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लुप्त हो रही शहर की पहचान मट्टिी के गणेश लक्ष्मी

लुप्त हो रही शहर की पहचान मिट्टी के गणेश लक्ष्मीप्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों का बढ़ा क्रेजदो करोड़ से अधिक की मंगायी गयी फैशनेबुल मूर्तियांवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर कभी शहर की पहचान रही मिट्टी के लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां अब लोगों को नहीं लुभातीं. लोग सुंदर नक्काशी व हाथों की मेहनत से बनायी गयी मूर्तियों के […]

लुप्त हो रही शहर की पहचान मिट्टी के गणेश लक्ष्मीप्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों का बढ़ा क्रेजदो करोड़ से अधिक की मंगायी गयी फैशनेबुल मूर्तियांवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर कभी शहर की पहचान रही मिट्टी के लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां अब लोगों को नहीं लुभातीं. लोग सुंदर नक्काशी व हाथों की मेहनत से बनायी गयी मूर्तियों के बजाय प्लास्टर ऑफ पेरिस के लक्ष्मी-गणेश पसंद कर रहे हैं. नतीजा शहर में घर-घर चलने वाला यह कुटीर उद्योग समाप्त हो रहा है. उसकी जगह कारोबारी अब लखनऊ व कोलकाता में बनी फैशनेबुल लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को मंगा रहे हैं. बाजार के सूत्रों की मानें तो इस बार करीब दो करोड़ से अधिक की मूर्तियां मंगायी गयी हैं. दीपावली के मौके पर इसका कारोबार उत्तर बिहार में किया जा रहा है.बदलते ट्रेंड से बेकार हुए कारीगरशहर में पहले मिट्टी की मूर्तियों की पहचान थी. यहां से पूरे उत्तर बिहार में मिट्टी की मूर्तियों की सप्लाई होती थी. दीपावली के तीन-चार महीने पहले से मूर्तियां बनाने का काम शुरू हो जाता था. शहर में करीब तीन से चार सौ कारीगर मूर्तियां बनाते थे. मिट्टी का पका कर आवा लगाते थे. फिर मूर्तियां बना कर उसकी नक्काशी की जाती थी. लेकिन तीन-चार वर्षों के अंदर यह उद्योग समाप्त हो गया. लोग फैशनेबुल मूर्तियां ही ज्यादा पसंद करने लगे. बाजार में मिट्टी की मूर्तियों की खपत कम होने के कारण कारोबारी बाहर से मूर्तियों का व्यापार करने लगे. मूर्ति कारीगर अशोक पंडित कहते हैं कि बाजार के बदलते ट्रेंड को देखते हुए हमलोग अब बाहर से मूर्तियां मंगा कर बेचते हैं. यहां के लोकल कारीगरों के पास अब पहले जैसा काम नहीं है.

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