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87 साल के डॉ सीपी शाही को पुत्र ने घर से निकाला

मुजफ्फरपुर: जब छोटा था तो बड़े लाड़ प्यार से पाला था. कोई कष्ट न हो पाये, इसलिए सारे कष्ट खुद सह लिये थे. सारे गमों को झेलते हुए बड़े ही प्यार से बेटे को पढ़ाया था. पढ़कर नाम रौशन करेगा, यह तो पता था, लेकिन ऐसा करेगा, इसकी कल्पना सपनों में भी नहीं की थी. […]

मुजफ्फरपुर: जब छोटा था तो बड़े लाड़ प्यार से पाला था. कोई कष्ट न हो पाये, इसलिए सारे कष्ट खुद सह लिये थे. सारे गमों को झेलते हुए बड़े ही प्यार से बेटे को पढ़ाया था. पढ़कर नाम रौशन करेगा, यह तो पता था, लेकिन ऐसा करेगा, इसकी कल्पना सपनों में भी नहीं की थी. 87 साल की उम्र में अगर कोई बेटा किसी किसी बाप को घर से निकाल दे, तो उस पर क्या बीतेगी, उस पिता से बेहतर कोई जान नहीं सकता.
यह कहानी शहर के वरिष्ठ समाजसेवी व नागरिक मोर्चा शहीद खुदीराम बोस स्मारक समिति के संरक्षक डॉ सीपी शाही की है. बेटे का जिक्र करते ही उनकी आंखों में आंसू छलक आते हैं. उम्र ज्यादा हो चली है तो थोड़ा कम सुनते हैं. इसलिए उनसे बात करने के लिए थोड़ा तेज बोलना पड़ता है. बातों का सिलसिला शुरू करते हैं तो एक ही पंक्ति में बेटे की सारी कहानी कह जाते हैं. बोलते हैं कि अब उनके पास क्या बचा है. बुढ़ापे में बेटा बाप की लाठी होता है. अगर वही लाठी ही टूट जाये, तो बुढ़ापा कैसे बीतेगा. इसके लिए आप को भी बूढ़ा होना होगा. तब बुढ़ापे की असली हकीकत जान पायेंगे. लाखों की संपत्ति होने के बाद भी एक छोटे से कमरे में रहना उनकी मजूबरी है. संजय सिनेमा रोड के पास स्थित उपमन्यु मंंडल स्कूल के एहसान तले दो वक्त की रोटी नसीब हो जाती है. यही मेरे लिए बहुत है. इकलौता बेटा विनय कुमार शाही जब छोटा था, तो उसकी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करना मेरी आदतों में शुमार हो चुका था. बेटे की अच्छी परवरिश के लिए न जाने कितने संघर्ष किये, जिसका जिक्र वह खुद करना नहीं चाहते हैं.

बोलते हैं कि अभी जब संपत्ति मेरे नाम है तो मेरी ऐसी हालत हो गयी है, अगर उनके नाम कर दूंगा तो जो एक कमरा मिला है, उससे भी हाथ धो दूंगा. इस बीच बताया कि बहू काफी पढ़ी-लिखी है. विद्यालय का नाम बताकर कहा कि लेक्चरर हैं. अब हालात ऐसे हो गये है कि संपत्ति के लिए बेटा मुझे मारना चाहता है, जबकि मरने के बाद उसका ही सब कुछ हो जायेगा. अब तो उम्र भी आखिरी पड़ाव पर है. कभी भी धोखा दे सकती है. ये सब बताते हुए उनकी आंखें सामने उनके आसपास बैठने वाले चेहरों पर कुछ पल के लिए ठहर सी जाती हैं. इसके बाद वह बातों का सिलसिला बंद कर देते हैं.

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