मुजफ्फरपुर: एक हफ्ते के अंदर जिले में लूट की दो बड़ी वारदात को सुलझाने में पुलिस असफल साबित हो रही है. पुलिस को अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि किस आपराधिक गिरोह ने घटना को अंजाम दिया है. लापरवाही का आलम है कि लूट, रंगदारी, हत्या, छिनतई, ट्रक लूट, बाइक चोरी जैसे गंभीर मामलों में जेल भेजे गये अपराधियों के जमानत पर रिहा होने की मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही है.
इस कारण दो माह के अंदर जिले में अपराध की घटना में अचानक वृद्धि हुई है. लूट व छिनतई की घटना में जेल में बंद कई आरोपित जमानत पर बाहर आ चुके है, लेकिन पुलिस को इसकी भनक तक नहीं है. जमानत पर छूटे अपराधी बाइक, बोलेरो चोरी, छिनतई जैसी घटना को लगातार अंजाम दे रहे है. घटना होने के बाद संभावित अपराधियों की सूची बना कर पुलिस उनकी खोज में जुटती है. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता है. तीन माह के दौरान एक भी बड़ी घटना का पुलिस उदभेदन नहीं कर पायी है. वही अपराधियों पर नकेल कसने के लिए जिले में बनी एसआइटी कागजों पर ही काम कर रही है.
ट्रक लूट की घटना से परेशान पुलिस को चार माह पूर्व सकरा थाना क्षेत्र के शातिर धन्ना सेठ को गिरफ्तार करने में सफलता मिली थी. उसकी गिरफ्तारी के बाद ट्रक लूट की घटनाओं पर कुछ हद तक लगाम लगा था, लेकिन एक माह से फिर से ट्रक लूट की घटना में बढ़ोतरी हो गयी है. एक हफ्ते पूर्व सकरा से लूटे गये ट्रक मामले में पुलिस ने दरभंगा जेल में बंद धन्ना सेठ के भाई नरेश को गिरफ्तार किया था.छानबीन में मामला सामने आया कि वह जेल से ही फिर से नया गिरोह खड़ा कर ट्रक लूट की घटना को अंजाम दे रहा है.
अपराधियों का फोटो एलबम नहीं : जिले में बड़ी घटना होने के बाद क्राइम कंट्रोल के लिए कई योजनाएं बनती है. लेकिन कुछ दिन बाद सारी योजनाएं कागजों पर ही सिमट जाती है. उत्तर बिहार का सबसे प्रमुख शहर होने के बाद मुजफ्फरपुर जिले में गंभीर कांड में सक्रिय अपराधियों का फोटो एलबम पुलिस के पास उपलब्ध नहीं है. घटना होने के बाद पीड़ित के बताये गये हुलिये पर पुलिस संभावित अपराधी पर शक जाहिर करते हुए अनुसंधान करती है. तत्कालीन एसएसपी राजेश कुमार के कार्यकाल में अपराधियों का फोटो एलबम तैयार करने की योजना पर पहल की गयी थी, लेकिन उनके तबादले के बाद पूरी योजना ठप पड़ गयी. नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिस पदाधिकारी बताते है कि जिले में कार्यरत कई थानेदार के पास लूट, हत्या, अपहरण, बाइक चोरी,बोलेरो चोरी, छिनतई जैसे मामलों में जेल गये सक्रिय अपराधियों का फोटो उपलब्ध है, लेकिन उसका उपयोग नहीं हो रहा है. अपराधियों के पकड़े जाने के बाद अलग-अलग कोण से उसका फोटो लेकर एलबम तैयार वरीय पुलिस अधिकारियों को कराना चाहिए. इससे भविष्य में अपराध नियंत्रण में मदद मिलेगी. फोटो एलबम की कॉपी प्रत्येक थाने में रहनी चाहिए. रेवा घाट पुल पर 31 लाख लूट की घटना होने के बाद पुलिस के पास अगर फोटो एलबम होता, तो अपराधियों की पहचान करायी जा सकती थी.