मुजफ्फरपुर: नगर निगम में अनियमितता की कलई परत दर परत खुल रही है. पहले वेतन-पेंशन में हेराफेरी, अब एडवांस के नाम पर खेल हुआ है. निगम के अधिकारियों ने एडवांस के नाम पर खूब पैसे बांटे. लेकिन, एडवांस पंजी में दर्ज नहीं किया गया. बिहार नगर निगम लेखा नियम 1928 के अनुसार, प्रथम एडवांस के समंजन या वसूली के बाद ही अगला एडवांस देने का प्रावधान है.
लेकिन निगम के अधिकारियों व कर्मियों ने इस नियम की तिलांजलि देते हुए एडवांस रुपये बांट दिये. इसके बाद भी, अधिकारियों व कर्मचारियों की सांठगांठ से 2.02 करोड़ रुपये एडवांस के नाम पर बांटे गये हैं. इसका खुलासा महालेखाकार की तीन दिसंबर 2013 की ऑडिट रिपोर्ट से हुआ है. यह अनियमितता वर्ष 2010-11 के बीच की गयी है.
रिपोर्ट के अनुसार, एडवांस पंजी वर्ष 2010-11 के नमूना जांच में मिला कि निदान को 20 लाख रुपये एडवांस दिया गया. यह राशि 26 फरवरी 2011 को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के नाम पर दिया गया था, लेकिन इसे एडवांस पंजी में दर्ज नहीं किया गया. महेंद्र ठाकुर एडवॉकेट का प्रारंभिक बकाया एडवांस वर्ष 2010-11 में 25 हजार रुपये दिखाया गया है, जबकि अग्रिम पंजी वर्ष 2009-10 के अनुसार अंतिम बकाया राशि 25 सौ रुपये ही है. यहां तक कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों के पास भी राशि असमायोजित पायी गयी. सेवानिवृत्त कार्यपालक अभियंता अवधेश्वर प्रसाद शाही के पास 1.60 लाख रुपये एडवांस है. इतनी राशि असमायोजित एडवांस के तौर पर बकाया थी.
इतना ही नहीं, निगम के कुछ कर्मियों को वर्ष 2010-11 में एडवांस बांटा गया, लेकिन एडवांस पंजी में बकाया के रूप में दर्ज नहीं किया गया. नंदन किशोर ओझा को 50 हजार, संतोष कुमार सिंह को 50 हजार, नूर आलम को 20 हजार, महेश चंद्र को 30 हजार, 45 हजार और सात हजार एडवांस दिया गया. इन कर्मियों को वेतन व लकड़ी खरीद के लिए एडवांस पैसे बांटे गये थे. निगम के अधिकारियों ने आगे भी इस खेल को जारी रखा. 31 मार्च 2011 को 1.98 करोड़ रुपये असमायोजित एडवांस रुपये था. महालेखाकार ने इस राशि को एडजस्ट करने या बांटे गये पैसे को वसूल करने का आदेश दिया है.