मुजफ्फरपुर : एमसीआइ के निर्देश के अनुसार यदि डॉक्टर मरीजों को जेनरिक दवा लिखने लगे तो इलाज 80 फीसदी सस्ता हो जायेगा. इससे बीमार लोगों को काफी राहत मिलेगी. समाज के कमजोर वर्गों की भी को सरकारी अस्पतालों पर दवा की निर्भरता कम हो जायेगी. हालांकि, कई डॉक्टर इसके पक्ष में नहीं है. इसके पीछे ब्रांडेड दवा कंपनियों से मिलने वाला मोटा कमीशन है. दवा लिखने के लिए ये कंपनियां डॉक्टरों को कमीशन देती है, उस राशि को दवाओं की कीमत में जोड़ दी जाती है.
Advertisement
लिखेंगे जेनरिक दवाएं राहत. एमसीआइ ने डॉक्टरों को दिया निर्देश
मुजफ्फरपुर : एमसीआइ के निर्देश के अनुसार यदि डॉक्टर मरीजों को जेनरिक दवा लिखने लगे तो इलाज 80 फीसदी सस्ता हो जायेगा. इससे बीमार लोगों को काफी राहत मिलेगी. समाज के कमजोर वर्गों की भी को सरकारी अस्पतालों पर दवा की निर्भरता कम हो जायेगी. हालांकि, कई डॉक्टर इसके पक्ष में नहीं है. इसके पीछे […]
यह राशि उपभोक्ता अदा करते हैं. कुछ डॉक्टरों को छोड् दें तो अधिकतर डॉक्टर ब्रांडेड दवा लिखते हैं.
इनके क्लीनिकों पर दिन भर एमआर की भीड़ जुटी रहती है, जिसमें दवा की गुणवत्ता पर नहीं, दवाओं के बदले मिलने वाले कमीशन की चर्चा होती है. कोई भी दवा कंपनी जब किसी दवा को बनाती है, तो उसका एक फॉर्मूला होता है, जिसे शुरूआत के 20 साल पेटेंट मिला होता है. यह दवा केवल वही कंपनी बना सकती है,
जिसने उसे इजाद किया है. हालांकि 20 साल बाद उस दवा का फॉर्मूला पब्लिक हो जाता है. उसे कोई भी कंपनी दवा बना सकती है, जिसे जेनरिक कहा जाता है.फार्मूला पब्लिक होने की वजह से यह दवा कई गुना सस्ती हो जाती है. केंद्र सरकार भी यही चाहती है कि जो दवाएं पेटेंटेड नहीं है, उनको जेनरिक के जरिए डॉक्टर पर्ची पर लिखे. जिससे लोगों को सस्ती दवाएं मिल सके.
कोई भी निर्माता एक उत्पाद को जेनरिक या ब्रान्ड नाम से बेच सकता है. चूकिं ब्रान्ड पर निर्माता का एकाधिकार होता है. वह अपने ब्राण्ड को प्रसिद्ध और प्रचार-प्रसार करने के लिए खूब सारा खर्चा करता है. वह बिचौलियों यानी दवा विक्रेताओं, अपने विक्रय प्रतिनिधियों व डॉक्टरों को कमिशन देता है. इस वजह से ब्रान्डिड दवाएं जेनरिक से बहुत मंहगी हो जाती है,
हालांकि दोनों की गुणवत्ता समान ही होती है. डॉक्टर जेनरिक दवाओं को न लिखकर ब्रांडेड दवाओं को पर्चे पर लिखते हैं। जो कि काफी महंगी होती है। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि अगर किसी को बुखार है, तो डॉक्टर पैरासीटामाल फार्मूला लिख सकता है, लेकिन वह ब्रांडेड दवा जैसे क्रोसीन , कैलपाल का नाम लिखता है. यह जेनरिक दवाओं की तुलना में महंगी होती हैं.
डॉक्टरों का तर्क अलग : डॉक्टरों का कहना है कि जेनरिक दवाएं लिखी जाएं इसके लिए देश में परिस्थितियां नहीं हैं. तर्क है कि अगर डॉक्टर जेनरिक दवाएं लिखने लगें, तो मरीज को कौन सी दवा मिलेगी, यह निर्णय दवा दुकानदारों के हाथ में चला जाएगा. फिर बाजार में मिलावटी दवाओं की मौजूदगी की दलील भी है. हालांकि, केंद्र सरकार भी इसे प्राथमिकता के स्तर पर नहीं ले रहा है. जिले में सरकारी स्तर पर जेनरिक दवा दुकानें खोलने का निर्देश तो अाया, लेकिन दो वर्ष बीतने के बाद भी अस्पतालों में दवा दुकानें नहीं खाेली गयी.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement