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शिक्षा, कृषि व स्वास्थ्य पर हो विशेष ध्यान
बजट से उम्मीदें. अर्थशास्त्र के प्राध्यापक व रिसर्च स्कॉलर की सरकार से मांग मुजफ्फरपुर : बजट में सिर्फ नये नियमों के प्रावधान से देश का विकास नहीं होगा. इसके लिए बजट में दिये गये रुपयों की मॉनीटरिंग भी करनी होगी. टैक्स स्लैब में छूट के साथ रिटर्न भरने की प्रक्रिया को आसान बनाना होगा. शिक्षा, […]
बजट से उम्मीदें. अर्थशास्त्र के प्राध्यापक व रिसर्च स्कॉलर की सरकार से मांग
मुजफ्फरपुर : बजट में सिर्फ नये नियमों के प्रावधान से देश का विकास नहीं होगा. इसके लिए बजट में दिये गये रुपयों की मॉनीटरिंग भी करनी होगी. टैक्स स्लैब में छूट के साथ रिटर्न भरने की प्रक्रिया को आसान बनाना होगा. शिक्षा, कृषि व स्वास्थ्य क्षेत्र में विशेष पैकेज देकर सरकार उसका लाभ आम लोगों तक पहुंचाए. काॅरपोरेट घरानों से लेकर छोटे उद्योगपतियों के लिए टैक्स की व्यवस्था एक जैसी हो. बजट में परिवार नियोजन को मजबूती से लागू करने के लिए प्रोत्साहन राशि की घोषणा हो. जबतक हमारी आबादी नियंत्रित नहीं होगी, देश में गरीबी व बेरोजगारी की समस्या बनी रहेगी. उक्त विचार अर्थशास्त्र के रिसर्च स्कॉलर छात्रों व प्राध्यापकों के थे.
वे रविवार को प्रभात खबर की ओर से बजट पूर्व आयोजित परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे. सभी वक्ताओं का कहना था कि हमारा देश विकास के मामले में काफी पीछे है. हर वर्ष नया बजट बनता है, लेकिन उसका फायदा लोगों को नहीं मिलता. इसका पीछे एक बड़ा कारण भ्रष्टाचार है. जितना जरूरी बजट बनाना है, उतना ही जरूरी उसे लागू करना भी है. जब तक ऐसा नहीं होगा, हर साल बजट पेश होते रहेंगे, लेकिन आम लोगों की बदहाली समाप्त नहीं होगी. हम यहां छात्रों व प्राध्यापकों के विचार उनके शब्दों में रख रहे हैं .
आर्थिक विकास में सरकार कम करे अपनी भूमिका
सरकार का आकार छोटा व व्यापार बड़ा होना चाहिए. हमारा देश विकास के क्षेत्र में दुनिया में 175वें स्थान पर है. मानव विकास सूचकांक में भी हमसे 135 देश ऊपर हैं. आजादी के बाद जो घोषणाएं की जा रही थीं, अब भी वहीं घोषणाएं की जा रही हैं. कुछ भी बदला नहीं है. तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो हमसे गरीब तीन देश हैं. इनमें नेपाल, म्यांमार व बांग्लादेश का नाम आता है.
इसका प्रमुख कारण यह है कि यहां आर्थिक विकास में सरकार की भूमिका काफी ज्यादा है, जबकि विकसित देशों में ऐसा नहीं है. जो काम एजेंसियों की ओर से होना चाहिए, उसे सरकार कर रही है. जैसे घर में लोग अपने बजट को संभालते हैं, उसी तरह सरकार को भी अपना बजट संभालना चाहिए. फालतू का खर्च नहीं करना चाहिए. सरकार को टैक्स में छूट देनी चाहिए. यदि हम 10 लाख की गाड़ी खरीदते हैं तो उसमें 8.40 लाख टैक्स आता है. खाद्य तेल पर भी 80 फीसदी टैक्स है. इससे समस्या आती है. देश के 1.57 फीसदी लोग टैक्स देते हैं, उसी से सारा बजट बनता है. लोगों का रुपया कैसे खर्च किया जाये, इसका ध्यान सरकार को रखना चाहिए. उपयोगिता के हिसाब से बजट बनाना चाहिए. बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए बजट में प्रोत्साहन का प्रावधान रखना चाहिए.
डॉ चंद्रकांत प्रसाद शाही, प्राध्यापक, अर्थशास्त्र विभाग, पीजी विभाग
कृषि उत्पादकता के लिए हो विशेष प्रावधान
बजट में कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जाये. कृषि उत्पादों से संबंधित आधारभूत संरचना का विस्तार हो. सिंचाई, उन्नत बीज की मार्केटिंग सहज हो. इसके लिए अनुदान मिले. कृषि उत्पादों के लिए बाजार की व्यवस्था भी खुद सरकार करे. किसानों से सीधे उत्पाद खरीदा जाये. इन उत्पादों के निर्यात के लिए आधारभूत संसाधन की उपलब्धता हो. निर्यात सबंधी सहूलित होने से हमारे कृषि उत्पाद का विदेशों में बाजार बनेगा. इससे हमारा देश समृद्ध होगा. बांग्लादेश विकास के मामले में हमसे कमतर है, लेकिन गार्मेंट्स के क्षेत्र में विश्व बाजार में बेहतर निर्यात कर रहा है, जबकि हमारा देश इस मामले में काफी पीछे है.
