एक बार और सत्याग्रह करो बापू
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..लगा सचमुच गांधी हूं एलएस कॉलेज : अंधेरे से फूटी रोशनी
एक बार और सत्याग्रह करो बापू फरियाद बापू, देख लो आज के समाज की वास्तविक तस्वीर मुजफ्फरपुर : बापू एक सौ साल बाद देख लो मुजफ्फरपुर का नजारा. पं. राजकुमार शुक्ल आपके साथ नहीं हों, तो आप शायद मुजफ्फरपुर जंकशन पहचान भी नहीं पाते. बापू यहां अब इलेक्ट्रिक ट्रेनें चल रही हैं. लेकिन जिन किसानों […]
फरियाद बापू, देख लो आज के समाज की वास्तविक तस्वीर
मुजफ्फरपुर : बापू एक सौ साल बाद देख लो मुजफ्फरपुर का नजारा. पं. राजकुमार शुक्ल आपके साथ नहीं हों, तो आप शायद मुजफ्फरपुर जंकशन पहचान भी नहीं पाते. बापू यहां अब इलेक्ट्रिक ट्रेनें चल रही हैं. लेकिन जिन किसानों व मजदूरों का दर्द लेकर एक सौ साल पहले आप यहां आये थे, उन किसानों की पीढ़ी अब मजदूरी करती है. वे अब भी ट्रेनों में भेड़-बकरियों की तरह यात्रा करने को मजबूर हैं. कभी-कभी रेल पुलिस उनकी पिटाई भी करती है.
बापू स्टेशन रोड से कल्याणी के बीच अब फ्लाइओवर बन गया है. इससे लोगों के आने-जाने में सुविधा हो गयी है, लेकिन बापू रात में यहां बदमाशों का राज होता है. फ्लाइओवर के ठीक नीचे नगर थाना है. बावजूद कुछ दिन पूर्व पुलिस जीप के ड्राइवर को देर रात फ्लाइओवर पर चाकू मारा गया.
बरसात में झील बन जाता कल्याणी चौक
शहर का मुख्य चौराहा कल्याणी चौक. बापू जब आप यहां पहली बार आये होंगे, तो आठ-दस दुकानें ही रही होंगी. कुछ चाय-पान व कपड़े की दुकानें. चाय की दुकानें तो रात-रात भर खुली रहती थीं. बड़े-बड़े शौकीन लोग बग्घी से यहां आकर पान खाते थे. अब अपराध बढ़ने के कारण रात में दुकानें बंद हो जाती हैं. आधी रात के बाद कल्याणी चौक सूना पड़ जाता है. बापू बग्घी में आपने जगह-जगह हिचकोले महसूस किया होगा, इसकी वजह यहां की सड़कें हैं.
यह कभी नहीं बनतीं बापू! हमेशा ऐसे ही रहती हैं! बरसात के समय तो यह रास्ता झील हो जाता है. यहां घुटनों तक पानी जमा हो जाता है. देश की आजादी के बाद न जाने कितने प्रतिनिधि आये व गये, लेकिन यहां की सड़कें व जलजमाव को ठीक नहीं कर पाये. यहां सरकारी जमीन पर कई बड़े लोगों ने मकान खड़े कर लिये हैं. उन्हें हटाना अब प्रशासन के बूते भी नहीं है. पुराने जमींदार की पीढ़ियां अब पूंजीपति बन गयी हैं. उनसे लड़ने का साहस अब वर्तमान शासन भी नहीं करता.
अंतिम जन की हालत नहीं सुधरी
बापू एक सौ साल पहले आप अंतिम जन की हालत सुधारने के लिए चंपारण आये थे. आपने कहा था कि बड़े जमींदार किसानों पर नील की खेती करने का दबाव नहीं बनाएं. उनसे लिया जाना वाला कर भी नहीं वसूलें. किसान अपनी मर्जी से खेती करें. आपके सत्याग्रह से किसानों की स्थिति तो सुधर गयी, लेकिन देश की आजादी के बाद गरीबी लगातार बढ़ती गयी.
हमारा समाज जातियों व धर्मों में विभाजित होता गया. गरीब और गरीब होते गये. अमीरों की तिजोरियां भरने लगीं. समाज का अंतिम जन आज भी दो वक्त की रोटी का मोहताज है. उनके बच्चे शिक्षित नहीं हो पा रहे हैं. बापू आपसे यही प्रार्थना है आप सौ साल बाद यहां आये हैं. उस वक्त आपने एक समस्या के लिए सत्याग्रह किया था. आज समस्याएं विकराल रूप में हैं. बापू आप एक बार और सत्याग्रह कीजिये. इस बार अंग्रेजी सरकार नहीं है, आपके सिद्धांतों पर चलने वाले ही लोग हैं. ये आपकी बातें मान जायेंगे.
बापू हमें दिलाएंगे आजादी
गांधी के जयकारे से गूंज उठा एलएस कॉलेज
मुजफ्फरपुर : उत्साह से लबरेज युवाओं का जोश हर तरफ गांधी के जयकारें, हमे दिलाएंगे आजादी, मोहनचंद गांधी जैसे नारे. छात्रों को और भी उत्साहित कर रहे थे. गांधी की बग्घी एलएस कॉलेज के ग्राउंड में पहुंचती है, तो पूरा काॅलेज गांधीमय हो जाता है. ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा बनने वाले सभी के जुबां पर केवल गांधी की ही चर्चा होती है.
इसके बाद बग्घी खीचने वाले 25 छात्र उनकी बग्घी लेकर कॉलेज के ग्राउंड में पहुंच जाते हैं. यहीं से चंपारण सत्याग्रह की नीव तैयार होती है. और यही गांधी युवाओं में जोश भरते हुए स्वतंत्रता की बात करते है. इसके बाद फिर से गांधी के जयकारों का दौर शुरू होता है. इस पर गांधी को बोलना पड़ता है कि मेरी जय मत बोलो, जय बोलों इस मुजफ्फरपुर की जनता की. जिससे अंग्रेज भय खाएंगे.
मोहनदास करमचंद गांधी (भाेजनंदन प्रसाद) साथियों, भाईयों आप लोगों के अभिवादन से मेरा मन अभिभूत हो गया है. जिस काम के लिए आया हूं. वह काम पूरा होगा. मैं राजकुमार शुक्ल जी का बहुत बहुत आभारी हूं. इन्होंने बहुत आग्रह किया, कि आप चंपारण के किसानों का दुख दर्द सुनिए. इन्होंने कानुपर से लेकर लखनऊ अधिवेशन में बहुत कहा कि मेरे मुजफ्फरपुर के भाईयों-बहनों इन्हीं के कहने पर आया हू. मैंने कहा कि दो दिन बाद आता हू. जब तक मैं पूरी स्थिति को अच्छी तरह जान नहीं जाता तब तक मैं कोई कदम नहीं उठाता. मैंने बार-बार कहा कि मैं ऐसे नहीं जाउगा. मुझे समय दीजिए, लेकिन शुक्ल जी समय नहीं देने नहीं थे
. जहां-जहां मैं जाऊ वहां-वहां वह आते. मैंने कहा मैं चलूंगा. मैंने समय दिया कि कलकत्ता आइए. मैं चलता हूं. यह कलकता दो दिन पहले ही पहुंच गए. मैं इनके साथ पटना आया. पटना में एक नामी गिरामी वकील के यहां रूका. वहां पर थोड़ा सा मेरे अनुसार व्यवस्था नहीं थी. लेकिन मुझे कष्ट हुआ छूआछूत का. गांधी जी से पहले राजकुमार शुक्ल(अरुण कुमार सिंह) गांधी जी जब दक्षिण अफ्रीका में गोरा-काला के कारण ट्रेन से गिरा दियल गईल रहे. वहीं समय गांधी जी तय कइलन किहम भारतीयन के सम्मान दिलाके रहब.
यही कारण की हम चंपारण के नीलहा किसान लोगन के दुख-दर्द दूर करिहन के खातिर गांधी जी के चंपारण में बोलइलि. गांधी चपांरण के किसानन के दुख दर्द करिहन. इ हमरा के विश्वास बा. इस बीच वह बाेलते है कि मैंने छह महीने तक प्रयास किया. लखनऊ से लेकर कानपुर अधिवेशन तक गांधी जी का पीछा किया. और तब इन्होंने काेलकाता में मिलने के लिए कहा. और वहां से लेकर पटना आया.
