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लोक कलाकारों के लिए कंठहार भिखारी के गीत

भिखारी ठाकुर के गीतों से लोक कला परंपरा को आगे बढ़ा रहे लोक गायक प्रेममुजफ्फरपुर : भोजपुरी का शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर शहर के लोक कलाकारों के लिए आदर्श हैं. यहां के कई कलाकारों ने भिखारी ठाकुर के गीत व नाटक को प्रस्तुत कर देश स्तर पर उपलब्धि पायी है. भिखारी ठाकुर का […]

भिखारी ठाकुर के गीतों से लोक कला परंपरा को आगे बढ़ा रहे लोक गायक प्रेममुजफ्फरपुर : भोजपुरी का शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर शहर के लोक कलाकारों के लिए आदर्श हैं. यहां के कई कलाकारों ने भिखारी ठाकुर के गीत व नाटक को प्रस्तुत कर देश स्तर पर उपलब्धि पायी है. भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसम्बर 1887 में सारण जिले के एक छोटे से गांव कुतुबपुर (दियारा) में हुआ था. कलकत्ते में ही कल-कारखानों में बिहार से रोजी- रोटी के लिए आने वाले मजदूरों की दशा को देखा और उनके दुख-दर्द को गहराई से समझा. उनकी बिदेशिया नाटक आज भी लोक कलाकारों के लिए कंठहार है. भिखारी ठाकुर के गीत ‘हमरा बलमु जी के बड़ी-बड़ी अँखिया से, चोखे-चोखे बाड़े नयना कोर रे बटोहिया, ओठवा त बाड़े जइसे कतरल पनवा से’ गीत आज भी जिले में लोक कला की पहचान है. भिखारी ठाकुर के गीतों को प्रस्तुत करने में लोक कलाकार प्रेम रंजन सिंह ने बिहार से बाहर भी अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त की है. ये जिले में आकाशवाणी के बी हाई गे्रड के इकलौते कलाकार हैं. ये भिखारी ठाकुर की लोक कला पर रिसर्च भी कर रहे हैं. संगीत नाटक अकादमी दिल्ली के सहयेाग से बिहार म्यूजिक एंड ड्रामा की ओर से आयोजित कार्यक्रम में भिखारी ठाकुर के गीतों को प्रस्तुत कर बिहार की लोक परंपरा को आगे बढ़ाने में महत्ती भूमिका निभायी है.

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