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सौ करोड़ ऋण तले दबा खादी संघ, हजारों बेरोजगार

मुजफ्फरपुर: गौरवशाली बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ, मुजफ्फरपुर एक ओर जहां सौ करोड़ रुपये ऋण तले दबा हुआ है, वहीं दूसरी ओर इसके हजारों कत्तिनों व बुनकरों की रोजी-रोटी छीन चुकी है. वहीं साढ़े तेइस एकड़ लंबे-चौड़े क्षेत्र में फैले इस संघ के भवन खंडहर होते जा रहे हैं. पदाधिकारियों की गुटबाजी भी इसे नुकसान पहुंचाने […]

मुजफ्फरपुर: गौरवशाली बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ, मुजफ्फरपुर एक ओर जहां सौ करोड़ रुपये ऋण तले दबा हुआ है, वहीं दूसरी ओर इसके हजारों कत्तिनों व बुनकरों की रोजी-रोटी छीन चुकी है. वहीं साढ़े तेइस एकड़ लंबे-चौड़े क्षेत्र में फैले इस संघ के भवन खंडहर होते जा रहे हैं. पदाधिकारियों की गुटबाजी भी इसे नुकसान पहुंचाने का काम कर रही है. सरकारी सहायता भी नहीं मिल रही. पूंजी का भी अभाव है. इससे दिनानुदिन इसकी स्थिति में गिरावट आ रही है.

बिहार के गांधी उपनाम से प्रसिद्ध ध्वजा प्रसाद साहू व उनके साथियों लक्ष्मी नारायण, रामदेव ठाकुर, गोपालजी झा शास्त्री, गजानन दास आदि के प्रयास से 1955-56 में सर्व प्रथम मधुबनी में खादी समिति की स्थापना की गयी. बाद में उसे मुजफ्फरपुर स्थानांतरित कर दिया गया. यहां के खादी भंडार से कभी महात्मा गांधी, राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, विनोवा भावे सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के लिए खादी के बेमिसाल कपड़े, धोती, कुरता व चादर भेजी जाती थीं.

यहां निर्मित खादी के कपड़े देश के कोने-कोने में भेजे जाते थे, जिससे लाखों कत्तिनों एवं बुनकरों की रोजी-रोटी मुहैया होती थी. संघ का मुख्यालय होने के कारण यहीं से अविभाजित बिहार के तमाम खादी केंद्रों के संचालन की मॉनिटरिंग होती रही. चार जोन में संपूर्ण बिहार बंटा था. चारों जोन अब भी हैं और सबकी मॉनिटरिंग अब भी होती है. मगर, इसके ज्यादातर केंद्र धूल फांक रहे हैं.

घरेलू उद्योग-धंधे यथा साबुन,अगरबत्ती, धानकुट्टी, मसाला, आटा चक्की आदि की हालत पतली हो गयी है. विभिन्न मौकों पर खादी कपड़ों की खरीदारी में भारी गिरावट आयी है.

समय पर नहीं मिलती छूट
जिला खादी ग्रामोद्योग संघ का भी ह्रास हुआ है. विकेंद्रीकरण के बाद 1978 में स्थापित इस संघ के वर्तमान में मुशहरी, बोचहां व कुढ़नी में कुल बारह केंद्र चल रहे हैं. इसके सभी केंद्रों पर 350 कत्तिन व 46 बुनकर काम कर रहे हैं.

यहां के उत्पादन के बारे में संघ के मंत्री वीरेंद्र कुमार बताते हैं कि गत वित्तीय वर्ष 2012-13 में कपड़े एवं अन्य उत्पादों की कुल बिक्री 1.32 करोड़ की हुई थी. इसमें कपड़ों की बिक्री करीब 60 लाख रुपये की हुई. इसका लगभग 6 लाख रुपये क्लेम सरकार को किया हुआ है, जो आज तक नहीं मिल पाया है. यही नहीं, वित्तीय वर्ष 2009-10 व 2010-11 का क्लेम भी आज तक नहीं मिल पाया. वर्ष 2011-12 के कुल क्लेम की मात्र 46 फीसद राशि ही मिल पायी. सरकारी सहयोग व पूंजी के अभाव के कारण उद्योग पर असर पड़ा है.

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