कार्यक्रम के अंत में बीआरए बिहार विवि के वीसी डॉ अमरेंद्र नारायण यादव व एलएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ उपेंद्र कुंवर ने आभार व्यक्त किया. इस मौके पर एलएस कॉलेज के डॉ प्रमोद कुमार, डॉ सतीश कुमार सहित डायरेक्टर संजीत किशोर, नीलेश मिश्रा आदि मौजूद रहे.
इन छात्रों ने खीची बग्घी
शुभम, कुंदन, ठाकुर प्रिंस, धनंजय सिंह, प्रभात कुमार सिंह, अमरजीत कुमार सिंह, रविदेव कुमार, रोहित, रमेश कुमार झा, कमलेश कुमार झा, मनोज कुमार, राजू, सन्नी कुमार झा, राहुल कुमार, राजवर्धन, रवि, राहुल, चैत्नय, आशुतोष, रौनक, मृत्युंजय, चंदन, सुभाष कुमार, कुणाल कुमार शामिल है. नाटक में शुभम कुमार, कुंदन, धनंजय, मृत्युंजय, राहुल, राहुल कुमार, रविदेव, मनीष चौधरी, सुभाष कुमार, कुणाल कुमार आदि को शामिल किया गया है.
गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचायेंगे
गां धी जी चंपारण सत्याग्रह का सौ वर्ष पूरा हो रहा है. और आज ही के दिन 10 अप्रैल 1917 में गांधी जी पटना पधारे थे, बिहार में आये थे. और आज ही उन्होंने मुजफ्फरपुर के लिए प्रस्थान किया था. मुजफ्फरपुर में कुछ दिन रुके, और जो कुछ भी उन्होंने किया वह सब आपलोगों को मालूम है. वहां से फिर मोतिहारी गये और मोतिहारी में जो कुछ भी हुआ 18 अप्रैल को आप सभी अवगत हैं.
और उसके बाद बेतिया के लिए भी प्रस्थान किये. और उनकी विभिन्न जगहों पर यात्राएं हुईं. और जो कुछ भी हुआ चंपारण सत्याग्रह के सिलसिले में आप सभी अवगत हैं, लेकिन उसकी शुरुआत आज ही के दिन हुई थी.
राजकुमार शुक्ल जी ने बहुत आग्रह किया, गांधी जी ने इसे स्वीकार किया और उसी चंपारण में जो कुछ भी नीलहों का जो अत्याचार हो रहा है उसके बारे में कुछ भी कहने से पहले पूरी स्थिति को खुद देखना चाहते थे, समझना चाहते थे और उसके बाद उस विषय पर कुछ कहना चाहते थे. अंतोगत्वा वे यहां पधारे और जो कुछ हुआ चंपारण सत्याग्रह ने जो रूप धारण किया और उसका प्रभाव सिर्फ वहां किसानों को मजदूरों को नीलहों से आजादी मिली, उतनी तक ही नहीं है,
उनको उनकी समस्याओं से छुटकारा मिला बात वहीं ही नहीं रही, बल्कि उसका संदेश पूरे देश में फैला. और दरअसल जो आजादी की लड़ाई वर्षों से चल रही थी देश में, देखिये उसने एक जबरदस्त रूप धारण किया. और चंपारण सत्याग्रह की अपनी खासियत है. 1917 में ये हुआ और मात्र 30 साल के अंदर देश आजाद हो गया अंगरेजों से. तो चंपारण सत्याग्रह का देश के इतिहास में आजादी की लड़ाई के इतिहास में अपना एक विशिष्ट योगदान है. और हम सब लोगों के लिए गौरव की बात है. चंपारण सत्याग्रह के 100 वें साल में आप सब यहां एकत्रित हुए हैं. अभी कुमार प्रशांत जी ने कहा कि भई बताइये कि हमलोगों को क्यों बुलाया है?
