मुजफ्फरपुर: पिता अब भी मेरी आंखों में जीवित हैं. उनकी तस्वीर मेरी नजरों से ओझल नहीं हुई है. 14 वर्ष की उम्र तक उन्होंने मेरे अंदर जो संस्कार भरे,वह मेरी धरोहर हैं. देश की जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया था. देश की सरकार याद नहीं भी करे, तो जनता उन्हें नहीं भूला सकती. […]
मुजफ्फरपुर: पिता अब भी मेरी आंखों में जीवित हैं. उनकी तस्वीर मेरी नजरों से ओझल नहीं हुई है. 14 वर्ष की उम्र तक उन्होंने मेरे अंदर जो संस्कार भरे,वह मेरी धरोहर हैं. देश की जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया था.
देश की सरकार याद नहीं भी करे, तो जनता उन्हें नहीं भूला सकती. स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उनका इतना बड़ा योगदान है कि आने वाली पीढ़ियां उन्हें देशभक्त वीर के रूप में याद करती रहेगी. यह कहना है महान स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की पुत्री बागची भारती का. पिता के स्वाभिमान व निष्ठा की एकमात्र मिशाल बागची पटना में रहती हैं. वे कहती हैं कि पिता की जयंती व पुण्यतिथि पर हमेशा उनके चित्र के सामने धूपबाती जला कर याद करती हैं, अभी वह मुंबई में हैं.
यहां भी पिता के चित्र पर माल्यापर्ण कर उन्हें नमन करेंगी. उन्होंने कहा कि ये दोनों दिन उनके लिए विशेष होता है पिता से जुड़ी स्मृतियों में वे खोयी रहती हैं़ उन्होंने कहा कि पिताजी सिर्फ मेरे नहीं तमाम भारत वासियों के दिल में बसे हैं़ जब वे 14 वर्ष की थीं तो 20 जुलाई 1965 को उनकी मृत्यु हो गयी़ पिता की मृत्यु पर वह खूब रोयी थी़ं पिता का जाना उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटना है़ भारती कहती हैं कि बचपन में पिताजी के साथ उनकी कई स्मृतियां हैं़ वे बड़े स्वाभिमानी थे. स्वामी विवेकानंद, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय व श्री अरविंदो से वे बेहद प्रभावित थ़े वे बड़े संवेदनशील थ़े.
कांपते भिखारी को दे दिया अपना कोट: भारती कहती हैं कि पिता जी बड़े भावुक थ़े देशवासियों की पीड़ा उन्हें सहन नहीं होती थी़ एक बार पटना में उन्होंने भिखारी को कांपते देख अपनी कोट उतार कर दे दी़, जबकि वे खुद ठंड से कांपते हुए घर पहुंच़े वे हमेशा मुङो कहा करते थे कि अपना जीवन दूसरों की सेवा में लगाओ़ देश की आजादी के लिए उन्होंने कभी खुद की परवाह नहीं की़ पटना आकर उन्होंने बिस्कुट फैक्ट्री खोली़ खुद साइकिल पर मैदा लेकर आते थ़े लेकिन यह फैक्ट्र नहीं चली़ मेरा बचपन भी बहुत अभाव में गुजरा़ पिता जी ने कभी समझौता नहीं किया़ उनके सानिध्य में मैंने बहुत कुछ सीखा है़ उन्हीं के आदशरें पर चल रही हूं़ वर्दमान के ओआरीगांव में पिताजी का जन्म हुआ था़ वह जमीन मैंने पश्चिम बंगाल को दान कर दिया़ सरकार उसे पर्यटन स्थल के रूप में डेवलप कर रही है़ बागची कहती हैं कि पिता जी ने जिन आदशरें को लेकर अपना जीवन सर्वस्व किया, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ है, लेकिन हमें हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है. हमारी युवा पीढ़ी देशभक्तों की भावना समझती है़.
देश आजाद हुआ तो सिगरेट कंपनी में एजेंट की नौकरी
देश की आजादी के लिए तमाम पीड़ा ङोलने वाले क्रांतिकारी देश की आजादी के बाद गुमनाम हो गये थे. भगत सिंह के साथ 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली के केंद्रीय विधानसभा में बम फेंके जाने के बाद दोनों को सजा हुई थी. इन्हें पहले लाहौर जेल में रखा गया. बाद में बटुकेश्वर दत्त को काला पानी के लिए भेज दिया गया. आजादी की खातिर 15 साल जेल की सलाखों के पीछे गुजारने वाले बटुकेश्वर दत्त को आजाद भारत में रोजगार भी मिला तो एक सिगरेट कंपनी में एजेंट का, जिससे वह पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश हो गये. बाद में उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटी का एक छोटा सा कारखाना खोला, लेकिन उसमें काफी घाटा हो गया और जल्द ही बंद हो गया. इतिहासकार सुधीर विद्यार्थी कहते हैं कि बटुकेश्वर दत्त पटने में साइकिल पर मैदे कर बोरा लेकर चलते थे. वे हमेशा जीवन से संघर्ष करते रहे. इसका खुलासा एनबीटी की किताब (बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह के सहयोगी) में भी हुआ है. उनकी पुत्री भारती भी स्वीकार करती हैं कि उनका दिन अभावों में गुजरा. वे जब 14 वर्ष की थीं, तभी पिता का निधन हो गया. बटुकेश्वर दत्त के 1964 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया. बाद में उनका इलाज एम्स में हुआ. उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनका दाह संस्कार भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया.