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समझौतों में बदली शादी की तैयारी, बदलना पड़ा मेनू

मुजफ्फरपुर : नोटबंदी कई मायनों में ऐतिहासिक है. आनेवाले दिनों में क्या होता है, इसको लेकर भले ही बहस चल रही है, लेकिन 16 की बड़ी लगन बीत चुकी है. इसके बाद शादियों में राहत का ऐलान हुआ है, लेकिन जिन लोगों की शादी 16 को हुई है. उनको कई तरह के समझौते नोटबंदी की […]

मुजफ्फरपुर : नोटबंदी कई मायनों में ऐतिहासिक है. आनेवाले दिनों में क्या होता है, इसको लेकर भले ही बहस चल रही है, लेकिन 16 की बड़ी लगन बीत चुकी है. इसके बाद शादियों में राहत का ऐलान हुआ है, लेकिन जिन लोगों की शादी 16 को हुई है. उनको कई तरह के समझौते नोटबंदी की वजह से करने पड़े. दूल्हे अपनी मसपंसद जगह घूमने नहीं जा सके, तो पत्नी को गिफ्ट भी नहीं दे सके, तो जिनके बेटे-बेटियों की शादी थी.

समझौतों में बदली
उन्हें खाने का मेनू बदलना पड़ा. हालांकि राहत की बात ये रही कि ऐसे लोगों को समाज के हर तबके से सहयोग मिला. राशन की दुकानवाले से लेकर ज्वैलर्स तक उधार पर सामान देने को तैयार थे, लेकिन कुछ वसूलों के पक्के लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया, तो कुछ को मजबूरन में ऐसा करना पड़ा. कई लोगों को शादी की रस्मों के दौरान रुपयों के लिए बैंक की लाइन में लगना पड़ा.
ऐसे ही कुछ परिवारों से प्रभात खबर ने बात की. इस दौरान परिवार के मुखिया समेत अन्य सदस्यों ने खुल कर अपनी बात रखी कि कैसे उन्हें परेशान होना पड़ा. हम यहां उन लोगों का नाम नहीं दे रहे हैं, लेकिन जो बात उन्होंने कही. वह हूबहू आपके सामने रख रहे हैं.
16 को हुई शादियों की बात, अभिभावकों व दूल्हों की जुबानी, आठ के बाद बदल गयी स्थिति
लाइन में लग बदलवाये गये नोट
दूल्हों को कैंसिल करनी पड़ी यात्रा
दुल्हन के लिए जेवर लेने पड़े उधार
दहेज के लिए समधी
को मनाना पड़ा
चंदवारा के मध्यमवर्गीय परिवार को रुपयों का इंतजाम करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. आठ की रात जैसे ही नोटबंदी की घोषणा हुई परिवार के लोग परेशान हो उठे. उसी दिन दहेज के लिए दो लाख रुपये बैंक से व एक लाख रिश्तेदार से लिया था. 10 को समधी साहब को
दहेज के लिए
चुकानी थी. लड़की के पिता
बताते हैं कि नोटबंदी की घोषणा होने के बाद समधी साहब को फोन किया, रुपया तो मेरे पास है, लेकिन 500 व 100 का नोट है. आप कहिए तो इसे लेकर आता हूं. समधी साहब ने इनकार कर दिया. वे बोले 100 का नोट प्रबंध कीजिए. मैंने जब अपनी परेशानी का हवाला दिया तो उन्होंने कहा कि हां, मजबूरी तो मैं समझ रहा हूं. लेकिन आप रुपये नहीं देंगे, तो मैं शादी का प्रबंध कैसे करूंगा. बहू के लिए कपड़ा व गहने खरीदने हैं. रुपयों का और भी काम है. यह सब कैसे होगा.
मैंने कहा एक लाख का प्रबंध किसी तरह करता हूं. बाकी रुपये शादी के बाद दूंगा. आखिर कई दौर की बात के बाद समधी जी मान गये. 10 को उन्होंने फोन किया कि आपको जरूरत है, तो आप एक लाख भी रख लीजिये, लेकिन शादी के दिन तक रुपयों का प्रबंध कर दीजियेगा. मेरे पास रुपयों के इंतजाम के लिए आठ दिनों का समय था. मैंने इस बीच बैंक, रिश्तेदारों व पड़ोसियों से रुपयों का प्रबंध किया. इससे मैं अपना किया हुआ वादा पूरा कर सका.
समधी जी बोले, जो खिलाइयेगा खा लेंगे
सिकंदरपुर में भी मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी की शादी 16 नवंबर को हुई, उनके अभिभावक बताते हैं कि नोटबंदी की वजह से शादी में खाने का मेनू बदलना पड़ा. पहले तीन सब्जी प्लान की थी, जिसे दो कर दिया. तीन की जगह एक मिठाई परोसने का फैसला लिया. आइसक्रीम कैंसिल कर दी गयी.
