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पैरों में छाले भी हों तो ठहराव नहीं

मुजफ्फरपुर : इड बम, डाक बम, बढ़े कदम, डाक बम. माथे पर नारंगी रंग की चौरी पट्टी व कमर की पट्टी में बंधा गंगाजल का डब्बा. पैरों में छाले भी हों तो ठहराव नहीं. रुकना तो बाबा के दरबार में ही है. ऐसी ही आस्स्था से लबरेज डाक कांवरिये लगातार आगे बढ़ रहे थे. रविवार […]

मुजफ्फरपुर : इड बम, डाक बम, बढ़े कदम, डाक बम. माथे पर नारंगी रंग की चौरी पट्टी व कमर की पट्टी में बंधा गंगाजल का डब्बा. पैरों में छाले भी हों तो ठहराव नहीं. रुकना तो बाबा के दरबार में ही है. ऐसी ही आस्स्था से लबरेज डाक कांवरिये लगातार आगे बढ़ रहे थे.
रविवार की शाम से शहर में प्रवेश करते डाक कांवरियों के गले में डाक बम का कार्ड भी लटक रहा था. ताकि उन्हें जलाभिषेक के लिए पंक्तियांबद्ध नहीं होने पड़े. इनके लिए मंदिर में प्रवेश के लिए सामान्य कावंरियों से अलग मार्ग बनाया गया था. तीसरी सोमवारी पर डाक कांवरियों की संख्या सबसे अधिक थी. रामदयालु नगर से शहर में प्रवेश करने के बाद डाक कांवरियों को भी आगे बढ़ने में थोड़ी परेशानी हुई. लेकिन डाक बम के उद्घोष सुन कर सामान्य कांवरिये उन्हें तुरंत रास्ता देने लगे. विभिन्न सेवा शिविरों में मौजूद स्वयंसेवक भी डाक कांवरियों के लिए रास्ता बना रहे थे. एक तरह से उनको स्कॉट कर आगे लाया जा रहा था. डाक कांवरिये बाबा का उद्घोष करते हुए आगे बढ़ रहे थे.
रामदयालु से आगे बढ़ते ही स्वयंसेवक उनके लिए रास्ता बनाने के लिए दौड़ पड़ते. कांवरियों के रास्ते को खाली कराने के लिए बाबा नगरी में प्रवेश से लेकर पुरानी बाजार तक स्वयंसेवक जुटे रहे. पुरानी बाजार पहुंचते ही इन्हें प्रभात टॉकिज रोड से मक्खन साह चौक के लिए प्रवेश कराया जाता. यहां से बैरिकेडिंग के रास्ते डाक कांवरिये मंदिर तक पहुंच रहे थे.

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