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मुजफ्फरपुर : नये समीकरण में पुराने मोहरों पर दावं

अलग तरह का मुकाबला मुजफ्फरपुर मुजफ्फरपुर नगर विधानसभा नगर सीट पर 2010 में पहली बार भाजपा के सुरेश शर्मा जीते थे. इससे पहले तीन बार यह सीट विजेंद्र चौधरी जीतते रहे. इस सीट को जातीय राजनीति का अखाड़ा माना जा सकता है. लेकिन, इस बार जिस तरह की गोलबंदी चुनाव के जोर पकड़ने के साथ […]

अलग तरह का मुकाबला

मुजफ्फरपुर

मुजफ्फरपुर नगर विधानसभा नगर सीट पर 2010 में पहली बार भाजपा के सुरेश शर्मा जीते थे. इससे पहले तीन बार यह सीट विजेंद्र चौधरी जीतते रहे. इस सीट को जातीय राजनीति का अखाड़ा माना जा सकता है. लेकिन, इस बार जिस तरह की गोलबंदी चुनाव के जोर पकड़ने के साथ हो रही है. उससे साफ लग रहा है कि पिछले दो बार से इस बार का चुनाव अलग होने जा रहा है. संभावित प्रत्याशी टिकट के लिए गणित ठीक रहे हैं. सीटिंग विधायक होने के नाते भाजपा में सुरेश शर्मा का टिकट का दावा है. विजेंद्र चौधरी ने पिछला चुनाव कुढ़नी से लड़ा था, जहां से वह हार गये थे. इस बार वह पहले ही साफ कर चुके हैं कि नगर विधानसभा सीट से ही वह चुनाव लड़ेंगे, चाहे जिस दल से लड़ना पड़े. विजेंद्र अभी जदयू में हैं और लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी थे.

इन दिनों

भाजपा के पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली मुजफ्फरपुर हो चुकी है. जद यू का कार्यक्रम हर घर दस्तक चल रहा है. विजेंद्र चौधरी चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं.

नये चेहरों को मौका

मीनापुर

मीनापुर सीट का राजनीतिक समीकरण इस बार बिल्कुल अलग होगा. किसी नये प्रत्याशी को विधानसभा में जाने का माौका मिलेगा. वर्तमान विधायक चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर चुके हैं. उन्होंने जदयू से पाला बदल कर हम की हिमायत शुरू कर दी है, उनके बेटे अजय भाजपा में शामिल हो चुके हैं. वो अजय को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं. वहीं, कभी सूबे में मंत्री रहे व चार बार विधायक रहे हिंद केसरी यादव इस समय कांग्रेस में हैं. उनकी कोशिश इस सीट को महागंठबंधन में कांग्रेस के खाते में लाने की है. यहां से प्रगतिशील किसान मनोज कुमार भी जदयू के संभावित प्रत्याशी के तौर पर जोर लगा रहे हैं, जबकि राजद की ओर से मुन्ना यादव टिकट चाहते हैं. मुन्ना पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर थे. प्रत्याशियों की घोषणा के साथ तस्वीर साफ होगी.

इन दिनों

जदयू, राजद व कांग्रेस तीनों के संभावित प्रत्याशी अपने-अपने पक्ष में गोलबंदी में जुटे हैं. उधर, एनडीए में ये सीट रालोसपा को मिलने की उम्मीद है.

विधायक बागी, गणित बदला

बरुराज

राजद की यह परंपरागत सीट रही है. पिछले चुनाव में एनडीए की लहर होने के बाद भी पार्टी के टिकट पर ब्रज किशोर सिंह की जीत हुई थी, लेकिन इस बार ब्रज किशोर के रास्ते अलग हैं. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने उन्हें पार्टी से निकाले जाने की घोषणा की है. श्री सिंह एनडीए के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. राजद की ओर से भी चुनाव को लेकर तैयारी हो रही है. यहां की राजनीति में मोतीपुर चीनी मिल का मुद्दा लंबे समय से गरम रहा है. मोतीपुर को अनुमंडल बनाने की मांग भी होती रही है, लेकिन अभी तक ये पूरी नहीं हो सकी है. ऐसे में चुनावी मौसम जब शुरू होता है, तो अनुमंडल का जिन्न फिर सामने आ जाता है. ऐसे ही पुलिस अनुमंडल कार्यालय खुलने की बात हो रही थी, लेकिन कार्यालय सरैया में खुल गया. चुनाव में ये मुद्दे सभी पार्टियों के लिए चुनौती बनेंगे.

