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प्रशासन के पास नहीं है जिले का नक्शा

मुजफ्फरपुर : जमीन विवाद को सुलझाना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है. लेकिन, बात जिले की करें तो यहां विवादों की संख्या घटने की बजाय, दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. हाल यह है कि सीओ से लेकर एसडीओ व डीसीएलआर कोर्ट तक में सैकड़ों मामले लंबित हैं. मामलों के निष्पादन में देरी का मुख्य कारण […]

मुजफ्फरपुर : जमीन विवाद को सुलझाना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है. लेकिन, बात जिले की करें तो यहां विवादों की संख्या घटने की बजाय, दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. हाल यह है कि सीओ से लेकर एसडीओ व डीसीएलआर कोर्ट तक में सैकड़ों मामले लंबित हैं. मामलों के निष्पादन में देरी का मुख्य कारण प्रशासन के पास जिले का पूरा नक्शा नहीं होना है. ग्रामीण क्षेत्र तो दूर, शहरी क्षेत्र का पूरा नक्शा भी किसी सरकारी

प्रशासन के पास…
रिकॉर्ड रूम में नहीं है. पहले जिला नजारत में नक्शा रखा जाता था. लेकिन बीते छह-सात सालों से वहां कोई नक्शा उपलब्ध नहीं है.
नक्शे के अभाव में न सिर्फ भूमि विवाद के निपटाने में समस्या आती है, बल्कि रैयतों के लगान निर्धारण में भी परेशानी हो रही है. अकेले मुशहरी अंचल के अमीन के पास ही डेढ़ से दो सौ ऐसे आवेदन लंबित हैं. दरअसल,
लगान निर्धारण संबंधित आवेदन अंचल में आने के बाद उसे अभिलेख सहित डीसीएलआर के पास भेजा जाता है. जमीन को लेकर हो रहे विवाद को देखते हुए डीसीएलआर सरकारी अमीन को पुराने व नये रैयत के निर्धारण व संबंधित भू-खंड का नक्शा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपते हैं. रैयत का निर्धारण कैडेस्टल व रिविजनल सर्वे के नक्शा के आधार पर होता है. कोर्ट भी इसे ही मान्यता देती है. सरकारी अमीन के पास संबंधित क्षेत्र का नक्शा नहीं रहने पर वे पुराने या संबंधित क्षेत्र के किसी निजी अमीन से संपर्क करते हैं. इसके बाद भी जब नक्शा नहीं मिलने पर आवेदन लंबित छोड़ दिये जा रहे हैं.
भू-धारी गुलजारबाग प्रेस से साध रहे संपर्क. भूमि विवाद या लगान निर्धारण में देरी से बचने के लिए खुद भू-धारी ही पटना स्थित गुलजारबाग प्रेस से संपर्क कर रहे हैं. प्राय: इसके लिए अंचल कार्यालय से आवेदन अग्रसारित करवाये जाते हैं. कई बार तो भू-धारी सीधे प्रेस से संपर्क साध कर नक्शा प्राप्त कर लेते हैं. इसके लिए उन्हें निर्धारित शुल्क जमा करना होता है.
मन की मापी के लिए मंगवाये गये 46 नक्शे. जमीन का नक्शा नहीं होने के कारण न सिर्फ जमीन विवाद सुलझाने या लगान निर्धारण में परेशानी होती है, बल्कि यह विकास योजनाओं को भी प्रभावित करती है. प्रमंडलीय आयुक्त अतुल प्रसाद के निर्देश पर पिछले दिनों सिकंदरपुर मन की मापी का फैसला लिया गया. लेकिन मन व उसके आस-पास के क्षेत्र का नक्शा नहीं होने के कारण काफी परेशानी हुई. आखिर में सरकारी अमीन के निर्देश पर प्रशासन ने पटना के गुलजारबाग स्थित नक्शाघर से 46 प्लाॅट का नक्शा मंगवाया गया. तब जाकर मापी का काम पूरा हुआ.
‘शकुंतला’ की जमीन का भी नहीं मिला नक्शा. विशेष निगरानी न्यायालय ने पुलिस वेतन घोटाले में आरोपित बर्खास्त महिला आरक्षी शकुंतला की काजीमोहम्मदपुर थाना क्षेत्र की 5.25 डिसमिल जमीन राजसात करने का आदेश जारी किया था. उक्त जमीन रामदयालु गुमटी के उस पार है, जो रिविजनल सर्वे में ग्रामीण क्षेत्र माना गया. इसी के आधार पर इसका केवाला भी हुआ. लेकिन विवाद उस समय शुरू हो गया, जब खुद शकुंतला व जमीन के आस-पास बसे अन्य रैयतों ने उक्त जमीन किसी दूसरे शकुंतला के होने की बात बतायी. इसे निर्धारित करने के लिए नक्शा से मिलान का फैसला लिया गया. तीन दिनों तक सरकारी अमीन इसकी तलाश में कई रिटायर व निजी अमीन से संपर्क साधते रहे.
कोट ::
लगान निर्धारण के लिए यह देखना जरूरी है कि जमीन किसके नाम से है. वह रैयती जमीन है या फिर बिहार सरकार की. रैयती जमीन होने पर वह पूर्व में व अब किसके नाम पर है. उसी आधार पर लगान का निर्धारण किया जाता है. भूमि विवाद सुलझाने के लिए भी यह जानकारी अहम है.
मो शाहजहां, डीसीएलआर पूर्वी
नहीं सुलझ रहे भूमि विवाद के मामले
कोर्ट-कचहरी में बढ़ रही जमीन से संबंधित विवादों की संख्या
रैयत व लगान निर्धारण में
भी हो रही परेशानी
नक्शे के लिए रिटायर अमीन
से करना पड़ रहा संपर्क
जरूरत के हिसाब से पटना
से मंगवाए जा रहे नक्शे
नक्शा नहीं होने की शिकायतें मिल रही हैं. किन क्षेत्रों में ऐसी समस्या है, इसका पता लगाया जा रहा है. डिमांड के आधार पर जल्दी ही नक्शा प्रिंट कर मंगवाया जायेगा.
धर्मेंद्र सिंह, डीएम
पहले नक्शा रिकॉर्ड रूम में रहता था. लेकिन छह-सात साल पूर्व से यह उपलब्ध नहीं है. जो नक्शा था भी उसे अंचल कार्यालयों में भेज दिया गया. फिलहाल यहां कोई नक्शा नहीं है.
अवधेश आनंद, वरीय उप समाहर्ता, जिला नजारत

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