पड़ा तो केरल में 115 साल पुराने कुएं को किया गया चालू, पर पटना में बदहाल हैं कई कुएं
अनिकेत त्रिवेदी
पटना : कहावत है कि जब प्यास लगी हो तो कुआं नहीं खोदा जाता. भले ही हमारे यहां भूजल की कमी नहीं हो, लेकिन जब गरमी के मौसम में जलस्तर नीचे जाता है और बोरिंग से पानी नहीं आता, तो हमें पुराने संसाधन मसलन कुओं की बहुत जरूरत महसूस होती है. मॉनसून आकर दरवाजे पर खड़ा है, पर अब तक हम सुधार न कर पाये. इस मामले में ताजा उदाहरण ज्यादा बारिश वाले केरल के त्रिशूर रेलवे स्टेशन के 115 वर्ष पुराने कुआं को लेकर दिया जा सकता है.
जहां लोगों ने 36 मीटर गहरे कुआं को बेकार समझ कर छोड़ दिया था, लेकिन पिछले वर्ष जब केरल में सूखा पड़ा तो लोगों को इस कुआं की जरूरत महसूस हुई. इसके बाद कुआं साफ किया गया. अब कुआं लोगों को पानी देने के काबिल हो गया है. इससे इतर पटना को कभी कुएं के शहर के नाम से भी जाना जाता था. लेकिन यहां के सैकड़ों वर्ष पुराने कुएं अब बदहाल हैं या फिर उन्हें भर दिया गया है. कभी लोगों की प्यास बुझाने वाली और जलस्तर का माप देने वालों कुएं को कोई देखने वाला नहीं है.
विलुप्त हो रहे कुएं : पटना कभी कुओं का शहर हुआ करता था. कदमकुआं में हर कदम पर कुआं तो मखनियांकुआं का क्षेत्र भी कुआं के लिए प्रसिद्ध था. अब तो कई कुएं का अवशेष भी नहीं बचा है. पटना फतुहा मार्ग पर बउली का कुआं काफी प्रसिद्ध हुआ करता था. कुआं के भीतर भी कई तल्लों का महल है. गोरिया टोली में पहले कुआं से ही पानी सप्लाइ होता था. कटरा बाजार में बड़ा कुआं की हालत खराब है. मगध महिला कॉलेज में कुषाण कालीन कुआं मिला है. कई कुआं विलुप्त हो चुका है, तो कई विलुप्त होने के कगार पर है. कुछ जगहों पर पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित किया है.
अगमकुआं के कृष्णा मंदिर प्रांगण में कुआं मौजूद है. गहरा होने के कारण इसका पानी कभी समाप्त नहीं होता. सम्राट अशोक ने इस कुआं का निर्माण ईसा पूर्व 273 से 235 में करवाया था. जानकार बताते हैं कि अशोक से लेकर कई राजाओं तक इसका उपयोग शासन व राज दरबार के कामों के लिए किया जाता था. सैकड़ों वर्ष तक लोगों की प्यास बुझती रही. अब यह आस्था का केंद्र बन गया है.
क्या होता फायदा : कुआं की उड़ाही करा दी जाये तो पानी का उपयोग आम लोग कर सकते हैं. गरमी के दिनों में जब सीटी अंचल के वार्डों में पानी का स्तर नीचे चला जाता है, तब इसका उपयोग दर्जनों मोहल्ले के लोग कर सकते हैं. इस कुआं से गंगा के जलस्तर की सटीक जानकारी मिलती है. कुआं के रहने से आसपास के क्षेत्रों का भू जलस्तर भी मेंनटेन रहता है.
राजापुर प्रणामी मंदिर कुआं बहुत पुराना है. लगातार पानी निकासी के कारण इसका पानी साफ रहता है. गंगा के किनारे रहने वाले लोग इसका कई वर्षों से उपयोग करते आ रहे हैं. इसके पानी का लोग पीने व खाना बनाने में उपयोग करते रहे हैं. पहले पानी लेने वालों की यहां दिन भर भीड़ लगी रहती थी.
