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पारिश्रमिक के नाम एमआइटी छात्रों की राशि का बंदरबांट
मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) हमेशा से अपने कार्यकलापों को लेकर चर्चा में रहा हैं. छात्रों ने मुख्यमंत्री व विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग के निदेशक से संस्थान व छात्रों के भविष्य को बचाने की गुहार लगायी गयी थी. विभाग ने संस्थान के प्राचार्य व प्राध्यापकों की कार्यशैली से क्षुब्ध होकर व्यापक पैमाने पर […]
मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) हमेशा से अपने कार्यकलापों को लेकर चर्चा में रहा हैं. छात्रों ने मुख्यमंत्री व विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग के निदेशक से संस्थान व छात्रों के भविष्य को बचाने की गुहार लगायी गयी थी.
विभाग ने संस्थान के प्राचार्य व प्राध्यापकों की कार्यशैली से क्षुब्ध होकर व्यापक पैमाने पर स्थानांतरण किया है. स्थानांतरण के बाद से ही छात्रों की ओर से लगाये गये आरोप की सच्चई भी सामने आने लगी है. अब संस्थान प्रबंधन की ओर से करोड़ों की राशि गबन का मामला खुलने लगा है.
राशि का हुआ बंदरबांट . एमआइटी में छात्रों के शैक्षणिक विकास, प्लेसमेंट सहित उनके अन्य कार्यो के लिए राशि ली जाती है, लेकिन आश्चर्य तो यह है कि संस्थान प्रबंधन इस राशि को उनके विकास के लिए खर्च न कर अन्य कार्यो में लगा रही हैं. इसका सही लेखा जोखा भी नहीं है.
इससे मामले में गड़बड़ी की आशंका और बढ़ गयी है. एमआइटी के छात्रों से ट्रेनिंग व प्लेसमेंट के लिए छात्रों से ही राशि ली जाती है. इसके लिए प्रति छात्र पांच सौ रुपये से लेकर एक हजार तक लिए गये हैं. छात्रों से वसूली गयी इस राशि से उनके प्लेसमेंट के लिए संस्थान व उधोगपतियों के बीच समन्वय बनाना, इसके लिए कमेटी का गठन करना, संस्थान में सेमिनार का आयोजन कर इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों के बीच छात्रों के कौशल व शैक्षणिक क्षमता का प्रदर्शन करना शामिल है. संस्थान ने इसके लिए छात्रों से लाखों रुपये वसूले. छात्रों से वसूले गये करीब 20 लाख रुपये का कोई लेखा- जोखा संस्थान के पास उपलब्ध नहीं है.
छात्रों के अनुसार 2003 के बाद संस्थान में प्लेसमेंट के बाद कोई कंपनी नहीं आया है. जब कोई कंपनी यहां नहीं आयी और किसी छात्र का संस्थान के प्रयास से प्लेसमेंट नहीं हुआ तो आखिर छात्रों की राशि कहां गयी.
35 वर्षो से शैडों की राशि का नहीं मिला किसी को लाभ. छात्रों व संस्थान के कई प्राध्यापकों ने दबी जुबान से कहा कि लघु उघोग विभाग द्वारा बेरोजगारों को ट्रेनिंग देकर उन्हें शिक्षित व रोजगार उपलब्ध कराने के लिए 1980 में संस्थान को करोड़ों रुपये प्राप्त हुए थे. संस्थान द्वारा इस राशि को नियमानुसार नहीं खर्च करने पर ऑडिटर ने आपत्ति भी की थी.
ऑडिटर की टिप्पणी के बाद वर्ष 1993 -94 में लघु उघोग विभाग ने राशि को लौटाने का निर्देश भी दिया था, लेकिन इस मद में पड़ी लाखों की राशि को नहीं लौटायी गयी है. संस्थान ने इस मद की राशि को कर्मचारियों, अधिकारियों के पारिश्रमिक देने के नाम पर खर्च करने की बात कह रही है.लेकिन इससे संबंधित किसी तरह का लेखा-जोखा तैयार नहीं किया गया है.
लेखा पंजी अद्यतन नहीं
पूर्ववर्ती छात्र की राशि को भी गबन करने के आरोप संस्थान प्रबंधन पर लग रहें हैं, जबकि संस्थान के प्राचार्य से लेकर अधिकांश प्राध्यापक अल्यूमनी है.
2000 में यहां पूर्ववर्ती छात्रों द्वारा चंदा देकर अल्यूमनी हाउस का निर्माण कराया गया. संस्थान की ओर से प्रत्येक छात्रों से करीब पांच सौ रुपये अल्यूमनी फंड के नाम पर लिये जाते है. छात्रों से अबतक वसूली गयी करीब 20 से 25 लाख रुपये की विवरण पंजी का संधारण नहीं किया गया है. आश्चर्य कि बात तो यह है कि 2000 से ही छात्रों से इस मद में राशि वसूली जा रही है .
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