मुजफ्फरपुर: सदर अस्पताल में मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. यहां मरीजों को खांसी ठीक होने के लिए जो दवा दी जा रही है, उसकी गुणवत्ता के बारे में अस्पताल प्रबंधन को भी नहीं पता. खांसी की दवा ओबिडील सिरप देख कर ऐसा लगता है कि इसे जमीन खोद कर निकाला गया है. दवा की कई सीसी का तो ढक्कन भी नहीं है.
कुछ में दवाएं ही आधी है. इसे देखने से मरीजों की उल्टी आती है. बावजूद गांवों से चल कर आये जरूरतमंद मरीज ऐसी दवा पीने को मजबूर हैं. ऐसी दवा पीने से खांसी ठीक होती है या वे दूसरे रोग का शिकार होते हैं, यह कहा नहीं जा सकता.
राज्य स्वास्थ्य समिति ने की थी दवाओं की आपूर्ति : दवाओं की आपूर्ति अप्रैल में राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से की गयी थी. जिले को करीब 35 लाख का यह सिरप मिला था, जिसकी खपत पिछले चार महीने से विभिन्न पीएचसी व सदर अस्पताल में की जा रही है. हालांकि, दवाओं की गुणवत्ता जांच के लिए किसी ने कोई पहल नहीं की.
अधिकारियों को यही कहना है कि राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से दवाएं भेजी गयी है, इसमें वे कुछ नहीं कर सकते. फिलहाल पीएचसी सहित अस्पताल में 35 हजार सिरप बचे हुए हैं. इसकी अनुमानित कीमत करीब सात लाख से अधिक का सिरप बचा हुआ है.
शंका होने पर जांच का प्रावधान : जिला राज्य स्वास्थ्य समिति को किसी दवा की गुणवत्ता की शंका होने पर मेडिकल टीम बना कर जांच कराने का प्रावधान है. सीएस इसके लिए स्वीकृति देते हैं. इसके बाद इसे राज्य सरकार के लेबोरेट्री में भेजा जाता है. पिछले वर्ष कॉटन की गुणवत्ता के मामले में ऐसा ही हुआ था. लेबोरेट्री में जांच के बाद गड़बड़ी पाये जाने पर कॉटन समिति को वापस कर दिया गया था, लेकिन सिरप के मामले में जांच की बात नहीं आयी.
डॉक्टर विजय कुमार कहते हैं कि दवा की सीसी अगर खुली हो तो उसमें बाहर के कई जीवाणु प्रवेश कर सकते हैं. इसके अलावा हवा के
संपर्क में आने से दवा की गुणवत्ता खराब हो सकती है. दवा की सीसी पर अगर फंगस लगा हो तो इससे क्या रियेक्शन होगा, यह कहना मुश्किल है. यह लेबोरेट्री की जांच से ही पता चलेगा कि दवाएं कितनी खराब हुई है. ऐसी दवा के इस्तेमाल से मरीजों को बचना चाहिए.
दवा का निर्माण मुजफ्फरपुर के बेला में होता है. यहां ऑरनेट प्राइवेट लिमिटेड खांसी का सिरप ओबिडील का निर्माण करती है. फिलहाल जो सिरप अस्पताल से दी जा रही है, वह इसी वर्ष फरवरी की बनी हुई है. इसकी एक्सपायर तिथि जनवरी 2017 अंकित है. इसकी आपूर्ति अप्रैल में की गयी थी. यह सिरप जिला अस्पताल से लेकर सभी पीएचसी में सप्लाई की गयी. उसके बाद से ऐसी ही दवाएं मरीजों को दी जा रही है. मरीज जब ऐसी दवा लेने से इनकार करते हैं तो दवा काउंटर पर वापस सिरप ले लिया जाता है.
फंगस व आधी सीसी सिरप की मुङो जानकारी नहीं थी. गुरुवार को उसे देखता हूं. इस बाबत मुख्याल से भी बात की जायेगी. दवा को जांच के लिए लैब में भी भेजा जायेगा.
डॉ ज्ञान भूषण, सिविल सजर्न
ऐसी दवा तो नाले में फेंक देनी चाहिए
सदर अस्पताल में बुधवार को मरीजों को ऐसा ही सिरप दिया जा रहा था. पांच मरीजों ने इसे लेने से इनकार कर दिया. कुछ मरीजों ने लिया भी तो सिरप की हालत देख कर उसे फेंक दिया. जीरोमाइल के रामजनम साह ने सिरप लेने के बाद दवा काउंटर पर मौजूद फार्मासिस्ट से उसे बदलने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि सब सिरप ऐसा ही है. नहीं लेना है तो छोड़ दीजिये. रामजनम साह ने उसे ले तो लिया, लेकिन बाहर निकल कर नाले में फेंक दिया. बांके साह चौक निवासी तारकेश्वर प्रसाद को भी डॉक्टर ने खांसी का सिरप लिखा था. उन्होंने सिरप की स्थिति देखने के बाद कहा कि इसे पीना संभव नहीं है. दूसरा सिरप बाहर की दुकान से ले लेंगे. उन्होंने कहा कि ऐसी दवा को नाले में फेंक देना चाहिए.