तिरहुत नहर के विस्तारीकरण
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60 फुट ऊंचे इलाके में कैसे जायेगा सिंचाई का पानी ?
तिरहुत नहर के विस्तारीकरण पर किसानों के सवाल मुजफ्फरपुर : तिरहुत नहर का विस्तारीकरण सवालों के घेरे में है. 1800 करोड़ की 60 किलोमीटर लंबी परियोजना स्थानीय किसान ये कह कर विरोध कर रहे हैं कि जिस इलाके तक के लिए ये नहर बनायी जा रही है. वो मुरौल से लगभग साठ फुट ऊंचा है. […]
पर किसानों के सवाल
मुजफ्फरपुर : तिरहुत नहर का विस्तारीकरण सवालों के घेरे में है. 1800 करोड़ की 60 किलोमीटर लंबी परियोजना स्थानीय किसान ये कह कर विरोध कर रहे हैं कि जिस इलाके तक के लिए ये नहर बनायी जा रही है. वो मुरौल से लगभग साठ फुट ऊंचा है. ऐसे में उस इलाके तक नीचे से पानी कैसे जायेगा? इसी बात को लेकर पिछले दस दिन से ये लोग धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. इनका कहना है कि नहर के नाम पर 22 हजार हेक्टेयर उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया है, जबकि इसकी कोई जरूरत
60 फुट ऊंचे
नहीं थी. मुजफ्फरपुर व समस्तीपुर के ये किसान अब आत्मदाह तक की धमकी दे रहे हैं.
लगभग चार दशक पहले जिस तिरहुत नहर परियोजना को तत्कालीन मुख्यमंत्री कपरूरी ठाकुर ने रुकवा दिया था. उस पर 2016 के दिसंबर में अचानक फिर से काम शुरू हो गया. इस बार भी किसानों के हित की दलील दी जा रही है. मुजफ्फरपुर व समस्तीपुर के हजारों किसानों को इस नहर से फायदा होने की बात हो रही है, लेकिन जिन किसानों की भलाई के लिए ये नहर बन रही है. वही, इसके विरोध में हैं. इनका कहना है कि हम लोगों ने इसकी कभी मांग नहीं की और न ही इसकी जरूरत है, क्योंकि नहर खुदाई के नाम पर जिस जमीन का अधिग्रहण किया गया है. वो देश के सबसे उपजाऊ जमीनों में शुमार है. यहां के लोग कहते हैं कि अंगरेजों ने इसे दुनिया की सबसे उपजाऊ जमीन का दरजा दिया था. इसी को लेकर यहां पर कृषि विवि की स्थापना भी अंगरेजों की ओर से की गयी थी.
मुरौल के किसान रोहित कुमार, मौजेलाल राय, जय किशुन साह, लौटन के मिथिलेश कुमार की अपनी दलील है. ये कहते हैं कि महमदपुर कोठी गांव से दलसिंहसराय तक नहर बननी है, लेकिन इससे दलसिंहसराय के खेतों तक पानी कभी भी नहीं पहुंचेगा. पानी नीचे से ऊपर नहीं चढ़ता है. फिर इसकी परिकल्पना इंजीनियरों ने कैसे की, ये समझ से परे है. पिलखी के उमेशचंद्र झा, मुरौल की उप सरपंच नूतन देवी, महमदपुर की सुमिता देवी बताती हैं कि इस बात का खुलासा होना चाहिये कि आखिर किस स्थिति में इतनी बड़ी परियोजना को मंजूरी दी गयी है.
मुरौल के रहनेवाले किसान निवासी गौरीकांत झा, समस्तीपुर के रामललित सिंह, इटहां के अवधेश मिश्र बताते हैं कि जल संसाधन पहले से बनी नहर की उपयोगिता सिद्ध करे, तो हम आगे नहर बनाने दे सकते हैं? क्योंकि अभी जो नहर बनी है. उसमें आम दिनों में पानी नहीं रहता है. बारिश के दिनों में जब खेत-खलिहान तक में पानी भर जाता है, तो इस नहर में पानी आना शुरू होता है और बारिश बंद होने के साथ ही पानी सूख जाता है. शेष लगभग नौ महीने नहर सूखी रहती है, जिसमें बच्चे क्रिकेट आदि खेल खेलते हैं. ऐसे में विभाग की दलीलों पर विश्वास भी किया जाये, तो कैसे?
पिलखी गजपति की मुखिया सीता देवी कहती हैं कि जिस जमीन पर नहर बनाये जाने की तैयारी है. वो इलाके के लोगों के लिए सोने जैसी है, क्योंकि यहां के लोग एक कट्ठा जमीन से साल में 30 से 40 हजार तक की आमदनी नगदी फसल लगा कर करते हैं. नहर बनने से इन लोगों की रोजी-रोटी भी मारी जायेगी. अगर इसके बनने से इलाके के लोगों को फायदा होता, तो हम लोग इसे नहीं रोकते, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
1800 करोड़ की लागत से 60 किलोमीटर लंबी बननी है नहर
इलाके के लोगों ने नहर विस्तारीकरण की नहीं की है मांग
1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बंद कर दिया था काम
लगभग चार दशक बाद फिर से काम शुरू होने पर सवाल
स्थानीय किसान इंजीनियरों की मंशा को बता रहे गलत
दस दिनों से चल रहा है नहर का काम बंद करने का आंदोलन
जमुआरी नहर का
हो जीर्णोद्धार
इलाके के किसान बताते हैं कि अंगरेजों के समय में इलाके की जमीनों को सीचने के लिए तिरहुत कृषि कॉलेज के पीछे से जमुआरी नाम की नहर निकाली गयी थी, जो अब भी है. अगर इसका जीर्णोद्धार करा दिया जाये, तो इससे इलाके के लोगों को लाभ मिल सकता है. सरकार को इसके जीर्णोद्धार की दिशा में काम करना चाहिये.
पूर्व विधायक भी
धरने पर बैठे
नहर विस्तारीकरण के विरोध में धरने पर किसान बैठ रहे हैं, जिनमें बीरेंद्र कुमार राय जैसे किसान नेता भी शामिल है. साथ ही पूर्व विधायक सुरेश चंचल भी किसानों की बात सही मान रहे हैं. वह भी किसानों का साथ दे रहे हैं. स्थानीय जनप्रतिनिधि भी नहर खुदाई के विरोध में हैं. इनका कहना है कि विरोध के बाद भी प्रशासनिक स्तर पर चुप्पी है.
ये बात उन लोगों की समझ में नहीं आ रही है.
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