आखिर इसका कारण क्या है? हमारे यहां मशीन है, कच्चा माल है, प्रशिक्षित कर्मी हैं. बावजूद हम अपनी पहचान विश्व बाजार में नहीं बना रहे हैं. सरकार बजट में ऐसी व्यवस्था करे कि हमारा हुनर विदेशों में जाये. इससे हमारे देश का विकास होगा. परिवार नियोजन को सख्ती से लागू करने के लिए प्रावधान किये जाये. सरकार इसके लिए संसाधन उपलब्ध कराये. जब तक जनसंख्या कंट्रोल नहीं होगा, विकास की बात बेमानी है. बजट चाहे जितना भी बढ़िया बनाया जाये, बढ़ती आबादी के कारण योजनाएं फेल हो जाती हैं. सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में विस्तार के लिए भी योजनाएं बनानी चाहिए.
रवींद्रनाथ ओझा, एसोसिएट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग, आरडीएस कॉलेज
बजट के रुपयों के खर्च की हो मॉनीटरिंग
पिछले वर्ष के बजट में केंद्र सरकार ने 38.5 हजार करोड़ हेल्थ सेक्टर को दिया था, लेकिन जमीनी स्तर पर उन रुपयों से कोई फायदा नहीं दिखा. आखिर उन रुपयों का क्या हुआ. आज भी सरकारी अस्पतालों की वही स्थिति है, जो एक साल पहले थी. सरकार बजट में नये प्रावधान तो लाती है, लेकिन उसकी मॉनीटरिंग नहीं होने से उसका फायदा लोगों को नहीं मिलता.
टैक्स के मामले में भी सरकारी की दोहरी नीति है. बड़े बिजनेसमैन के लिए कई नियमों के तहत टैक्स में छूट है, लेकिन छोटे उद्योगपतियों को पूरा टैक्स चुकाना पड़ता है. टैक्स के लिए रिटर्न भरने की प्रक्रिया काफी जटिल है. सभी लोग कर चोरी करना नहीं चाहते, लेकिन प्रक्रिया काफी मुश्किल है. सरकार को चाहिए कि वह टैक्स रेट कम करे
राजन कुमार, रिसर्च स्कॉलर
शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए बने विशेष बजट
शिक्षा व स्वास्थ्य मानव विकास के दो प्रमुख तत्व हैं. बजट में सरकार को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए. केंद्र सरकार ने आइसीडीसी प्रोग्राम के तहत बिहार सरकार को 11 सौ करोड़ दिये. यह रुपया पंचायतों में जाता है, लेकिन जमीनी स्तर पर जितना फायदा दिखना चाहिए, नहीं दिखता. ऐसा मॉनीटरिंग नहीं होने से होता है. बजट में सरकार आम लेागों के लिए चाहे जितनी भी राहत की बात करें, लेकिन उसकी मॉनीटरिंग नहीं होने से उसका फायदा लोगों को नहीं मिल पाता. शिक्षा
का भी यही हाल है. बजट में शिक्षा की मुलभूत जरूरतों पर ध्यान नहीं दियाजाता. सरकार को चाहिए कि शिक्षा की बुनियादी जरूरतों को
ध्यान में रखते हुए बजट बनाये, जिससे इसका लाभ सभी लोगों को मिल सके.
गुंजन कुमार, रिसर्च स्कॉलर इनकम टैक्स स्लैब में हो बदलाव
इनकम टैक्स के स्लैब में बदलाव जरूरी है. ऐसा नहीं होता है तो लोगों को काफी पैसा टैक्स में जमा करना होगा. नये बजट में किसानों की समस्याओं पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए.
सरकार खेती के लिए विशेष पैकेज बनाये. बजट में किसानों के लिए विशेष छूट का प्रावधान हो, लेकिन यह सिर्फ घोषणा में नहीं रहे, उसका वास्तविक लाभ भी किसानों को मिले. इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की ओर से जागरूकता कार्यक्रम भी चलाना चाहिए, जिससे उन्हें पता हो कि सरकार ने खेती के लिए कौन सी सुविधाएं दी हैं. देश तभी विकास कर सकता है, जब हमारी कृषि व्यवस्था बेहतर होगी. गांव का किसान खुशहाल होगा तो आम लेागों की दशा भी सुधरेगी.
रवि कुमार, रिसर्च स्कॉलर
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