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सात साल से मुरौल डायट गोदाम में बंद हैं 10 लाख िकताबें

मुरौल : सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का चाहे जितना दावा कर ले, लेकिन शिक्षा विभाग ही सरकार के इरादों पर पानी फेर रहा है. मुरौल डायट के खुले रूम में पड़ीं किताबें शिक्षा के प्रति लगाव और कार्यशैली में लापरवाही को उजागर कर रहा है. 2010 में मुरौल डायट में छह ट्रक किताबें छात्रों के बीच […]

मुरौल : सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का चाहे जितना दावा कर ले, लेकिन शिक्षा विभाग ही सरकार के इरादों पर पानी फेर रहा है. मुरौल डायट के खुले रूम में पड़ीं किताबें शिक्षा के प्रति लगाव और कार्यशैली में लापरवाही को उजागर कर रहा है. 2010 में मुरौल डायट में छह ट्रक किताबें छात्रों के बीच बांटने के लिए रखी गयी थीं, सारी किताबें यूं ही धूल में पड़ी खराब हो रही हैं.

इन किताबों की देखरेख, तो दूर कोई रिकॉर्ड तक नहीं है. करीब 10 लाख किताबें होने का अनुमान अधिकारी लगा रहे हैं. औसतन 40 रुपये की कीमत पर भी आकलन किया जाये,तो चार करोड़ रुपये की बरबादी हुई है. सरकार बच्चों की पढ़ाई के लिए इतने पैसे खर्च करती है. लेकिन, अधिकारियों की अनदेखी के कारण करीब 10 लाख किताबें बेकार हो गयी हैं. रोचक तथ्य यह है कि इसकी जानकारी विभागीय अधिकारियों को नहीं है. कई पदाधिकारियों ने तो यहां पुस्तक होने की जानकारी से इनकार कर दिया.

एक किताब की 40 से 50 रुपये आती है लागत. विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि एक किताब में लागत
बरबाद हो रहीं
40- 50 रुपये से ज्यादा आती है. बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक पब्लिशिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड के एक प्रिटिंग प्रेसवाले बताते हैं कि ऑफसेट मशीन से एक शीट की छपाई पर एक रुपये लागत आती है, वेब मशीन से 60 पैसे. बाइंडिंग पर करीब तीन रुपये लागत आती है. किताब के पन्नों की संख्या, बाइंडिंग, ऑफसेट या वेब से प्रिटिंग पर निर्भर करता है. इसके अलावा कागज पर खर्च आता है. यानी एक किताब पर कुल 40 से 50 रुपये के बीच लागत आती है. लिहाजा 10 लाख पुस्तकों की अनुमानित कीमत करीब चार करोड़ रुपये है.
अब तो कचरा ही बन जायेंगी बच्चों की किताबें. मुरौल डायट केंद्र में शिक्षा विभाग ने वर्ष 2010 में मुजफ्फरपुर के सभी प्रखंडों के लिए वर्ग एक और दो की अभ्यास पुस्तिकाओं का भंडारण किया था. इनमें सकरा, मुशहरी, कटरा व पारू प्रखंड के स्कूलों की किताबें थीं. लेकिन प्रखंड शिक्षा पदाधिकारियों ने किताबों का उठाव नहीं किया. मोतीपुर व औराई के प्रखंड शिक्षा पदाधिकारियों ने कुछ किताबों का उठाव कराया, बाकी यूं ही छोड़ दिया था. बाकी बचे सारे किताबें कचरे की ढेर में तब्दील हो रहीं हैं. डायट केंद्र के खुले कमरे में पड़ी हुई हैं. जिनको संवारना तो दूर देखरेख करने वाला भी कोई नहीं है.
मुरौल : सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का चाहे जितना दावा कर ले, लेकिन शिक्षा विभाग ही सरकार के इरादों पर पानी फेर रहा है. मुरौल डायट के खुले रूम में पड़ीं किताबें शिक्षा के प्रति लगाव और कार्यशैली में लापरवाही को उजागर कर रहा है. 2010 में मुरौल डायट में छह ट्रक किताबें छात्रों के बीच बांटने के लिए रखी गयी थीं, सारी किताबें यूं ही धूल में पड़ी खराब हो रही हैं. इन किताबों की देखरेख, तो दूर कोई रिकॉर्ड तक नहीं है. करीब 10 लाख किताबें होने का अनुमान अधिकारी लगा रहे हैं. औसतन 40 रुपये की कीमत पर भी आकलन किया जाये,तो चार करोड़ रुपये की बरबादी हुई है. सरकार बच्चों की पढ़ाई के लिए इतने पैसे खर्च करती है. लेकिन, अधिकारियों की अनदेखी के कारण करीब 10 लाख किताबें बेकार हो गयी हैं. रोचक तथ्य यह है कि इसकी जानकारी विभागीय अधिकारियों को नहीं है. कई पदाधिकारियों ने तो यहां पुस्तक होने की जानकारी से इनकार कर दिया.
एक किताब की 40 से 50 रुपये आती है लागत. विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि एक किताब में लागत
बरबाद हो रहीं
40- 50 रुपये से ज्यादा आती है. बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक पब्लिशिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड के एक प्रिटिंग प्रेसवाले बताते हैं कि ऑफसेट मशीन से एक शीट की छपाई पर एक रुपये लागत आती है, वेब मशीन से 60 पैसे. बाइंडिंग पर करीब तीन रुपये लागत आती है. किताब के पन्नों की संख्या, बाइंडिंग, ऑफसेट या वेब से प्रिटिंग पर निर्भर करता है. इसके अलावा कागज पर खर्च आता है. यानी एक किताब पर कुल 40 से 50 रुपये के बीच लागत आती है. लिहाजा 10 लाख पुस्तकों की अनुमानित कीमत करीब चार करोड़ रुपये है.
अब तो कचरा ही बन जायेंगी बच्चों की किताबें. मुरौल डायट केंद्र में शिक्षा विभाग ने वर्ष 2010 में मुजफ्फरपुर के सभी प्रखंडों के लिए वर्ग एक और दो की अभ्यास पुस्तिकाओं का भंडारण किया था. इनमें सकरा, मुशहरी, कटरा व पारू प्रखंड के स्कूलों की किताबें थीं. लेकिन प्रखंड शिक्षा पदाधिकारियों ने किताबों का उठाव नहीं किया. मोतीपुर व औराई के प्रखंड शिक्षा पदाधिकारियों ने कुछ किताबों का उठाव कराया, बाकी यूं ही छोड़ दिया था. बाकी बचे सारे किताबें कचरे की ढेर में तब्दील हो रहीं हैं. डायट केंद्र के खुले कमरे में पड़ी हुई हैं. जिनको संवारना तो दूर देखरेख करने वाला भी कोई नहीं है.
2010 में छह ट्रकों में भर कर आयी थीं िकताबें, कीमत लगभग 4 करोड़
अिधकारी बोले, किताब के बारे में पता नहीं
जहां के बच्चों को किताबें नहीं मिल सकी, वहां अधिकारी का जवाब शिक्षा के लगाव को दिखने के लिए काफी है. पारू बीइओ गुलाब चंद्र राम ने बताया कि जानकारी के अभाव में उठाव नहीं हो सका होगा. बीआरसी से जानकारी लेकर पुस्तक का उठाव कराया जायेगा. मुशहरी बीइओ चंदा कुमारी ने बताया कि Â बाकी पेज 19 पर
अिधकारी बोले, किताब
मामला पूर्व का है. मुझे इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है. जानकारी लेने के बाद कुछ बताऊंगी. कटरा बीइओ मो. ईसा ने बताया कि मामले की जानकारी नहीं है. सर्वशिक्षा अभियान से पता करके पुस्तक का उठाव करवायेगें. सकरा बीइओ रेणु पांडे का सरकारी मोबाइल नंबर बंद बता रहा था. लेखापाल राजीव कुमार ने बताया कि जानकारी लेकर बतायेंगे. अभी कुछ नहीं जानते हैं.
कर्मियों पर हो सकती
है कानूनी कार्रवाई
किताबों की कम आवक के कारण चालू वित्तीय वर्ष में वर्ग छह एवं सात के बच्चों को पुस्तक उपलब्ध नहीं हो सकी थी. दूसरे वर्गों में भी आवश्यकता से कम पुस्तकें उपलब्ध करायी गयी थी. अब विभाग बच्चों से पुरानी किताबें वापस लेने का फैसला लिया है. लोगों का कहना है कि एक तरफ गरीब परिवार के बच्चे किताब के पेज
कर्मियों पर हो सकती
अभाव में अच्छी तालीम हासिल करने में असमर्थ हो रहे हैं. दूसरी ओर डायट केंद्र मुरौल में छह ट्रक किताबें सात वर्षों से नष्ट किये जा रहे हैं. सरकार इसकी जांच करवाये. जिम्मेवार अधिकारियों व कर्मियों पर विधिसम्मत कार्रवाई हो.
यहां इतनी मात्रा में किताब उपलब्ध होने की जानकारी नहीं थी. किस कारण से पुस्तक का उठाव और वितरण नहीं हो सका. यह गंभीर मामला है. इसकी जांच करायी जायेगी.
कामेश्वर कामती, डीइओ, मुजफ्फरपुर
जिला कार्यालय ने यहां अभ्यास पुस्तिकाओं का भंडारण किया था. चार प्रखंड के किसी भी विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने किताबों का उठाव नहीं किया. जो यहां नष्ट हो रही हैं.
चक्रवर्ती हरिकांत सुमन,बीइओ, मुरौल

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