इन दिनों

पार्टियां अपना विधानसभा कार्यकर्ता सम्मेलन कर चुकी हैं. राजद की ओर से महागंठबंधन में दावेदारी की जा रही है, लेकिन अभी कुछ तय नहीं है.

कभी मंत्री नहीं बने कोई विधायक

पारू

पारू क्षेत्र से अब तक जितने भी जन प्रतिनिधि चुने गये हैं, उनमें से कोई भी अब तक प्रदेश सरकार में मंत्री नहीं बन पाया है. यह मुद्दा इस बार यहां चर्चा के केंद्र में है. संभावना है कि चुनाव प्रचार के दौरान भी प्रत्याशी इस मुद्दे को उछालें. कई ऐसे स्थानीय मुद्दे हैं, जो इस बार चुनाव में प्रमुखता से उभरेंगे. उनमें सरैया को अनुमंडल का दरजा दिलाने की मांग प्रमुख है. ऐसे ही सरैया में रेल का मुद्दा भी है, जिस पर हालांकि काम हो रहा है. वैशाली से गोरखपुर की दूरी कम करने के लिए फतेहाबाद में गंडक पर पुल बनाने की मांग भी पुरानी है. पिछले दो चुनावों से यहां से अशोक सिंह भाजपा के टिकट पर जीतते रहे हैं. इनके सामने मिथिलेश प्रसाद यादव ही रहे है, लेकिन अशोक सिंह का वोट बढ़ा है.

इन दिनों

महागंठबंधन व एनडीए के बीच ही चुनावी घमसान होगा. राजनैतिक स्थितियां बदली हैं, लेकिन होता क्या है, ये चुनाव में पता चलेगा.

स्थानीय राजनीति भारी

कुढ़नी

कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र की जनता का मिजाज अलग है. पिछले चुनाव में जबकि एनडीए (जद यू-भाजपा) के पक्ष में लहर थी, तो भी हार जीत का अंतर एक फीसदी ही रहा था. यहां से जद यू के मनोज कुशवाहा चुनाव जीते थे. यहां का एक और इतिहास रहा है, जो भी विधायक मंत्री बना, वह फिर से विधानसभा तक नहीं पहुंच पाया है. इनमें राम परीक्षण साहू और बसावन प्रसाद भगत के नाम प्रमुख हैं. बताते चलें कि केएन सहाय व साधु शरण शाही उर्फ साधू भाई जैसे व्यक्ति यहां से चुनाव लड़ और जीत चुके हैं. लेकिन बदली हुई राजनीति में जातीय समीकरण भारी पड़ा है. इसका दंश साधू भाई को ङोलना पड़ा था. लेकिन, उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया. उन्हें हरानेवाले कांग्रेस के शिवनंदन राय भी उनके कामों में मुरीद थे. महागंठबंधन के बाद समीकरण बदला है. चुनाव में इस नये समीकरण की परीक्षा होगी.

इन दिनों

स्थानीय स्तर पर समीकरण बनाने का काम हो रहा है, ताकि चुनाव में अपने मन के उम्मीदवार को जिताने में मदद मिल सके.