समधी जी बोले
शादी में आनेवाले रिश्तेदारों को कपड़ा देने की योजना बनायी थी, उसे भी रोक दिया. वह कहते हैं कि बेटी की शादी में बदले हालात में सबका सहयोग मिला. ज्वैलर्स ने उधार में जेवर दे दिये. सबसे बड़ी बात रही कि मेरे समधी ने परेशानी को समझा. कहा कि बारात में आनेवालों का कार्ड बांट चुका हूं. लोगों की संख्या तो कम नहीं कर सकता, लेकिन जो सामर्थ्य हो वही खिलाइयेगा, परेशान होने की जरूरत नहीं है. सारे लोग नोटबंदी से होनेवाली परेशानी समझते हैं.
समधी जी की इन बातों से हिम्मत मिली. रिश्तेदारों ने भरोसा दिलाया कि वह हरसंभव सहयोग करेंगे. किराना दुकानदार ने कहा, जितना समान लेना हो, ले जाइये. रुपये बाद में दीजियेगा. जितने लोग मिले, सभी ने कहा चिंता मत कीजिये, जरूरत हो तो बताइये. बेटी की शादी है. सब कुछ प्रबंध होगा. ईश्वर की कृपा से सब कुछ ठीक से हो गया. हालांकि मन में यह मलाल जरूर रह गया कि जैसे सोचा था, उस तरह बेटी की शादी नहीं कर पाया.
गिफ्ट में पत्नी को नहीं दे सका नेकलेस
महीने भर से शादी में ख्वाहिशें पूरी करने का सपना देख रहे ब्रह्मपुरा के युवक की हसरत अधूरी रह गयी. वह अपनी जीवन संगिनी के लिए मनपसंद उपहार नहीं ले सका. शादी के खर्चे में जब रुपयों की जरूरत हुई, तो उसने अपने एकाउंट से रुपये निकाल कर खर्च किये. बैंक से एक सप्ताह के
गिफ्ट में पत्नी
अंदर रुपया दुबारा नहीं निकालने के नियम के चलते रुपया नहीं मिला. कुछ दोस्तों ने रुपये एक्सचेंज करा कर भी दिये, तो उससे जरूरतें पूरी नहीं हुई. विक्रम बताते हैं कि पत्नी को देने के लिए नेकलेस बनवाया था, लेकिन रुपयों का प्रबंध नहीं होने के कारण दुकानदार से नहीं लिया. दुकानदार ने फोन कर कहा कि अगर रुपयों के कारण नहीं आ रहे हैं
तो कोई बात नहीं, बाद में दीजियेगा, लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगा, पत्नी को पहला गिफ्ट दूं, वह भी उधार. नोटबंदी तो अच्छी चीज है, लेकिन शादी भी जीवन का दुर्लभ क्षण है. अगर पहले से सोचे हुए अरमान पूरे नहीं होते हैं, तो मन में कसक जरूर रह जाती है.
मटकोर के दिन बैंक
की लाइन में लगा
शादी के बाद मां का आशीर्वाद लेने के लिए वैष्णों देवी जाना था. दो महीने पहले ही इसके लिए टिकट कराया था, लेकिन नोटबंदी के बाद ऐसी स्थिति बनी कि सारी योजना चौपट हो गयी. बैंक से कुछ रुपये निकाल कर रखे थे, वे तो आठ के बाद ही खर्च होने लगे. रुपयों की कमी हुई तो मटकोर के
मटकोर के दिन
दिन भी बैंक की लाइन में लग कर रुपये निकालने पड़े. शादी में भी खर्चे हुए. बैंकों में रुपया तो है, लेकिन उसे निकाल नहीं सकते. ऐसी हालत में वैष्णो देवी जाना मुश्किल था. यह अफसोस जीरोमाइल व बैरिया रोड में रहने वाले सुधांशु का है. उसने बताया कि पहले से बहुत सारी योजनाएं बनायी थी, लेकिन सब कुछ बेकार हो गया. शादी में भी कंजूसी करनी पड़ी. दोस्तों की पार्टी देनी थी, नहीं दे सका. इस बात से वे नाराज है. रिश्तेदारों की भी मन मुताबिक खातिरदारी नहीं हो सकी. उनकी विदाई के समय उन्हें कपड़े नहीं दे पाया. नोटबंदी अगर पहले या बाद में होती, तो इतनी परेशानी नहीं होती, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि मेरे शादी के समय ही यह सब हुआ. इसे कभी भूला नहीं जा सकता.

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