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आशियाना के इंतजार में बीत गया साल

आशियाना के इंतजार में बीत गया साल – बागमती बांध विस्थापितों को छह साल बाद भी नहीं मिला मुआवजा व पुनर्वास के लिए जमीन – 44 गांव में से सिर्फ एक दर्जन का गांव को मुआवजा, चार गांव की राशि लैप्स – विस्थापितों के पुनर्वास के लिए जारी किया गया था रोस्टर – जनवरी 2015 […]

आशियाना के इंतजार में बीत गया साल – बागमती बांध विस्थापितों को छह साल बाद भी नहीं मिला मुआवजा व पुनर्वास के लिए जमीन – 44 गांव में से सिर्फ एक दर्जन का गांव को मुआवजा, चार गांव की राशि लैप्स – विस्थापितों के पुनर्वास के लिए जारी किया गया था रोस्टर – जनवरी 2015 तक सभी गांव का पुनर्वास व मुआवजा का डेड लाइन था तय प्रभात कुमार, मुजफ्फरपुर बागमती तटबंध योजना में विस्थापित हजारों परिवार आशियाना के लिए इंतजार करते रह गये, और साल गुजर गया. छह साल से मुआवजा व घर बनाने के लिए जमीन के लिए टकटकी लगाये विस्थापितों के पुनर्वास के लिए जिला प्रशासन ने 2014 में ही गांव वार रोस्टर तय किया था.जनवरी 2015 तक तटबंध से विस्थापित सभी 44 गांव को पुनर्वास व मुआवजा के लिए डेड लाइन तय हुआ था. लेकिन विशेष भू अर्जन विभाग के कछुए की चाल के कारण अधिकांश विस्थापितों को मुआवजा व घर बनाने के लिए जमीन नहीं मिली. सिर्फ एक दर्जन गांव का मुआवजा दिया गया है, वह भी सभी लाभुक को नहीं मिला है. बताया जाता है कि जिनकी पहुंच रतवारा स्थित भू अर्जन कार्यालय में है, उनलोगों को ही पैसा मिल पाता है. बाकी लोग कार्यालय का चक्कर लगाकर लौट आते हैं. कई बार मुआवजा वितरण के लिए विभाग की ओर से कैंप भी लगाया गया. लेकिन यह खानापूर्ति बन कर रह गया. यही कारण है कि जिन गांव में मुआवजा बंटा है, यह भी आधा-अधूरा ही है. खजाना में सौ करोड़, फिर भी इंतजार बागमती विस्थापितों के मुआवजा पुनर्वास के लिए जमीन उपलब्ध कराने के लिए विशेष भू अर्जन विभाग के पास प्रर्याप्त राशि है. करीब एक साल पहले विभाग को सौ करोड़ राशि दिया गया. लेकिन एस्टीमेट बनाने में लेट-लतीफी के कारण विस्थापितों के पुनर्वास अधर में लटका हुआ है. यही नहीं, चार गांव गंगेया उर्फ परमानंदपुर, मधौल सामे उर्फ बघराम नगर, हरखैली आादि गांव के विस्थापितों को बसाने के लिए बीस एकड़ जमीन का अधिग्रहण करना था. योजना पर काम नहीं होने से लैप्स कर गया. बाढ़ में बांध पर गुजारते जिंदगी बाढ़ के दौरान विस्थापितों की जिंदगी खानाबदोश की हो जाती है. जानमाल की सुरक्षा के लिए लोग बांध पर शरण लेते हैं. यही नहीं, बाढ़ अघिक समय तक रहने पर लोगों को रिश्तेदार के पास जाना पड़ता है. हालांकि दो साल से बाढ़ का प्रकोप कम होने से विस्थापितों को कम परेशानी झेलनी पड़ी है. ये गांव हुए विस्थापित नया गांव, मधुबन प्रताप, पटोरी, बहुआरा, बाड़ा बुजुर्ग, बभनगावां, चहुंटा, चैनपुर, तेजौल, सुंदर खौली, मथुरापुर बुजुर्ग, बसुआ, शिवदासपुर, धनौर, कटरा, बरहेटा रमई उर्फ मोहनपुर, वकुची, पतौरी, अंदामा, नवादा उर्फ ख्ंगुरा, वरारी, परमानंदपुर, हरपुर कमाल, जमालपुर कोदई, चनौली, धरमपुर शीतल, हरखौली, गोपालपुर, जीवाजोर, जनाढ़, बेनीपुर उत्तरी व दक्षिणी, बैजनाथपुर व भरथुआ शामिल है.

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