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सामा खेले गईली हम भइया अंगनवा

मुजफ्फरपुर: आस्था के महापर्व छठ की समाप्ति के साथ ही सामा चकेवा की शुरुआत हो गयी. गांव से लेकर शहरों तक लोकगीत ‘सामा खेलबई हे …’ का गायन शुरू हो गया है. शहर में भी अभी यह संस्कृति बची हुई है. इसका नजारा बुधवार को देखने मिला. हरिसभा के आसपास रहने वाली लड़कियों ने पारंपरिक […]

मुजफ्फरपुर: आस्था के महापर्व छठ की समाप्ति के साथ ही सामा चकेवा की शुरुआत हो गयी. गांव से लेकर शहरों तक लोकगीत ‘सामा खेलबई हे …’ का गायन शुरू हो गया है. शहर में भी अभी यह संस्कृति बची हुई है.

इसका नजारा बुधवार को देखने मिला. हरिसभा के आसपास रहने वाली लड़कियों ने पारंपरिक गीतों के साथ सामा-चकवा का खेल खेला. पाश्चात्य संस्कृति के माहौल में सामा-चकेवा खेल देख बुजुर्ग भी आनंदित हुए. भाई-बहनों के प्रेम का प्रतीक सामा चकवा खेल खेलने के लिए बालिकाओं ने सामा-चकेवा की मूर्तियां खरीदी.

इसके बाद लोकगीत गाते हुए खेल की परंपरा को जीवंत किया. बालिकायें सामा खेले गईली हम भईया अंगनवा हे, कनिया भौजी लेलन लुलुआए हे … गीत को समवेत स्वर में गा रही थीं. परंपरा के अनुसार इस पर्व के दौरान भाई-बहन के बीच दूरी पैदा करने वाले चुगला-चुगली को सामा खेलने के दौरान जलाने की परंपरा है. चुगला-चुगली जलाने का उद्देश्य सामाजिक बुराइयों का नाश करना है. मूर्तिकार राजीव पंडित कहते हैं कि खेल के दौरान चुगला के मुंह को जला कर नारी का अपमान का बदला लेना है. पूर्णिम को सामा चकवा की मूर्ति का विसर्जन होगा.

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