क्या होता फायदा : अभी मंदिर में प्रवेश पर रोक है. कई कारणों से लोग मंदिर में नहीं जाते. बाहर से ताला लगा रहता है. कई मामलों में विवाद है. इस कारण फिलहाल इस कुआं का उपयोग नहीं हो पा रहा है.
शहर में अधिकतर बड़े कुएं की खुदाई सम्राट अशोक के शासनकाल में हुई थी. चकारम के बड़े कुएं का निर्माण सम्राट अशोक ने 273 से 232 ईसा पूर्व कराया था. चार दशक पहले तक मंदिरी के पांच किलोमीटर क्षेत्रफल में रहने वाले लोग इसके पानी का उपयोग करते थे. स्थानीय छात्र कल्याण समिति ने 1997 में इसका जीर्णोद्धार कराया था, लेकिन मौजूदा हालात बहुत ही खराब है. लोग इसमें कूड़ा-कचरा फेंक देते हैं. जिस कारण इस कुआं में गंदगी का अंबार लग गया है. फिलहाल इस कुआं का पानी पीने लायक नहीं है. इसकी उड़ाही कराने की जरूरत है.
क्या होता फायदा : 80 वर्षीय स्थानीय निवासी राम लगन राय बताते हैं कि दस वर्षों से इसकी सफाई नहीं हुई है. नगर निगम या कोई सरकारी विभाग इसको देखने वाला नहीं है. कुआं में अब भी पानी है, लेकिन लोग कचरा फेंक देते हैं. अब इसका उपयोग नहीं किया जा सकता. हम लोग तो इसी का पानी पीकर जवान हुए थे. आज भी गरमी के दिनों में इस कुएं की जरूरत पड़ती है. अगर प्रशासन साफ करा दे तो सौ से अधिक घरों को इसका फायदा मिल सकता है. इस कुआं से बाढ़ के दिनों में गंगा के जलस्तर का अंदाजा लगाया जाता है.
मीठापुर में दो बड़े कुएं हैं. एक मीठापुर सब्जी मंडी के पास तो दूसरा पुरंदरपुर में. सब्जी मंडी वाला कुआं चालू है. स्थानीय दुकानदार इसका उपयोग करते हैं. कभी सब्जी साफ कर बेचने व होटल के खाना बनाने में इसके पानी का उपयोग किया जाता है. इसके अलावा पुरंदरपुर के कुआं में गंदगी का अंबार है. इसका उपयोग नहीं हो पाता है. उड़ाही नहीं होती है, जिससे कचरा भरा रहता है.
क्या होता फायदा : मीठापुर शहर का निचला इलाका है. बारिश के दिनों में यहां जलजमाव की समस्या रहती है. जानकार बताते हैं कि मीठपुर क्षेत्र के कुएं कभी नहीं सूखते. नगर निगम या अन्य किसी विभाग से इसे चालू करवा दिया जाये, तो गरमी के दिनों में जक्कनपुर, पुरंदरपुर, चांदपुर बेला सहित कई मोहल्लों में पानी की समस्या कम होगी.
अनावश्यक पानी के दोहन से बचाता है कुआं
कुआं जल की पूर्ति करने के लिए एक बेहतर संसाधन है. इससे लोग अनावश्यक दोहन नहीं करते. भूजल के स्तर की इससे जानकारी भी होती है. फिलहाल जो भूजल निकालने का तरीका है, उसमें केवल माइनिंग की जाती है.
मतलब है कि पानी निकाला जाता है, लेकिन वापस डालने का कोई तरीका हम नहीं अपनाते. बारिश के दिनों में कुआं वाटर हार्वेस्टिंग का काम भी करता है, लेकिन वर्तमान बोरिंग से भूजल का केवल दोहन किया जाता है. कुआं का संरक्षण इस लिहाज से भी जरूरी है कि यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है. दिनेश कुमार मिश्र, नदी व जल मामलों के जानकार, नमामी गंगे परियोजना के थिंक टैंक सदस्य
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