बिहारशरीफ (नालंदा) : इसे शिक्षा विभाग की विडंबना ही कहा जायेगा कि बिना शिक्षक के भी विद्यार्थियों के बिना पढ़ाये प्रमाण पत्र दिया जा रहा है. जिले में दर्जनों ऐसे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं, जहां एक भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं किये जाने के बावजूद हर वर्ष विद्यार्थियों का नामांकन लेकर बिना पढ़ाये विद्यार्थियों को उत्तीर्ण कराया जा रहा है.
इन विद्यालयों के प्राचार्य भी विभागीय फरमान की अनदेखी नहीं कर सकते हैं. विभागीय आदेश पाते ही इन उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में धड़ाधड़ नामांकन शुरू कर दिया जाता है. वेन प्रखंड अंतर्गत सरदार पटेल +2 विद्यालय देवरिया में भी इसी प्रकार विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है. यहां इंटरमीडिएट कक्षाओं के लिए भवन तो बना दिये गये हैं, लेकिन विज्ञान विषय में शिक्षक नदारद है.
आश्चर्य की बात तो यह है कि इसके बावजूद विभाग द्वारा इंटरमीडिएट कक्षाओं में नामांकन लेने का फरमान जारी कर दिया जाता है. वर्तमान में यहां 02 सत्रों में क्रमश: 145 तथा 175 विद्यार्थियों का नामांकन लिया जा चुका है. तथा उत्तीर्ण भी होते हैं. विद्यालय का छात्र मनीष कुमार ने बताया कि विद्यार्थी सारी बातें जानने के बावजूद भी यहां नामांकन कराने को मजबूर है.
अच्छे महाविद्यालयों में कभी-कभी काफी भागदौड़ के बावजूद भी नामांकन नहीं हो पात है, जबकि यहां तृतीय श्रेणी से उत्तीर्ण विद्यार्थियों को भी मनचाहा संकाय मिल जाता है. पढ़ाई के लिए शहरों में एक से बढ़ कर एक कोचिंग संस्थान हैं जहां विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं. हालांकि इसमें छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है. क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी अच्छे कोचिंग संस्थानों का अभाव है.
अभिभावक बच्चियों को बाहर भेज कर पढ़ाने में आज भी हिचकते हैं. विद्यालय में विज्ञान शिक्षकों की नियुक्ति नहीं किये जाने से यहां नामांकित बच्चों के लिए कोचिंग ट्यूशन ही एक मात्र सहारा है. विद्यालय में पढ़ाई नहीं होने से अधिकांश विद्यार्थी महंगी फीस देकर भी कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई करने को मजबूर है. अभिभावक रामाशीष प्रसाद का कहना है कोचिंग संस्थानों को कोई मुफ्त में तो पढ़ाया नहीं जाता है.
बच्चों के ट्यूशन फी देने में अभिभावकों के पसीने छूटते हैं. लेकिन अब सरकार की यही व्यवस्था है तो लोगों को इसी में तालमेल बिठा कर चलना पड़ता है. आखिर हम अपने बच्चों को अनपढ़ तो नहीं रख सकते हैं. बच्चों को पढ़ाने में भले ही खेत-बाड़ी बेचनी पड़ जाये लेकिन वे पढ़ाई के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं.