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पुरातात्विक अवशेषों का स्थान के साथ नहीं किया गया मिलान

मुजफ्फरपुर : रामकृष्ण मिशन आश्रम में शनिवार को पुरातत्व की दृष्टि में मुजफ्फरपुर विषय पर शनिवार को व्याख्यान का आयोजन किया गया. अतिथियों का स्वागत करते हुए आश्रम के सचिव स्वामी भावात्मानंद ने कहा कि पुरातत्व एक महत्वपूर्ण विषय है. इससे हम प्राचीन इतिहास की सच्चाई को समझ सके हैं व ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध […]

मुजफ्फरपुर : रामकृष्ण मिशन आश्रम में शनिवार को पुरातत्व की दृष्टि में मुजफ्फरपुर विषय पर शनिवार को व्याख्यान का आयोजन किया गया. अतिथियों का स्वागत करते हुए आश्रम के सचिव स्वामी भावात्मानंद ने कहा कि

पुरातत्व एक महत्वपूर्ण विषय है.
इससे हम प्राचीन इतिहास की सच्चाई को समझ सके हैं व ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध करने में सहायता पहुंची है.
मुख्य वक्ता सच्चिदानंद चौधरी ने कहा कि वैशाली-मुजफ्फरपुर के पुरातात्विक अवशेषों का स्थान के साथ मिलान नहीं किया गया है. वैशाली, चेचर कटरागढ़ खाेदाई का प्रकाशन नहीं हुआ है. महावीर का जन्म कुंडग्राम है, यह वासोकुंड में नहीं होकर सरैया गांव में है. इसके सबंध में उन्होंने प्रमाण प्रस्तुत किया.
उन्होंने महावीर के निर्वाण स्थल को रक्साचौक से उत्तर दिशा में गोविंदकुलकाहा ग्राम में बताया, जहां यह चबूतरा आज भी मौजूद है. जिसे मुगलकाल में मजीठिया कहा गया है. उन्होंने लोकभाषा में कुछ प्रचलित शब्दों जैसे टटका शब्द की व्याख्या की. उन्होंने कहा कि तट के बाहर का जल अर्थात नदी के तट से बाहर बने वास में रखा गया जल ही टटका है.
रामकृष्ण मिशन आश्रम में सेमिनार
यहां की मिट्टी में 41 फीसदी चूना
हरिवंश पुराण में क्षीर सागर के जल से महावीर का अभिषेक किया गया. क्षीर सागर का जल दुधिया रंग का था, क्योंकि इसमें चूना की अधिकता थी, जो कि इस क्षेत्र की मिट्टी की संरचना से स्पष्ट है. यहां की मिट्टी में 41 फीसदी चुने का अंश है. इसकी पुष्टि 25 अप्रैल 2015 को हुए भूकंप से हुआ. सरैया के कई चापाकल से दूधिया जल निकलने लगा. उन्होंने कहा कि गंडक घाटी की संस्कृति में नून कटाया व वाया नदी है. बज्जि महाजनपद की राजधानी तीरयुक्ति जो आधुनिक तितरा है.
दीग्धनिकाय में बज्जि सेनापति सिंह सेनापति जो महावीर का शिष्य था. एक दिन दोपहर में महावीर की इच्छा के खिलाफ पांच सौ रथ सजा कर बुद्ध के कुटीरशाला में पहुंचा. सिंह सेनापति का बुद्ध से मिलने का स्थान सिंहो है. 12वीं शताब्दी की लिखी हुई एक बौद्ध ग्रंथ -प्रज्ञा पारमिता में वैशाली में एक तारादेवी का मंदिर था. दक्षिण में कदाने नदी बहती थी. इस मौके पर पूर्व कुलपति डॉ गोपालजी त्रिवेदी ने बिहार विश्वविद्यालय में पुरातत्व की पढ़ाई का प्रस्ताव रखा व रामकृष्ण मिशन आश्रम में संस्कृति शोध संस्थान व संग्रहालय बनाये जाने का प्रस्ताव रखा. इस कार्यक्रम का संचालन हजारी प्रसाद सिंह व धन्यवाद ज्ञापन स्वामी कृष्णा जी महाराज ने किया.

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