मुजफ्फरपुर. रोजेदारों की इबादत के क्या कहने. दिन भर भूखे प्यास रह कर सजदा. इफ्तार के बाद भी सजदे में कटती रात. आधी रमजान गुजर चुकी है. रोजेदार पूरी तबियत से इबादत में जुटे हैं. दिन भर इबादत के बाद भी शाम में इफ्तार करते हैं. फिर तराबी पढ़ना व नमाज पढ़ने में रात हो जाती है. उसके बाद भी रोजेदारों की आंखों में नींद नहीं. पूरी रात इबादत में ही गुजरती है.
लोग रात भर जगने के बाद सुबह सेहरी कर कुछ घंटे के लिए सोते हैं. कामकाजी लोगों का दिन भर का रुटीन चाहे जो हो, लेकिन इबादत में कही कोई कमी नहीं होती. कड़ी धूप में रोजमर्रा की डय़ूटी निभाने के बाद भी रोजेदार अल्लाह के बनाये गये नियमों के अनुसार रमजान को जी रहे हैं. इन रोजेदारों में बच्चे भी शामिल हैं. घर के बड़े लोगों के साथ ये भी दिन भर भूखे प्यासे रह कर रोजा रख रहे हैं. शाम में सबके साथ मिल कर इफ्तार करते हैं. बच्चों को भी यकीन है कि अल्लाह उनके रोजे को कबूल कर उनकी दुआओं को इनाम देगा. मौलाना मो इश्तेहाक कहते हैं कि रमजान का महीना साल भर जीने का सलीका सिखाता है. हर रोजेदार चाहता है कि रमजान कभी विदा नहीं हो. वह सालो भर रहे, जिससे उनके अंदर बुराई न आये.
नफ्स की तमाम ख्वाहिशों को छोड़ना रोजा
लफ्ज रोजा अरबी जबान से लिया गया है, जिसका मतलब होता है बचना और इस्तिलाही ऐतबार से इसकी तारीफ इस तरह की जा सकती है अजीन सुबह से अजाने मश्रिब तक हुक्मे इलाही की पैरवी करते हुए खाना-पीना छोड़ देना. यानी नफ्स की उन ख्वाहिशों को छोड़ना, जिससे रोजा की सेहत पर असर पड़ता है. रोजा एक ऐसी इबादत है कि जब प्यास के शोले भड़क रहे हो व शरबत सामने हो, भूख की आग से सारा शरीर सुलग रहा हो और बेहतरीन खानों की लजीजतरीन खुशबू ललचा रही हो तो ख्वाहिशों नफ्स की बेबाक मौजे साहिल से मिलना चाहती हों और शरीअत ने जिसे हलाल किया है उस पर भी वक्त की पाबंदी लग जाये ताकि उसे इम्तिहान नफ्स में बंदा कामयाब हो जाये.
मौलाना आसिम अली बाकरी, तन्जीमुल मकातिब, लखनऊ .