राजनीति पर बिजली रहेगी हावी

कांटी

कांटी की राजनीति में बिजली का मुद्दा हमेशा हावी रहा है, चाहे थर्मल स्टेशन से निकलनेवाली छाई (राख) हो या फिर थर्मल के पांच किलोमीटर के इलाके में 24 घंटे बिजली आपूर्ति का मुद्दा. थर्मल के सहारे ही यहां की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती रही है. फिलहाल चुनाव की फिजां बन चुकी है और यहां स्थानीय मुद्दे ही हावी हैं. अगर पिछले चुनावों की बात करें, तो यहां से दो बार राजद के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है, जबकि तीन बार से वर्तमान विधायक अजीत कुमार जीत रहे हैं. वह फरवरी, 2005 में पहली बार लोजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे, लेकिन सरकार नहीं बनी. 2005 में ही दुबारा चुनाव होने पर जदयू प्रत्याशी के रूप में उन्होंने जीत दर्ज की. फिलहाल राजनीतिक घटनाक्रम में वह जीतन राम मांझी के साथ चले गये. उनकी राह में लोजपा रोड़े अटका रहा है. देखना होगा कि महागंठबंधन में सीट किसके खाते में जायेगी.

इन दिनों

टिकट के दावेदारों में सबसे ज्यादा लोग कांटी में ही हैं. सभी दल अपने-अपने स्तर से जनसंपर्क चला रहे हैं. सीट और प्रत्याशियों की घोषणा का इंतजार है.

नये-पुराने में होगी लड़ाई

बोचहां (सु.)

पिछले कई चुनावों में बोचहां (सु) विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व रमई राम करते रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने राजद के मुसाफिर पासवान को हराया था. इस बार जद यू व राजद का महागंठबंधन हैं. राजद व जद यू के शासनकाल में रमई राम मंत्री रहे. वर्तमान में भी वह मंत्री हैं. हालांकि पिछले कुछ दिनों से अलग-अलग मामलों व बयानों को लेकर वह विवादों में रहे हैं. वे खुद को उपमुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करते रहे हैं. उनके खिलाफ एक मामला मानवाधिकार आयोग में भी चल रहा है. रमई राम को नयी चुनौती बेबी कुमारी से मिल रही है, जिन्होंने भाजपा से टिकट के लिए उन्होंने दावेदारी पेश कर रखी है. बोचहां इलाके की कई बुनियादी समस्याएं रही हैं. आथर घाट पुल को लेकर लंबे समय तक आंदोलन चला है, लेकिन अभी तक पुल बन कर तैयार नहीं हो पाया है.

इन दिनों

रमई को टक्कर देने के लिए इस बार भाजपा के संभावित प्रत्याशी में बेबी कुमारी हैं, जो क्षेत्र में मेहनत कर रही हैं. आगे वोटर तय करेंगे.

सरकारें बदलीं, हालात नहीं

औराई

जद यू से भाजपा में आये रामसूरत राय यहां से विधायक हैं. उन्होंने पिछले चुनाव में राजद के सुरेंद्र कुमार को हराया था. बाढ़ प्रभावित औराई क्षेत्र राजनीतिक रूप से सक्रिय रहा है. यह कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी की धरती रही है. उन्होंने भी इस विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व किया है. यहां महत्मा गांधी से लेकर राजेंद्र बाबू तक आ चुकेहैं. बाढ़ और विस्थापितों की समस्या यहां दशकों से चली आ रही है. सरकारें बदलती गयीं, लेकिन औराई क्षेत्र के हालात नहीं बदले हैं. इलाके में बांध से बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं. इनमें से कुछ का पुनर्वास हुआ है, लेकिन ज्यादातर अभी इसकी राह देख रहे हैं. बांध के पक्ष और विपक्ष का मुद्दा लगातार चलता रहा है, लेकिन इसके बीच जिंदगी भी चल रही है और बेहतरी की ओर बढ़ने की कोशिश हो रही है. इसके बीच राजनीति की धारा इनका जीवन ज्यादा बदलने में कामयाब नहीं रही है.

इन दिनों

औराई क्षेत्र में दिग्गज दावेदारों की संख्या ज्यादा है. यहां से पूर्व सांसद अजरुन राय अपनी पत्नी के लिए टिकट चाहते हैं. विधायक भी सक्रिय हैं.

