आपस में बंटे हैं कल के होनेवाले डॉक्टर!
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मेडिकल कॉलेज में जाति के आधार पर चलती हैं सात मेस
आपस में बंटे हैं कल के होनेवाले डॉक्टर! मुजफ्फरपुर : शहर के दो बड़े सरकारी संस्थान. एमआइटी व एसके मेडिकल कॉलेज. दोनों जगहों पर जातियां हावी हैं. एमआइटी में जातीय आधार पर मारपीट का मामला सामने आया, तो एसकेएमसीएच में भी जातीय आधार पर मेडिकल के छात्रों के बंटे होने की बात होने लगी. मेडिकल […]
मुजफ्फरपुर : शहर के दो बड़े सरकारी संस्थान. एमआइटी व एसके मेडिकल कॉलेज. दोनों जगहों पर जातियां हावी हैं. एमआइटी में जातीय आधार पर मारपीट का मामला सामने आया, तो एसकेएमसीएच में भी जातीय आधार पर मेडिकल के छात्रों के बंटे होने की बात होने लगी. मेडिकल कॉलेज में अब भी जातियों के आधार पर सात मेस चलती हैं, जिनमें मेडिकल की पढ़ाई करनेवाले छात्रों का खाना बनता है. मेडिकल कॉलेज में
मेडिकल कॉलेज मेें…
लगभग पांच सौ छात्र पढ़ रहे हैं, जो विभिन्न छात्रवासों में रहते हैं.
मेडिकल के छात्रवासों में जातियों का आधार पर मेस चलती हैं. इसका मामला पहली बार 2003 में उठा था, तब कॉमन मेस बनाने की बात भी हुई थी. उस समय ऑल बिहार मेडिकोज एसोसिएशन के अध्यक्ष मेडिकल छात्र रमण कुमार सिंह की ओर से पहल की गयी थी. उन्होंने इस मामले को जोर-शोर से उठाया था. मेडिकल छात्रों के बीच भेदभाव को खत्म करने को कहा था. इसका समर्थन तत्कालीन प्राचार्य डॉ डीके सिन्हा ने किया था, जिनके कहने पर रमण कुमार सिंह ने मेडिकल छात्रों से बात की और कॉमन मेस बनानये जाने की पहल की.
रमण कुमार की पहल पर कॉमन मेस बनना शुरू हुई. छात्रवास संख्या एक, दो व तीन में कॉमन मेस रूम भी बनाया गया, लेकिन ये मेस चालू नहीं हो सकी. बताया जाता है कि बनने के बाद भी इनका हैंडओवर मेडिकल कॉलेज प्रशासन को नहीं मिला है. इसकी वजह से रमण कुमार की ओर से की गयी पहल 13 साल बाद भी पूरी नहीं हुई है.
हॉस्टल में अब भी दलित, पिछड़ी जाति, अति पिछड़ी जाति, वैशय़, सवर्ण, अल्पसंख्यक के हिसाब से मेस चल रही है. इन मेसों के संचालक संजय, बच्चू, कमलेश, नागेश्वर, मनोज, शत्रुघ्न व नागेश्वर सहनी करते हैं. दबी जुबान से इन लोगों ने जातिगत रूप से मेस चलाये जाने की बात कही. इनका कहना था कि यह परंपरा बरसों से चली आ रही है. इसी तरह मेस का आवंटन ही होता आया है.
1973-74 से छोटी-छोटी मेस चलने के कारण एक तरह की सोच रखने वाले छात्र एक जगह पर रहते हैं. कुछ शाकाहारी होते हैं, तो कुछ मांसाहारी. इसको लेकर भी छात्र अलग खाते हैं. गरीब और संपन्न परिवार के छात्र भी रहते हैं, जो अपने हिसाब से अपनी सोच के लड़कों के साथ अलग खाना खाते हैं. वैसे छात्रवास संख्या एक, दो व तीन में कॉमन मेस रूम बनाये गये हैं. चार-पांच साल पहले बनकर तैयार हुआ, लेकिन अबतक हैंडओवर नहीं किये जाने के कारण उसे चालू नहीं किया जा सका है.
डॉ विकास कुमार, प्राचार्य, श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज
कॉमन मेस अब तक चालू नहीं
दशकों से जाति के आधार पर
बन रहा है खाना
2003 में कॉमन मेस पर शुरू हुआ काम नहीं हुआ पूरा
अब भी अलग-अलग जातियों की चल रही मेस
कॉलेज प्रबंधन ने कहा, कॉमन मेस हैंडओवर नहीं
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