हर महीने एक बंदी हो रहा डिप्रेशन का शिकारप्रभात खास- दो साल में जेल के अंदर 25 बंदी हुए डिप्रेशन के शिकार- 25 बंदी सेंट्रल जेल में हैं, हर दो दिन पर मचाते हैं उत्पात – बंदियों को कोइलवर आरोग्यशाला ने किया वापस – मनोचिकित्सक का पद रिक्त होने से कैदियों की नियमति जांच नहीं – मानिसक रोगियों के बढ़ने को लेकर जेल प्रशासन ने गृह विभाग को लिखा पत्र कुमार दीपू, मुजफ्फरपुर शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में डिप्रेशन बंदियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. पिछले दो सालों में जेल के अंदर 25 बंदी डिप्रेशन के शिकार हुए हैं. इस अनुपात में जेल के अंदर हर माह एक बंदी डिप्रेशन के शिकार हो रहा है. वर्ष 2013-14 में 25 बंदियों की जांच करायी गयी. इनमें 12 बंदी डिप्रेशन के शिकार मिले. इसके बाद वर्ष 2014-15 में भी 27 बंदियों की मेडिकल बोर्ड करा कर जांच करायी गयी. इसमें 12 बंदी फिर डिप्रेशन के शिकार मिले. डिप्रेशन के शिकार बंदियों को इलाज के लिए अभी मानसिक आरोग्यशाला नहीं भेजा गया है. सभी बंदी केंद्रीय कारा में ही हैं. आलम यह है कि यह बंदी हर दूसरे दिन किसी न किसी बात पर अपने आप को घायल कर लेते हैं. केंद्रीय जेल अधीक्षक ने 12 बंदी को कोइलवर आरोग्यशाला इलाज के लिए भेजा था, लेकिन आरोग्यशाला ने इन बंदियों को यह कह कर वापस कर दिया कि उनके पास रखने की जगह नहीं है. बंदियों की बढ़ती तादात को लेकर जेल प्रशासन इस असमंजस में है कि इन बंदियों को इलाज के लिए कहां भेजा जाये. जेल में मनोचिकित्सक का पद रिक्त सेंट्रल जेल में मनोचिकित्सक का पद रिक्त होने से कैदियों की नियमित जांच नहीं हो पा रही है. जेल में हर माह एक बंदी मानिसक रोग का शिकार हो रहा है. इस रोग पर काबू पाने के लिए जेल प्रशासन ने वैकिल्पक व्यवस्था भी की, लेकिन लंबे समय से यह पद रिक्त रहने से वैकिल्पक व्यवस्था नाकाफी साबित हो रही है. जेल के अंदर करीब दो हजार बंदियों की लगातार जांच नहीं हो पा रही है. मानसिक रोगियों के बढ़ने को लेकर जेल प्रशासन ने गृह विभाग को पत्र लिख इससे अवगत कराया है. घुसते ही निगरानी शुरूजेल में घुसते ही बंदी पर निगरानी शुरू हो जाती है. अगर कोई दंडित बंदी व विचाराधीन कैदी असामान्य व्यवहार करता है तो उसका जेल में 24 घंटे में स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाता है. इसके साथ ही उसके व्यवहार पर निगाह रखी जाती है. जेल का स्टाफ उसे सुपरविजन में रखता है. इसके अलावा जो बंदी अवसाद में आकर मानसिक रोग का शिकार हो जाते हैं, उनका व्यवहार देखने के बाद जेल प्रशासन जेल अधिकारियों को रिपोर्ट देते हैं. इसके आधार पर मनोरोगी बंदी की इलाज के लिए एसकेएमसीएच भेजी जाती है. बोले केंद्रीय जेल अधीक्षक जो व्यक्ति जेल में आता है, उसे हर समय यह डर सताता रहता है कि उसकी इज्जत खराब हो गयी. घर पर बच्चों का क्या हाल होगा? लोग उन्हें किस नजर से देखते होंगे? अधिकतर बंदी चिंतित रहते हैं कि उनकी सजा बच्चों को नहीं मिले. स्कूल में बच्चों से पिता के बारे में पूछा जायेगा, तो वे क्या जबाव देंगे? ऐसी कई बातें सोच कर बंदी डिप्रेशन के शिकार हो जा रहे हैं. उन्होंने कहा, बंदियों को मनोचिकित्सक के सहयोग से समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है.
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हर महीने एक बंदी हो रहा डप्रिेशन का शिकार
हर महीने एक बंदी हो रहा डिप्रेशन का शिकारप्रभात खास- दो साल में जेल के अंदर 25 बंदी हुए डिप्रेशन के शिकार- 25 बंदी सेंट्रल जेल में हैं, हर दो दिन पर मचाते हैं उत्पात – बंदियों को कोइलवर आरोग्यशाला ने किया वापस – मनोचिकित्सक का पद रिक्त होने से कैदियों की नियमति जांच नहीं […]
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