मुजफ्फरपुर : केंद्रीय कारा में जब शहीद खुदीराम बोस को लाया गया था, तो उन्होंने जेलर से भगवत गीता पुस्तक की मांग की थी. जेलर ने उन्हें भगवत गीता उपलब्ध करा दी थी. वे अपनी कोठरी में बैठकर गीता का ही अध्ययन करते रहते थे. 11 अगस्त 1908 को जब खुदीराम बोस को केंद्रीय कारा […]
मुजफ्फरपुर : केंद्रीय कारा में जब शहीद खुदीराम बोस को लाया गया था, तो उन्होंने जेलर से भगवत गीता पुस्तक की मांग की थी. जेलर ने उन्हें भगवत गीता उपलब्ध करा दी थी. वे अपनी कोठरी में बैठकर गीता का ही अध्ययन करते रहते थे. 11 अगस्त 1908 को जब खुदीराम बोस को केंद्रीय कारा में फांसी के लिए कोठरी से बाहर निकाल कर लाया जा रहा था, उन्होंने फांसी स्थल पर अपनी मां से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी.
लेकिन उनकी मां को नहीं बुलाया गया. खुदीराम बोस को जब फांसी दिये जाने की तैयारी की जा रही थी, उस वक्त उन्होंने फांसी स्थल पर कहा था कि मुझे केवल इतना सा अफसोस है कि किंग्सफोर्ड को सजा नहीं मिली. यह कहने के बाद वह हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गये. महज 19 वर्ष की उम्र में 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी दी गयी. जब वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए, उस वक्त वह नौवीं कक्षा में पढ़ रहे थे.
खुदीराम अपने जीवन में ही आजाद भारत का सपना देखते थे. वे अपने दोस्तों से कहा करते थे, भारत ज्ञान का केंद्र रहा है. यह महान देश है. फिर ये फिरंगी यहां क्यों राज कर रहे हैं.
साल में एक बार ही खुलती है कोठरी : देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांति की मशाल जलाने वाले खुदीराम बोस को जहां फांसी दी गयी थी, वह स्थल आज भी सुरक्षित है. लेकिन जहां उनका दाह संस्कार किया गया था, वह स्थान सरकार की उपेक्षा का शिकार है. आज उस स्थल पर शाम में मवालियों की मजघट लगती है. केंद्रीय कारा की जिस कोठरी में खुदीराम बोस को रखा गया था, वह वर्ष में केवल एक दिन उनके शहादत दिवस के मौके पर ही खोला जाता है.
जेल अधीक्षक सत्येंद्र कुमार ने बताया खुदीराम बोस जहां रहते थे और जहां उन्हें फांसी दी गयी थी, उस स्थान की साफ-सफाई और रंग-रोगन वर्ष में एक बार करायी जाती है और उनकी शहादत को याद किया जाता है. केंद्रीय कारा की जिस कोठरी में अंग्रेजों ने खुदीराम बोस को रखा था वह पूजनीय स्थल के रूप में आज भी सुरक्षित है.
यह देश की धरोहर है और सम्मान है. इस कारण इस कोठरी में किसी अन्य कैदी को नहीं रखा जाता. जेल की उस कोठरी को वर्ष में एक बार ही खोले जाने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि यही परंपरा है, जिसका निर्वहन वह भी कर रहे हैं. केंद्रीय जेल अधीक्षक ने कहा कि खुदीराम बोस की 109वीं शहादत दिवस की पूरी तैयारी कर ली गयी है.