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मुसलिम हो या गैर मुसलिम, सभी हमारे भाई

फोटो दीपकबीस रमजान पर हजरत इमाम अली की शहादत पर मजलिसहसन चक बंगरा के बारह मीनार मसजिद में जुटे सैकड़ों लोगशहादत की जिक्र पर फूट-फट कर रोया मजमा, पढ़ा गया नोहावरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर बीस रमजान की रात जगह-जगह पर हजरत इमाम अली की शहादत पर मजलिस का आयोजन किया गया. मौके पर हसन चक बंगरा […]

फोटो दीपकबीस रमजान पर हजरत इमाम अली की शहादत पर मजलिसहसन चक बंगरा के बारह मीनार मसजिद में जुटे सैकड़ों लोगशहादत की जिक्र पर फूट-फट कर रोया मजमा, पढ़ा गया नोहावरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर बीस रमजान की रात जगह-जगह पर हजरत इमाम अली की शहादत पर मजलिस का आयोजन किया गया. मौके पर हसन चक बंगरा स्थित मसजिद बारह मीनार में भी अजीमुशान मजलिस व जुलूस हैदरी का आयोजन किया गया. मजलिस को मौलाना असद यावर साहब ने खिताब फरमाया. उन्होंने कहा कि इराक में कूफा की मसजिद के अंदर सजदा में मौला अली के सिर पर जबरत इबने ने जहर में डूबी हुई तलवार मारी. इससे मौला अली की शहादत हो गयी. मौला अली शिया के पहले इमाम थे. खास बात ये है कि ये नबी रसूले खुदा के दामाद थे. उन्होंने कहा किस हजरत अली ने शासन के समय मालिक अशतर को पत्र लिख कर कहा था कि जनता के साथ भेदभाव नहीं करना है. चाहे वे मुसलिम हो या गैर मुसलिम. सभी हमारे भाई हैं. तकरीर के दौरान मौलाना ने कहा कि हजरत अली काफरमान है कि अगर किसी को नीचा या छोटा समझते हो तो दो ही बातें है. या तो तुम उस व्यक्ति को दूर से देख रहे हो या गरुर से देख रहे हो. मौलाना के इस जुमले पर हैदरी या अली के नारों से मसजिद गूंज उठी. उसके बाद मौला अली के शहादत का जैसे ही जिक्र हुआ पूरा मजमा फूट-फूट कर रोने लगा. मजलिस के बाद ताबूत निकाला गया, जिसमें लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए. लोग मातम करते हुए करबला तक गये. इस मौके पर अंजुमने हाशमिया ने अपने खास अंदाज में नोहा पढ़ा.

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