मुजफ्फरपुर: नीचे से ऊपर तक शिक्षा की जो व्यवस्था है उसमें विशेष दृष्टि का अभाव है. दिल्ली में जो शिक्षा नीति तय होती है, देहात से उसका कोई वास्ता नहीं है. भारत में क्षेत्रीय विषमताएं हैं, वर्ग भेद है.
और आर्थिक दृष्टि से समरूपता नहीं है. ऐसी स्थिति में समग्रता मूलक शिक्षा की योजना बनाना संभव नहीं है. हमारे यहां कई तरह की शिक्षा पद्धतियां प्रचलित है, जो आधुनिक चुनौतियों का मुकाबला करने में पिछड़ रही है. नियमों व कायदों से बांध कर हम उच्च शिक्षा को एवरेस्ट तक नहीं पहुंचा सकते हैं. कहने को तो हमारे यहां उच्च शिक्षण संस्थान स्वायत्त हैं, किंतु वे वस्तुत: सरकारों के मोहताज हैं. हम नौकरियों के पीछे भाग रहे हैं, रोजगार के अवसरों को खोज रहे हैं. इस परिपेक्ष्य में वास्तविक शिक्षा लुप्त सी हो गयी है.
आज वास्तविक प्रतिभाओं की खोज नहीं हो पाती है. ऐसी ही स्थिति में रवींद्र नाथ ठाकुर ने विश्व भारती की परिकल्पना की थी, जिसके द्वारा उन्होंने कलाओं व संस्कृति की ओर जन-जीवन को उन्मुख किया था. हम आर्यभट्ट विश्वविद्यालय को भी तकनीकी उत्थान का माध्यम न बना कर, केवल परीक्षाओं के जाल में फंस रहे हैं. हम नालंदा विवि के पुराने गौरव को लौटाना चाहते हैं, परंतु हम विशेष जीवन दर्शन के अभाव में ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. यूजीसी जैसी संस्था केवल अनुदान बांट रही है. हमारे यहां के तमाम शिक्षण संस्थान पूर्णात्मक ढंग से पिछड़े हुए हैं. कुछ दूरदर्शी लोग विद्यार्थियों को नये सिरे से ज्ञान देना चाहते हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है. रामकृष्ण मिशन के विद्यालय अपवाद की तरह हैं. हम जिस विकास की बात करते हैं वह तब तक साकार नहीं हो सकता है, जब तक शिक्षा के नये प्रतिमान संस्थापित न हों.
आज आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण व डॉ लोहिया के समाजवादी चिंतन को दृष्टि पथ में रखते हुए एक समावेशी शिक्षा नीति बनाने की जरूरत है, जो शरीर और मन दोनों के लिए उपयोगी हो. हम विदेशी शिक्षा को आदर्श मान रहे हैं, भारत की परंपरागत शिक्षा को भूलते जा रहे हैं.मनोविज्ञान में नींद में चलने की बीमारी का वर्णन किया जाता है. आज हमारी शिक्षा नीति नींद में चल रही है. हम उठे तो हैं, लेकिन जगे नहीं है. और बोध के तो बिल्कुल निकट नहीं है. शिक्षा का मूल दर्शन है बोध की प्राप्ति. स्वयं को जानना, विषय को जानना व संसार को जानना ज्ञान नहीं है, सिर्फ सूचना है. सूचना क्रांति के विस्फोट के इस युग में हम बोध नहीं सूचनाओं के पीछे दौड़ रहे हैं. नयी शिक्षा नीति की नींव तब तक नहीं डाली जा सकती है, जब तक सम्यक ज्ञान का उन्मेष नहीं हो. शिक्षाविदों के समक्ष नये साल में यह एक चुनौती है कि हम मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए उसे सही ज्ञान दें, उसे समृद्ध बनाये.