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या हजरते सब्बीर हमारा सलाम लो…

या हजरते सब्बीर हमारा सलाम लो… -चेहल्लुम के मौके पर शिया समुदाय ने निकाला इमाम का ताबूत व अलम -लोगों ने इमाम की याद में बहाए जार-जार आंसू फोटो::: संवाददाता, मुजफ्फरपुर मजलुमे करबला के चेहल्लुम पर कमरा मुहल्ला इमामबाड़ा से गुरुवार को विशाल जुलूस निकाला गया. चेहल्लुम का जुलूस सबसे पहले नवाब रोड स्थित मरहूम […]

या हजरते सब्बीर हमारा सलाम लो… -चेहल्लुम के मौके पर शिया समुदाय ने निकाला इमाम का ताबूत व अलम -लोगों ने इमाम की याद में बहाए जार-जार आंसू फोटो::: संवाददाता, मुजफ्फरपुर मजलुमे करबला के चेहल्लुम पर कमरा मुहल्ला इमामबाड़ा से गुरुवार को विशाल जुलूस निकाला गया. चेहल्लुम का जुलूस सबसे पहले नवाब रोड स्थित मरहूम वारिस हुसैन के दौलतखाना से निकला. इससे पहले यहां मजलिस हुई. खिताब आली जनाब माैलाना अकील अब्बास ने किया. उन्होंने कहा कि इमाम 10 मुहर्रम को कर्बला में शहीद हुए थे. 11 मुहर्रम को उनके घरवालों को कैदी बनाया गया. फिर उन्हें शाम लाया गया. इमाम हुसैन की बहन व उनके बेटे सज्जाद को कैद कर लिया गया. चेहल्लुम के एक दिन पूर्व यजीज ने उनको आजाद किया. इमाम की बहन जैनब ने कर्बला के मैदान में आकर इमाम व उसके 72 साथियों का चेहल्लुम मनाया. मजलिस के बाद नवाब रोड पर जुलजना व अलम मुबारक का जुलूस निकाला गया. यह जुलूस कमरा मुहल्ला स्थित इमामबाड़ा पहुंचा. यहां से एक विशाल जुलूस निकला, जो बनारस बैंक चौक, दुर्गा स्थान रोड व टावर होते हुए मेंहदी हसन चौक स्थित कर्बला पहुंचा. -जंजीर व कमा का मातम करते रहे लोग जुलूस में इमाम हुसैन का ताबूत व अलम के साथ सैकड़ों की संख्या मेंलोग शामिल हुए. रास्ते भर वे जंजीर, ब्लेड व कमा का मातम करते रहे. लोग नोहा पढ़ रहे- बयत्था सर यही था तकाजा यजीद का, मायूस तो कोई भी सवाली नहीं गया, अवयत न की हुसैन ने सर दे दिया उसे, इस दर से यजीज भी खाली नहीं गया. इसके साथ ही मातम करने लगे. कर्बला पहुंचकर लोगों ने अलविदा का नोहा पढ़ा- या हजरते सब्बीर हमारा सलाम लो, ए कुस्तए शमसीर हमारा सलाम लो. इसके साथ ही अलविदा कहा. जुलूस में हसन चक बंगरा, चैनपुर, पैगंबरपुर, कोल्हुआ व खेमाइपट्टी के शिया समुदाय के लोग शामिल थे. -दरबार-ए-हुसैनी में हुई मजलिस ब्रह्मपुरा स्थित दरबार-ए-हुसैनी में मजलिस का आयोजन किया. इसको खिताब मौलाना इंतसार मेंहदी ने फरमाया. उन्होंने 10 मुहर्रम को इमाम की शहादत का विस्तार से वर्णन कर लोगों को गमगीम कर दिया. उनकी बातों को सुनकर लोग जार-जार रोने लगे और मातम करने लगे. उसके बाद ताबूते इमाम हुसैन निकाला गया, जो विभिन्न मार्गों से होते हुए बड़ा इमामबाड़ा पहुंचा. वहां कमा का मातम हुआ. जुलूस में काफी लोग शामिल थे.

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