मुजफ्फरपुर: रहमत व बरकत से भरे रमजान के महीने में लोग रोजा रख रहे हैं. खुद को खुदा की राह की सख्त कसौटी पर कसने का मौका देने वाला यह महीना हर बंदे के लिए नेमत है. लाेग अल्लाह के बताए गए नियमों के अनुसार अपना फर्ज भी निभा रहे हैं. इफ्तार के समय विभिन्न […]
मुजफ्फरपुर: रहमत व बरकत से भरे रमजान के महीने में लोग रोजा रख रहे हैं. खुद को खुदा की राह की सख्त कसौटी पर कसने का मौका देने वाला यह महीना हर बंदे के लिए नेमत है. लाेग अल्लाह के बताए गए नियमों के अनुसार अपना फर्ज भी निभा रहे हैं. इफ्तार के समय विभिन्न मुहल्लों में सामूहिक इफ्तार का नजारा रोजे का फर्ज बताता है. लोग नेक नीयत से सुबह से रात तक अल्लाह की इबादत में डूबे हैं.
इफ्तार समाप्त हुआ तो कुछ देर बाद फिर तरावीह पढ़ने के लिए मसजिदों में लेागों का जत्था उमड़ रहा है. रमजान में दिन भर भूखे-प्यासे रहकर खुदा को याद करने की मुश्किल साधना करते रोजेदार को अल्लाह खुद अपने हाथों से बरकतें नवाजता है. मौलाना एहतेशाम कहते हैं कि यह महीना कई मायनों में अलग और खास है. अल्लाह ने इसी महीने में दुनिया में कुरान शरीफ को उतारा था जिससे लोगों को इल्म और तहजीब की रोशनी मिली. साथ ही यह महीना मोहब्बत और भाईचारे का संदेश देने वाले इस्लाम के सार तत्व को भी जाहिर करता है.
मौलाना कहते हैं कि रोजा सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं है, बल्कि हर निजी ख्वाहिश पर काबू करने की कवायद है. इससे मोमिन में न सिर्फ संयम और त्याग की भावना मजबूत होती है, बल्कि वह गरीबों की भूख-प्यास की तकलीफ को भी करीब से महसूस कर पाता है. रमजान का महीना सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत करने में मददगार साबित होता है. इस महीने में लोग अनिवार्य रूप से अपनी कमायी का एक हिस्सा निकालकर उसे जकात के तौर पर गरीबों में बांटते हैं.
उन्होंने कहा कि रमजान के महीने में अल्लाह के लिए हर रोजेदार बहुत खास होता है. खुदा उसे अपने हाथों से बरकत और रहमत नवाजता है. रमजान की खासियत का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि इसमें बंदे को एक रकात फर्ज नमाज अदा करने पर 70 रकात नमाज का सवाब मिलता है.