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बीआरए बिहार विवि. वित्तीय मामलों पर विश्वविद्यालय के अधिकारियों से मतभिन्नता, वित्त अधिकारी का इस्तीफा

मुजफ्फरपुर: बीआर बिहार विवि के वित्त अधिकारी बिनोद प्रसाद साह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. मंगलवार को उन्होंने अपना इस्तीफा सीधे राजभवन भेजा, जिसे स्वीकार कर लिया गया है. इस्तीफा के कारणों का पता नहीं चल सका है. कुलानुशासक डॉ सतीश कुमार राय ने भी इस संबंध में जानकारी से इनकार किया […]

मुजफ्फरपुर: बीआर बिहार विवि के वित्त अधिकारी बिनोद प्रसाद साह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. मंगलवार को उन्होंने अपना इस्तीफा सीधे राजभवन भेजा, जिसे स्वीकार कर लिया गया है. इस्तीफा के कारणों का पता नहीं चल सका है. कुलानुशासक डॉ सतीश कुमार राय ने भी इस संबंध में जानकारी से इनकार किया है. हालांकि चर्चा है कि विवि अधिकारियों के साथ मत भिन्नता के कारण उन्होंने इस्तीफा दिया है.
दरअसल, विवाद उस समय शुरू हुआ, जब मार्च में बीमारी के कारण कुलपति डॉ पंडित पलांडे लंबी छुट्टी पर चले गये थे. उनके अचानक छुट्टी पर चले जाने के कारण कई महत्वपूर्ण फाइलों का निपटारा लंबित हो गया. बाद में राजभवन के अधिकारियों से मौखिक सहमति लेकर तत्कालीन कुलसचिव संचिकाएं लेकर पूणो कुलपति के आवास पर गये. वित्त अधिकारी ने इस पर आपत्ति जतायी. उनका तर्क था कि छुट्टी पर रहते कुलपति का संचिकाओं पर हस्ताक्षर मान्य नहीं होगा. यही नहीं अधिकारियों के वेतन में कटौती को लेकर भी शीर्ष अधिकारियों के साथ उनकी अनबन हुई थी.
बीते दिनों फाइनेंस कमेटी में नैक की तैयारी के लिए पांच लाख रुपये एडवांस का प्रस्ताव विवि प्रशासन की ओर से रखा गया तो वित्त अधिकारी ने नियमों का हवाला दे उस पर भी अपनी आपत्ति जतायी थी.
चर्चा तो यह भी है कि लगातार विरोध को देखते हुए विवि प्रशासन ने खुद वित्त अधिकारी को हटाने की अनुशंसा राजभवन से की थी. हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. उनके अचानक इस्तीफा दे देने के कारण मंगलवार को होने वाली वित्त समिति की बैठक भी स्थगित कर दी गयी. इसमें कंप्यूटर सेक्शन में कार्यरत पंद्रह कर्मियों के भुगतान का प्रस्ताव रखा जाना था. विवि प्रशासन एक तय मासिक राशि इन कर्मियों को देना चाह रही थी. लेकिन वित्त अधिकारी की राय थी कि कर्मियों का भुगतान संविदा के आधार पर होनी चाहिए.
दीक्षांत समारोह में खाने के भुगतान पर की थी आपत्ति
और तो और मंगलवार को दीक्षांत समारोह में खाने के भुगतान पर भी उन्होंने आपत्ति जतायी थी. उनका तर्क था कि एक लाख रुपये से अधिक खर्च के लिए पहले टेंडर निकालना जरूरी है. काफी मान-मनौव्वल के बाद में जब वे नहीं मानें तो खाने के बिल में विवि प्रशासन को कटौती करनी पड़ी.

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