अरे क्यूं बुलाया है यह बताने की चीज है. चंपारण सत्याग्रह का सौंवा साल है. अब अगर 1917 में चंपारण सत्याग्रह से आजादी की लड़ाई ने जोर पकड़ा और 30 साल में आजादी हुई तो आज सौ साल पूरा हुआ है, तो आज जो देश और पूरी दुनिया में एक विचित्र माहौल है. असहिष्णुता का माहौल है, टकराव का माहौल है.ये जो भौतिकतावादी चीजें हैं वह हावी हैं, लोगों के दिल व दिमाग में. एेसी स्थिति में जो गांधी जी के विचारों से प्रभावित लोग एक ही जगह एकत्रित हों और गांधी जी के जो विचार थे आज के संदर्भ में उस पर सार्थक बहस करें तो मुझे तो पूरा विश्वास है कि इसका जो नतीजा निकलेगा,
वह देश के लिए तो महत्वपूर्ण होगा, पूरे समाज के लिए भी महत्वपूर्ण होगा. मुझको इसका पूरा भरोसा है. इसी भरोसे और विश्वास के साथ हमलोगों ने इसका आयोजन किया है. और ये तो हमारा कर्तव्य है. बिहार के लोगों ने यहां काम करने का मौका दिया है. तो हमलोगों ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की समाज को जोड़ने की और हमने यहां जो कुछ भी राज्य के स्तर पर नीतियां बनायी है या जो भी कार्यक्रम तय किये हैं जो योजनाएं चलायीं, उनमें हमलोगों ने प्रारंभ से इस बात का ख्याल रखा कि इसका फायदा अंतिम पायदान पर खड़े इनसान को जरूर मिले. और दूसरी बात हमलोगों की कोशिश रही है कि कोई भी काम इस प्रकार से करें कि उसका लाभ सबों को मिले. इसलिए हमलोगों ने यहां जो कुछ भी स्कीम शुरू की वह स्कीम यूनिवर्सल रही है.
सबको उसका लाभ मिला है. अगर लड़कियों के लिए पोशाक योजना तो सबों को उसका लाभ मिले. लड़कियों के लिए साइकिल योजना तो सबों को उसका लाभ मिले, उसके बाद लड़कों के लिए भी साइकिल योजना, यानी जिस प्रकार से एक नहीं मैं कितनी योजनाओं का जिक्र करूं, क्यों कि हम भी तो आप लोगों को सुनने आये हैं. हम कुछ बोलने नहीं आये हैं. मेरा काम था आपका स्वागत करना. कुमार प्रशांत जी ने ऐसी बात छेड़ दी कि भई कहिए कि क्यों बुलाये हैं. तो हमलोगों ने बिना इतने बड़े विचारकों को सुने जो कुछ भी छोटी मोटी अक्ल में और समझ में जो बात आयी उसके हिसाब से काम करते रहे. और यहां पर यही नहीं गांधी जी ने जो कुछ भी कहा, उसको स्वीकार करते हुए हमारा मार्गदर्शक सिद्धांत गांधी जी का विचार ही रहा है. इसलिए हमलोगों ने यहां न्याय के साथ विकास के रास्ते को अपनाया है, सिर्फ विकास की बात नहीं की है. हमने हमेशा न्याय के साथ विकास की बात की है.
हमलोगों ने कि एक ओर बहुत बड़ी बुराई है, जो पूरे समाज को जकड़ती चली जा रही है और वह था शराब और नशा. उसके चलते जो समाज को जो बरबादी हो रही थी उसको हमलोग इसे देख रहे थे. हम तो अपने छात्रजीवन से ही इसके खिलाफ थे, लेकिन सरकार में आने के बाद यह द्वंद्व मन में रहता था कि तो भई अगर हम शराब को बंद भी करें तो पता नहीं कि यह प्रभावी ढंग से लागू हो पायेगा या नहीं हो पायेगा. दुविधा थी, तो हमने शुरू किया कि मद्यनिषेध दिवस के रूप में मनाइये,
खूब प्रचार करिए शराब बुरी चीज हैं. वह सब काम हमलोगों ने किया. जो गांव शराब से मुक्त हुआ उनको पुरस्कृत करने की कोशिश की, लेकिन हमने देखा कि ये बाते तो हैं जो हमारे युवा पीढ़ी के लोग हैं अच्छा पेंटिंग करते थे उन्हें पुरस्कृत करते थे, उनको पुरस्कृत किया, लेकिन हमने देखा कि इसका कोई….फायदा नहीं मिला. दुकानों की संख्या भी कम कर दी, लेकिन फिर भी हमने देखा कि इसका उपयोग बढ़ता ही जा रहा है, घट नहीं रहा है. तो एक दिन महिलाओं के एक सम्मेलन में मैं अपनी बात बोल कर बैठा ही था कि चंद महिलाओं ने पीछे से आवाज लगायी की शराब बंद कर दीजिए, मेरे मन का जो भी द्वंद्व था वह तुरंत मिट गया. आवाज सुनने के बाद हम वापस माइक पर आये और कह दिया कि अगली बार आयेंगे तो लागू कर देंगे. 2015 का जुलाई का महीना था.
तीन महीने के बाद चुनाव था, लोगों ने फिर काम करने का अवसर दे दिया. तो सरकार बनने के बाद पहला फैसला हमलोगों ने किया कि शराब बंद करेंगे और एक अप्रैल से लागू करेंगे. हमलोगों ने तो पूर्ण शराबबंदी के बारे में नहीं सोचा था, पहले सोचा था कि इसे चरणबद्ध तरीके से लागू करेंगे. पहले ग्रामीण इलाकों में देसी-विदेशी बंद कर दें, शहर में केवल देसी रहे, कुछ दिन तक वहां भी अभियान चलायेंगे और फिर लागू करेंगे. और इसके लिए बड़ा जबरदस्त अभियान चलाया गया एक अप्रैल को लागू करने से पहले बिहार में, जनजागरण के लिए, इसके पक्ष में जनमत बनाने के लिए. और वह इतना बड़ा अभियान चला कि छात्र-छात्राओं ने कम से कम अपने अभिभावकों से संकल्प पत्र भरवाया और 1.19 लाख लोगों ने संकल्प पत्र भर कर जमा किया और उसमें लिखा कि
हम शराब नहीं पीयेंगे और दूसरों को भी नहीं पीने के लिए प्रेरित करेंगे. लोगों ने नौ लाख लोगों पर नारे लिखे, 25 हजार जगहों पर नुक्कड़ नाटक का मंचन हुआ. लोगों ने खुद गीत बनाये और गाये. इसका जबरदस्त असर हुआ अौर बहुत प्रभावी ढंग से एक अप्रैल से लागू हुआ. लेकिन शहरों में कुछ दुकानें खुलने लगीं. लोगों का जबरदस्त विरोध हुआ. इसमें बड़ी प्रसन्नता हुई. हम तो सोच रहे थे भई, शहर में तरह-तरह के लोग रहते हैं, कुछ पढ़े लिखे और कुछ अमीर लोगों का एक तबका सभी नहीं कुछ ऐसा है जो इसको अपनी लिबर्टी से जोड़ कर देखता है. वह तो बहुत तरह की बात करेंगे, माहौल बनायेंगे, तब लागू करेंगे,
लेकिन यहां देखा हमने कि माहौल पहले से ही बना हुआ है. कोई भी दुकान किसी शहर में खोलने की कोशिश करता था, तो जबरदस्त उसका विरोध हुआ और उसका नतीजा हुआ कि चार दिन के अंदर पांच अप्रैल से शहरों में भी शराब बंद कर दी और पूरे प्रभावी ढंग से लागू कर दिया और पूरे बिहार के लोगों ने इसका समर्थन किया.
चंद अपवाद को छोड़ दीजिए, जिसका मैंने जिक्र किया जिसकों अपनी लिबर्टी के साथ जोड़कर देखते हैं. मैं उस विषय में नहीं जाना चाहता हूं. लेकिन इसके बाद भी मैंने देखा कि इसके लिए जनचेतना जरूरी है. निरंतर जागृति होनी चाहिए, तो हमलोगों ने इस वर्ष भी दो महीने का अभियान चलाया शराबबंदी से आगे नशामुक्ति की ओर. और हमलोगों ने आह्वान किया कि इसके समर्थन में मानव श्रृंखला बनायें. हमलोगों ने सोचा था कि दो करोड़ लोगों की भागीदारी होगी, लेकिन सुखद आश्चर्य हुआ कि चार करोड़ लोगों की भागीदारी 21 जनवरी को मानव श्रृंखला में हुई. ये तो जनभावना का प्रकटीकरण है.
हम देख रहे हैं कि इसका बहुत जबरदस्त असर है. लोगों की माली हालत में सुधार हुआ है. जो शराब में पैसा गंवाते हैं वे अच्छे कामों, अच्छे खान-पान, कपड़ा-लत्ता इन सब चीजों में खर्च कर रहे हैं. यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है और समाज में शांति आयी है. अपराध घटे हैं. सड़क दुर्घटना कम हुई है. यह सब फायदा हो रहा है.
