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उपासना के बाद आज खुलेंगे पट

मुजफ्फरपुर: महासप्तमी की पूजा के लिए शहर के विभिन्न आयोजन स्थल पर तैयारी पूरी कर ली गयी है. साथ ही शहर में मेले का माहौल भी बनने लगा है. शहर के देवी मंदिर रोड, हरिसभा, दुर्गास्थान सहित, रेवा रोड सहित अन्य स्थलों पर खिलौने, खाने-पीने के स्टॉल सहित शृंगार प्रसाधन की दुकानें सज चुकी हैं. […]

मुजफ्फरपुर: महासप्तमी की पूजा के लिए शहर के विभिन्न आयोजन स्थल पर तैयारी पूरी कर ली गयी है. साथ ही शहर में मेले का माहौल भी बनने लगा है. शहर के देवी मंदिर रोड, हरिसभा, दुर्गास्थान सहित, रेवा रोड सहित अन्य स्थलों पर खिलौने, खाने-पीने के स्टॉल सहित शृंगार प्रसाधन की दुकानें सज चुकी हैं. रंगबिरंगी लाइटों से आयोजन स्थल रोशन हो रहे हैं. पूजा आयोजक भी मेले को अंतिम रूप देने में जुट चुके हैं. स्वयंसवेक यातायात सहित मां के दर्शन के लिए आने व जानेवाले लोगों की सुविधा की तैयारी में जुटे हैं. आयोजन स्थल के समीप मुख्य द्वार के समीप स्वयंसेवकों की तैनाती की गयी है.
मां को दिया गया बेल निमंत्रण
षष्ठी तिथि पर शुक्रवार को मां को बेल निमंत्रण दिया गया. कई पूजा आयोजन स्थल से गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा निकाल कर मां को बेल निमंत्रण दिया गया. जूरन छपरा के महामाया स्थान से गाजे-बाजे व छह घोड़े के साथ शोभायात्रा निकाली गयी. इसमें प्रधान बाबा महेंद्र सहनी, पुजारी आचार्य रंजीत नारायण तिवारी सहित मुहल्ले के एक हजार लोग शामिल हुए. शोभायात्रा जूरन छपरा स्थित रोड नं. 3 स्थित सती ठाकुर के आवास पर पहुंची. यहां परिसर में स्थित बेल वृक्ष के समीप पुजारी रंजीत नारायण तिवारी के नेतृत्व में पूजा की गयी.

पं. तिवारी ने आचमन व स्वस्ति पूजन, वाचन व संकल्प के साथ मातृका पूजन, नवग्रह पूजन भगवान विष्णु, शिव पूजन, बेल वृक्ष का पूजन किया गया. पीले वस्त्र पान, सुपारी रख कर मंत्रोच्चार के साथ उसे बेल में बांधा गया. साथ ही मां के आगमन की आराधना की गयी. इसके बाद लोगों के बीच प्रसाद वितरण किया गया. यहां शनिवार की दोपहर में बेल को काटकर मंदिर में लाया जायेगा. इसके बाद विधिवत पूजा के साथ मां का पट खुलेगा. उधर, पंकज मार्केट स्थित साथी परिषद् की ओर से भी बेल निमंत्रण के लिए शोभायात्रा निकाली गयी. भक्तों का जत्था सरैयागंज होते हुए श्री दुर्गा स्थान परिसर स्थित बेल वृक्ष के पास पहुंचा. यहां पूजा-अर्चना के साथ मां के आगमन की अराधना की गयी.

माता कात्यायनी रूप की हुई पूजा
षष्ठी तिथि पर शुक्रवार को मां के कात्यायनी रूप की पूजा की गयी. ऐसी मान्यता है कि मां के इस रूप की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां साधक को स्वयं प्राप्त हो जाती हैं. वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है. इससे रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं. इनके नाम से जुड़ी कथा है कि एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ऋषि थे. उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ऋषि कात्यायन उत्पन्न हुए. उन्होंने भगवती परांबरा की उपासना करते हुए कठिन तपस्या की. उनकी इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें. माता ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली. कुछ समय के पश्चात जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था.
महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं. अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के बाद शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ऋषि ने इनकी पूजा की, पूजा ग्रहण कर दशमी को इस देवी ने महिषासुर का वध किया. इनका स्वरूप अत्यन्त ही दिव्य है. इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है़ इनकी चार भुजाएं हैं, इनका दाहिना ऊपर का हाथ अभय मुद्रा में है, नीचे का हाथ वरदमुद्रा में है. बांये ऊपर वाले हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल का फूल है व इनका वाहन सिंह है. इस दिन साधक का मन आज्ञाचक्र में स्थित होता है. इस चक्र में स्थित साधक कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है. मां कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
आज होगी मां के कालरात्रि रूप की पूजा
आज मां के सातवें रूप कालरात्रि रूप की पूजा की जायेगी. मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं. इसी कारण इनका एक नाम शुभंकारी भी है. इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं. दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं. ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं. इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते. इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है. मां कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए. यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए. मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए.

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