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मां की चाहत: आतंकियों का सफाया करके घर लौटे बेटा

मुजफ्फरपुर: कोई मां क्या चाहती है. बेटा सलामत रहे. वह खुश रहे, सुरक्षित रहे. कश्मीर में आतंकियों से लोहा ले रहे संतोष की मां कहती हैं, डर लगता है, क्या होगा? पर इच्छा यही है, मेरा बेटा पाक के आतंकियों का सर्वनाश करे, लेकिन सही सलामत लौट कर घर भी आये. छह महीने से श्रीनगर […]

मुजफ्फरपुर: कोई मां क्या चाहती है. बेटा सलामत रहे. वह खुश रहे, सुरक्षित रहे. कश्मीर में आतंकियों से लोहा ले रहे संतोष की मां कहती हैं, डर लगता है, क्या होगा? पर इच्छा यही है, मेरा बेटा पाक के आतंकियों का सर्वनाश करे, लेकिन सही सलामत लौट कर घर भी आये. छह महीने से श्रीनगर में हालात अधिक खराब है.
बात-बात पर गोली चलती है, पत्थरबाजी होती है. कभी किसी बिल्डिंग में आतंकी छुप जाता है. गोलियां बरसाती हैं. बेटे की पल-पल सलामती जानने की बेचैनी रहती है. कभी फोन नहीं लगता है, तो घर में खाना नहीं बनता. एक बार उसका फोन आ जाये, जान में जान आ जाती है. शहर के बीबीगंज के रहनेवाले संतोष कुमार सुमन सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडेंट हैं जो फिलहाल कश्मीर में तैनात हैं.
कश्मीर में पति के साथ रह रही संतोष की पत्नी रूपा कहती हैं, अब तो आदत सी हो गयी है. बेटी अर्पिता छह महीने से स्कूल नहीं जा रही है. बाहर कर्फ्यू लगा रहता है.

स्कूल महीनों से बंद है. वो जब कभी बीमार होती है तो कर्फ्यू के कारण डॉक्टर के पास भी नहीं जा पाते हैं. हमेशा आशंका रहती है कहीं कुछ हो न जाये. आपस में बात करते पति व इनके सहयोगियों को देखती हूं, तो यही समझ में आता था कि सरकार कुछ नहीं कर रही. सैनिकों के बीच में यही चर्चा थी, सरकार कुछ करती नहीं, न ही करने देती है. पीछे हटने को भी नहीं कहती, गोली मारने भी नहीं देती. खड़े-खड़े पत्थर खाते रहिए. अब सरकार के सख्त कदम व सर्जिकल स्ट्राइक से सैनिकों में जबरदस्त उत्साह है. सब मन ही मन खुश हैं, चलो अब तैयार रहो, कुछ करने का मौका मिलेगा. ईंट से ईंट बजा देंगे. डर भी लगता है, कहीं कुछ अनहोनी न हो जाये. बेटी को देख कर और भी डर जाती हूं.

मुजफ्फरपुर के बीबीगंज में रहे माता-पिता की नजर हमेशा टीवी स्क्रीन लगी रहती है. मोबाइल कॉल का हमेशा इंतजार रहता है. भाई अनंत कुमार सुमन कहता है, डर लगता है. भैया पिछले पंपोर में हुए तीन ऑपरेशन 8 दिसंबर 2015, 20 फरवरी 2016 और बीते 25 जून को लीड कर रहे थे. ऑपरेशन खत्म होने के बाद उनका फोन आता था कि आतंकियों को मार गिराया, तब खुशी का ठिकाना नहीं रहता था. बहन नीलू कहती हैं कि मुझे अपने भाई पर गर्व है.

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