रेल की राह देख रहा साहेबगंज

साहेबगंज

साहेबगंज इलाके में रेल प्रस्तावित है, लेकिन अभी तक इस इलाके के लोगों की छुक-छुक ट्रेन की सीटी सुनने की मंशा पूरी नहीं हुई है. हाजीपुर-सुगौली रेलखंड पर साहेबगंज आयेगा. इसे अब मोतीपुर से जोड़ने की मांग हो रही है. चुनाव के दौरान रेलवे का मुद्दा उठता रहा है. साथ ही इस इलाके का बड़ा क्षेत्र नक्सल व बाढ़ प्रभावित रहा है. साल में बाढ़ व सुखाड़ दोनों से ये इलाका प्रभावित रहता है.यह सीट परंपरागत समाजवादियों की रही है. यहां से नवल किशोर सिंह व शिव शरण सिंह जैसे व्यक्ति विधानसभा पहुंच चुके थे. ऐसे में बदले राजनीतिक समीकरण में साहेबगंज सीट का महत्व बढ़ा हुआ है. जद यू के राजू कुमार सिंह पिछले दो टर्म से यहां से विधायक रहे हैं. उन्होंने राजद के राम विचार राय को पराजित किया था. लेकिन, इस बार दोनों दल साथ हैं. राजू कुमार सिंह का जद यू से नाता टूट चुका है.

इन दिनों

राजू सिंह एनडीए से लड़ने की तैयारी में हैं. बदले हालात में राजू के प्रतिद्वन्द्वी रहे राम विचार राय भी हैं, जो राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं.

दलों में टिकट के कई दावेदार

सकरा (सु.)

सकरा इलाका समाजवादियों का गढ़ रहा है. यहां से कभी महेश बाबू चुनाव जीतते थे. इस बार का चुनाव नये राजनीतिक परिदृश्य में होने वाला है, क्योंकि हर दल से यहां से कई नेता टिकट के दावेदार हैं. 2010 से क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाले सुरेश चंचल एनडीए में अपना भविष्य देख रहे हैं, तो भाजपा की ओर से अजरुन राम भी अपनी दावेदारी जताने में लगे हैं. कपिलेश्वर हाजरा भी खुद को श्रेष्ठ प्रत्याशी के रूप में साबित करने में जुटे हैं. राजद के लालबाबू राय इसे अपनी परंपरागत सीट मान चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. जदयू की ओर से अनिल राम, अशोक व श्याम कल्याण की भी दावेदारी है. अनिल राम अभी प्रखंड प्रमुख हैं, जबकि श्याम कल्याण पूर्व प्रखंड प्रमुख हैं. यहां की भूमि उपजाऊ है. यहां के किसान बड़े पैमाने पर खैनी का उत्पादन करते हैं.

इन दिनों

दावेदारी के लिए विभिन्न दलों के लोग आलाकमान के चक्कर काट रहे हैं. समर्थकों के जरिये अपने राजनीतिक कद को दिखाने में भी जुटे हैं.

फिर आमने-सामने की भिडंत

गायघाट

गायघाट विधानसभा क्षेत्र में एक खास जाति के वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसी वजह से उस जाति के नेताओं की यह सीट पसंद की रही है. आनंद मोहन ने यहां से चुनाव लड़ा था, जिसमें उनकी हार हुई थी. इसके बाद से इलाके का प्रतिनिधित्व महेश्वर प्रसाद यादव करते रहे हैं, लेकिन पिछले चुनाव (2010)में भाजपा की ओर से वीणा देवी ने जीत दर्ज की. महेश्वर प्रसाद यादव को हार का सामना करना पड़ा. माना जा रहा है कि इस बार भी वो अपनी दावेदारी पेश करेंगे. दरभंगा हाइ-वे पर पड़नेवाला गायघाट इलाका बाढ़ की चपेट में हर साल आता है. बाढ़ यहां के लिए अभिशाप है. बागमती यहां हर साल तबाही मचाती है और सैकड़ों की संख्या में लोगों को बेघर कर देती है. यह इस इलाके का बड़ा चुनावी मुद्दा है. बाढ़ का स्थायी समाधान मांग है.

इन दिनों

चुनाव को लेकर हलचल है. संभावित प्रत्याशी अपने दलों के पूर्व प्रत्याशियों पर भारी पड़ने के लिए हथकंडे आजमा रहे हैं. टिकट की दौड़ है.

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