मुजफ्फरपुर : रमजान के महीने में लाेग पूरे मन से रोजा रख रहे हैं. अल्लाह का नियम ऐसा कि कोई भी रोजा छोड़ना नहीं चाहता. सुबह से जो इबादत का दौर शुरू होता है वह देर रात तक चलता है. सेहरी के बाद नमाज होते ही लोग इबादत में डूब जाते हैं. यह सिलसिला देर रात तक चलता है. पांचों वक्त के नमाज के साथ तराबी पढ़ना लोगों की आदतों में शुमार हो गया है.
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अल्लाह के बनाए गए नियमों के अनुसार पूरा कर रहे फर्ज
मुजफ्फरपुर : रमजान के महीने में लाेग पूरे मन से रोजा रख रहे हैं. अल्लाह का नियम ऐसा कि कोई भी रोजा छोड़ना नहीं चाहता. सुबह से जो इबादत का दौर शुरू होता है वह देर रात तक चलता है. सेहरी के बाद नमाज होते ही लोग इबादत में डूब जाते हैं. यह सिलसिला देर […]
शाम होते ही शहर के कई इलाकों की रंगत देखते ही बन रही है. सामूहिक रूप से इफ्तार के साथ लोग अल्लाह से दुआ कर रहे हैं. मौलाना शमशुल हसन कहते हैं कि जो रोजा रखते हैं लेकिन गलत काम करते हैं वे रमजान के दौरान रोजा रखने का महत्व नहीं समझते. मुहम्मद साहब ने कहा है कि ऐसा करने वालों को सिर्फ भूख व प्यास ही मिलती है.
रोजे में हम अपनी बुरी आदतों पर काबू कर हमेशा गलत नहीं करने की तैयारी करते हैं. इस महीने में रोजे रखना सभी बालिग और स्वस्थ लोगों के लिए वाजिब बताया गया है. बीमार, बूढ़े, सफर कर रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं व दूध पिलाने वाली माताओं को रोजे रखने या ना रखने की आजादी दी गई है.
जकात हर रोजेदार का फर्ज
हर मुसलमान के लिए जकात देना भी इस्लाम में फर्ज बताया गया है. जकात उस पैसे को कहते हैं जो अपनी कमाई से निकाल कर खुदा की राह में खर्च किया जाए. इस पैसे का इस्तेमाल समाज के गरीब तबके की सेवा के लिए किया जाता है. मान्यता है कि जकात रमजान के महीने में बीच में ही दे देनी चाहिए ताकि रमजान के बाद आने वाली ईद पर गरीबों तक यह पहुंच सके. वह भी ईद की खुशियों में शरीक हो सके.
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