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मुजफ्फरपुर में तैयार हुई गांधी की ‘तकनीक’ की सफलता की ‘जमीन’

गांधी जयंती विशेष मुजफ्फरपुर : इतिहासकार डॉ अशोक अंशुमन कहते हैं, चंपारण सत्याग्रह ने गांधी के जीवन को एक नयी दिशा दी. दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रयोग के तौर पर अहिंसा को अपना ‘हथियार’ बनाया. चंपारण सत्याग्रह ने उनकी इस ‘तकनीक’ पर मुहर लगा दी. चंपारण में विजय ने […]

गांधी जयंती विशेष

मुजफ्फरपुर : इतिहासकार डॉ अशोक अंशुमन कहते हैं, चंपारण सत्याग्रह ने गांधी के जीवन को एक नयी दिशा दी. दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रयोग के तौर पर अहिंसा को अपना ‘हथियार’ बनाया. चंपारण सत्याग्रह ने उनकी इस ‘तकनीक’ पर मुहर लगा दी. चंपारण में विजय ने ही उनका कद देश के नेताओं में सबसे ऊंचा कर दिया. तो वह चंपारण सत्याग्रह ही था, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन को मध्यम वर्ग से निकाल किसानों तक ले गया. या यूं कहें, स्वतंत्रता आंदोलन से किसान जुड़े.
अगर ऐसा है तो, गांधी को ‘गांधी’ बनाने में मुजफ्फरपुर के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता. दरअसल, चंपारण सत्याग्रह की असल जमीन यहीं तैयार हुई थी. हालांकि, अधिकांश इतिहासकार की किताबों में चंपारण सत्याग्रह के जिक्र के दौरान मुजफ्फरपुर में उनके चार दिन के पड़ाव को प्राय: भुला दिया गया है.
प्रमंडलीय आयुक्त अतुल प्रसाद के निर्देश पर इतिहासकारों की एक टीम इन दिनों इस कमी को दूर करने में जुटे हैं. इसके लिए उन किताबों के रिफरेंस इकट्ठे किये जा रहे हैं, जिसमें गांधी के मुजफ्फरपुर पड़ाव के बारे में जिक्र है. इतिहासकार बीबी मिश्रा की किताब में इसका पूरा वृतांत मिलता है. लेकिन, इससे जुड़ी जो महत्वपूर्ण कृतियां हैं,
उसमें आचार्य जेबी कृपलानी, डॉ राजेंद्र प्रसाद, रामनवमी प्रसाद के साथ-साथ खुद महात्मा गांधी की अपनी आत्मकथा शामिल है. एलएस कॉलेज के डायमंड जुबली सोविनियर में भी इसका जिक्र किया गया है. प्रमंडलीय आयुक्त के अभिलेखागार में भी गांधी के मुजफ्फरपुर की यात्रा के संबंध में दो अहम दस्तावेज मिले हैं. पहला, वह पत्र है, जिसमें एलएस कॉलेज में महात्मा गांधी को बुलाने के कारण जेबी कृपलानी को कॉलेज से निकालने का आदेश जारी किया. तो, दूसरा इसके विरोध में तत्कालीन कमिश्नर को स्थानीय लोगों की ओर से लिखा गया पत्र है.
पावर का केंद्र था शहर
डॉ अंशुमन कहते हैं, चंपारण सत्याग्रह को मूल रूप से गांधी से जोड़ कर ही देखा जाता है. पर, वास्तव में इसकी जमीन 1907 में ही तैयार हो चुकी थी. राज कुमार शुक्ल, शेख गुलाब, लोमराज सिंह व शीतल राय जैसे क्षेत्रीय नेता इसकी कमान संभाले हुए थे. सही मायनों में गांधी तो चंपारण आना ही नहीं चाह रहे थे. वो तो राज कुमार शुक्ल थे, जिन्होंने व्यक्तिगत दबाव देकर उन्हें यहां आने को तैयार किया.
उनके लिए जमीन पहले से ही तैयार थी.
चंपारण जाने से पहले गांधी जी मुजफ्फरपुर में ठहरे थे. वे 10 अप्रैल 1917 की रात यहां पहुंचे व 15 अप्रैल की सुबह चंपारण चले गये. चंपारण जाने से पहले मुजफ्फरपुर आने का मुख्य कारण था कि यह उस समय अंग्रेजों के ‘पावर’ का प्रमुख केंद्र था. तत्कालीन कमिश्नर मोसिद यहीं से पूरे चंपारण सत्याग्रह की मॉनीटरिंग कर रहे थे. तो ‘इंडिगो प्लांटर्स एसोसिएशन’ का कार्यालय (अब मुजफ्फरपुर क्लब) भी यहीं था.
शहर से जुड़ी हैं महात्मा गांधी की यादें
तो मुजफ्फरपुर में थम जाती गांधी की यात्रा
चंपारण सत्याग्रह में गांधी टीम के जो अहम सदस्य थे, उनमें से अधिकांश मुजफ्फरपुर में ही उनसे जुड़े. जेबी कृपलानी व राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर गांधी 11 अप्रैल को एलएस कॉलेज पहुंचे. वहीं वे महत्वपूर्ण लोगों से मिलने वाले थे, लेकिन सरकारी कॉलेज होने के कारण लोगों की सलाह पर वे गया बाबू के मकान में जाकर रहें. वहीं लोगों से मुलाकात भी की. इतिहासकारों की मानें तो गांधी की चंपारण यात्रा मुजफ्फरपुर में ही थम जाती, यदि रामचंद्र शुक्ल, शेख गुलाब,
लोमराज सिंह व शीतल राय ने अंग्रेजों काे यह लिख कर नहीं दिया होता कि, गांधी उनके निमंत्रण पर चंपारण में नीलहों पर हो रहे अत्याचार की इन्क्वाॅयरी के लिए आये हैं. तब अंग्रेजों ने उन्हें यहीं गिरफ्तार करने की योजना भी बनायी. लेकिन, इसकी भनक लगते ही गांधी जी 15 अप्रैल 1917 की सुबह चंपारण के लिए रवाना हो गये. चंपारण सत्याग्रह से लौटने के बाद गांधी एक बार फिर अगस्त महीने में मुजफ्फरपुर आये और यहां पब्लिक मीटिंग की. बताया जाता है, यह गांधी की पहली पब्लिक मीटिंग भी थी.

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