दो दिनों तक का यह विमर्श जरूर सार्वजनिक जीवन में बदलाव लायेगा, यह मुझे विश्वास है. और इसी उम्मीद के साथ कुमार प्रशांत जी हमसब लोगों को आमंत्रित किये हैं और आमंत्रण स्वीकार कर आप लोग आ गये यह मामूली बात नहीं है. एक तो सब लोग काम करने वाले लोग भी हैं, बौद्धिक लोग भी हैं, बुद्धिजीवियों व विद्वानों के साथ यह बात है कि वे स्वतंत्र होते हैं. अपने-अपने ढंग से सोचते हैं, अपने-अपने ढंग से काम करते हैं, ये कोई मामूली बात है क्या? सब लोग इकट्ठा हो गये इस तरह से. कुल विचार सब का एक ही है. गांधी जी के विचार को लेकर लोहिया जी ने क्या कहा था? कि तीन तरह के गांधी वादी. एक सरकारी गांधी वादी, कुछ मठी गांधीवादी और अपने बारे में कहा हमलोग कुजात गांधीवादी हैं. लेकिन मुझे खुशी है कि देखिये अशोक चौधरी जी पुराने गांधीवादी जो पुराने कांग्रेस वाले लोग हैं, मठी गांधीवादी को हम छोड़े नहीं हैं उनको भी हम बुला लिये हैं और हमलोग को कुजात गांधीवादी हैं ही. तो अब तो स्थिति ये आ गयी है कि चाहे सरकारी कभी रहे हों, या मठी रहे हों या कुजात रहे हों, लेकिन मूल तौर पर सब तो गांधी जी से प्रेरित थे. गांधी जी से जितने प्रेरित थे सब इकट्ठा हो गये हैं और मिल कर आज के संदर्भ में मैं समझता हूं जोरदार कार्यक्रम तय होना चाहिए. मुझे तो पूरा विश्वास है आप लोग यहां पर तय करके किसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे, उनका जबरदस्त प्रभाव होगा और लोग सोचेंगे कि देश में कम से कम एक तरफा संवाद नहीं चलेगा और ये दो तरफ से संवाद चलेगा और देश की जनता तय करेगी कि कौन सा रास्ता सही है और कौन सा रास्ता देश को सही रास्ता में पर ले जायेगा. इन्हीं शब्दों के साथ मैं आप सब लोगों का अपनी तरफ से, बिहार सरकार की तरफ से, तमाम बिहारवासियों की तरफ से हार्दिक अभिनंदन करता हूं, स्वागत करता हूं. बहुत-बहुत धन्यवाद.
गांधी के अंतिम जन की परिकल्पना चंपारण की देन
म हात्मा गांधी का चंपारण आना उनके राजनीतिक जीवन का एक संधि विंदु है. चंपारण आने से पहले वे दक्षिण अफ्रीका में एक बहुत बड़े राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व कर चुके थे और उसके काफी नतीजे भी निकल चुके थे . इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि दक्षिण अफ्रीका से वे आये तो किन राजनीतिक परंपराओं को लेकर आये और किस पृष्ठभूमि में उनको आंकना चाहिए, जब उन्होंने भारत में राजनीतिक आंदोलन शुरू किया. दक्षिण अफ्रीका में गांधी वकालत करने गये थे, लेकिन रंगभेद ओर नस्लभेद की समस्या वहां इतनी जबर्दस्त ढंग से उभरी थी कि गांधी वहां आंदोलन में उलझ गये. लेकिन इस क्रम में कुछ ऐसे अनुभव भी हुए, जिससे उनके जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया. गांधी ट्रेन में यात्रा कर रहे थे. उस समय उनके एक मित्र पोलक ने उनको एक पुस्तक दी थी. पुलस्ति की लिखी वह किताब थी. गांधी जी ने अपनी जीवनी में उसका वर्णन करते हुए लिखा है कि 24 घंटे की वह यात्रा थी, जिसमें उन्होंने उस पुस्तक को पढ़ा था. उन्होंने लिखा कि मेरे जीवन की जो सोच थी, सब को उस किताब ने बदल दिया. उसका निचोड़ था कि मजदूर जो काम करता है उसका जीवन आदर्श जीवन है, प्रतिष्ठा का जीवन है जो उसे मिलनी चाहिए. लोगों के बीच जो दूरी और भेदभाव है वह खत्म होना चाहिए. उन्होंने कुछ और भारतीय लोगों के साथ मिल करके उस समय