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इधर, मुजफ्फरपुर में बिना बारिश के सूख रहा धान

मुजफ्फरपुर : जिले के किसानों पर एक बार फिर मौसम की मार पड़ रही है. बारिश नहीं होने से धान की फसल को लेकर किसान चिंतित हैं. पानी के बिना पीले पड़ रहे धान को बचाने को लेकर किसान परेशान हैं. जिन लोगों ने पंपिंग सेट चला कर सिंचाई की है, उनकी फसल तो जिंदा […]

मुजफ्फरपुर : जिले के किसानों पर एक बार फिर मौसम की मार पड़ रही है. बारिश नहीं होने से धान की फसल को लेकर किसान चिंतित हैं. पानी के बिना पीले पड़ रहे धान को बचाने को लेकर किसान परेशान हैं. जिन लोगों ने पंपिंग सेट चला कर सिंचाई की है, उनकी फसल तो जिंदा है. लेकिन, जो किसान बारिश के इंतजार में हैं, उनकी फसल की स्थिति दयनीय हो गयी है. धान की पत्तियां पीली होकर सूखने लगी हैं. अब किसानों को समझ में नहीं आ रहा कि धान की फसल को किस तरह से बचाया जाय. देहात में कहावत है कि धान की खेती के

इधर, मुजफ्फरपुर में
लिए सावन का सूखा चल जाता है, लेकिन भादो का सूखा भारी पड़ जाता है. कुढ़नी केरमा के प्रगतिशील किसान संतोष कुमार बताते हैं कि धान की अधिकांश फसल खस्ताहाल है. खासतौर पर अगात किस्म का धान प्रभात व राजेंद्र भगवती, जिसे अभी गाभा में होना चाहिए. खेत पकड़े हुए है. पछात धान तो पानी के बिना सूखने की स्थिति में है. खेत में नमी नहीं रहने से धान में बीमारी का प्रकोप भी बढ़ गया है.
पूूंजी डूबने का सता रहा डर
पिछले दो साल से धान व गेहूं की फसल में मार खा रहे किसानों को इस बार फिर पूंजी डूबने का डर सताने लगा है. दरअसल, एक कट्टा खेती करने में किसानों को जुताई, बीज, उर्वरक व मजदूरी पर करीब एक हजार लागत आती है. बारिश नहीं हुई, तो लागत पंद्रह सौ तक चला जाता है. ऐसी स्थिति में मौसम की बेरुखी किसानों के लिए पल-पल भारी पड़ रहा है. किसान नेता नीरज नयन कहते हैं कि स्थिति विकट है. पूंजी वाले किसान तो किसी तरह फसल को बचा रहे हैं, लेकिन सामान्य किसान के लिए धान बचाना चुनौती बन गयी है.
डीजल अनुदान के लिए जमा हो रहे आवेदन
धान को सूखा से बचाने के लिए डीजल अनुदान के लिए राशि तो उपलब्ध करा दी गयी है, लेकिन किसानों के हाथ में पैसा पहुंचने में काफी समय लग सकता है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी किसान सलाहकार आवेदन ही ले रहे हैं. आवेदन का सत्यापन व पेट्रोल पंप की रसीद की जांच के बाद भुगतान होगा. डीजल अनुदान वितरण सरकारी मुलाजिम कितनी मुस्तैदी से करते हैं, इसका अंदाजा पिछले साल के भुगतान से लगाया जा सकता है. एक साल बीतने के बाद भी किसानों को डीजल अनुदान नहीं मिल पाया है.

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