रंगभेद के खिलाफ लोगों को जागृत करने के लिए एक पत्रिका निकालना शुरू किया था इंडियन ओपिनियन. किताब को पढ़ने के बाद उनको लगा कि जिस शहर से वे पत्रिका निकाल रहे हैं वहां से निकालने की जरूरत नहीं है. उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा कि उस प्रेस को वे लेकर फिनिक्स फार्म हाउस में आ जायें और सब मिल जुल कर उसे चलाये. उसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होगा और सब बराबर वेतन उठायेंगे उस काम के लिए . इससे एक समता मूलक विचार की नीव पड़ी. बाद में उन्होंने रंगभेद के खिलाफ वहां के भारतीयों का आंदोलन चलाया जिसमें लगातार इस चीज को बनाये रखा. फिर इससे मिलती जुलती और भी ज्यादा व्यापक घटना हुई जब ट्रासंवाल में भारतीयों के खिलाफ तीन पौंड का टैक्स लगाया गया. उसके खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ जिसमें बहुत बड़ी संख्या में खान के मजदूर और अन्य लोग शामिल हुए. जब सत्याग्रह का आंदोलन शुरू हुआ तो एक और समस्या गांधी जी अौर उनके सहयोगियों के सामने आयी कि सैकड़ों लोग जो जेल में गये, उनके परिवार का क्या होगा. उस समय उनके एक जर्मन दोस्त ने 2100 एकड़ का एक फार्म खरीद कर उन्हें दे दिया. उन्होंने तय किया कि सभी सत्याग्रहियों के परिवार उसमें आ कर रहेंगे और सामुदायिक जीवन पाने की एक पहल शुरू की. सारे के सारे लोग वहां गये. वहां फल के बहुत सारे पेड़ थे और खेती की जमीन थी. सभी लोगों ने सहयोगी रूप से काम शुरू किया. सारे लोग मजदूरी करते थे. वहां घर बनाने में मिस्त्री का भी कुछ सहयोग लिया गया, लेकिन ज्यादा से ज्यादा काम लोगों ने खुद किया. सबसे दिलचस्प बात जो हिंदुस्तान में हुई रहती तो एक बड़ी समस्या बनती, वो यह थी कि सत्याग्रहियों में विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग थे जिनका सहजीवन शुरू हुआ था. उनमें हिंदू, मुसलमान, क्रिश्चन और फारसी थे . चंपारण में आने के बाद गांधीजी को जो नयी चीज मिली, वह थी अंतिम जन की कल्पना. वास्तव में नीलहों के खिलाफ लड़ाई वह बहुत बड़ी लड़ाई नहीं थी. कमेटी बनी, इन्क्वायरी हुआ और धीरे धीरे नील की खेती खुद खत्म होने लगी. इसका कारण था कि नील का एक केमिकल सब्स्टीच्यूट निकल गया.
गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब वे लोग घूम रहे थे तो एक महिला बहुत गंदे कपड़ों में दिखी. गांधी जी ने उससे पूछा कि आप कपड़े क्यों नहीं साफ करती हैं. महिला ने कस्तूरबा को अपने घर ले जाकर दिखाया कि उसके पास दूसरे कपड़े हैं कि नहीं तो कैसे वह इन्हें बदल बदल कर साफ करे. गांधी जी गये थे चंपारण नील की समस्या को लेकर लेकिन यह सब देख कर उन्होंने कस्तूरबा को और महाराष्ट्र और गुजरात से अन्य लोगों को लाकर वहां पूरे समाज के परिवर्तन की शुरुआत की. वहां उन्हें मालूम हुआ कि जो उस महिला की तरह सबसे निचले पायदान पर खड़ा व्यक्ति है, उसे उठाना ही किसी सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य हो सकता है. बाद में उन्होंने कहा भी कि कभी मन में संदेह हो तो कल्पना करो कि तुम जो योजना या नीति बना रहे हो, उसका उस अंतिम जन पर क्या प्रभाव पड़ेगा तो तुम्हारा संदेह अपने आप दूर हो जायेगा. मेरी समझ में चंपारण में गांधी के आने का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यही रहा.
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