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जनता में विश्वास पैदा करने आये थे गांधीजी : सच्चिदानंद
मुजफ्फरपुर: कोई भी बड़ी क्रांति तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि उसमें शामिल लोगों के अंदर अपना सब कुछ न्योछावर करने का विश्वास न हो. गांधी के अंदर वह विश्वास था. उनमें लोगों को निर्भिक बनाने की अद्भुत क्षमता थी. चंपारण आंदोलन की ही बात करें तो वे यहां सिर्फ अवज्ञा के लिए […]
मुजफ्फरपुर: कोई भी बड़ी क्रांति तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि उसमें शामिल लोगों के अंदर अपना सब कुछ न्योछावर करने का विश्वास न हो. गांधी के अंदर वह विश्वास था. उनमें लोगों को निर्भिक बनाने की अद्भुत क्षमता थी. चंपारण आंदोलन की ही बात करें तो वे यहां सिर्फ अवज्ञा के लिए नहीं आये थे, बल्कि वे अपने साथ के लोगों के अंदर विश्वास पैदा करने के लिए आये थे. ये बातें समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा ने कही. वे शनिवार को एलएस कॉलेज सभागार में आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे. विषय था, एलएस कॉलेज : चंपारण आंदोलन का प्रवेश द्वार.
उन्होंने कहा, जब गांधी एलएस कॉलेज आये थे तो तत्कालीन कमिश्नर ने गांधी को यहां से चले जाने को कहा, पर वे नहीं मानें. जब वे चंपारण पहुंचे तो उन पर एक बार फिर वापस जाने का दबाव डाला गया, लेकिन वे फिर भी नहीं मानें. तब उन्होंने कहा था, वह किसानों की स्थिति का अध्ययन करने आये हैं और इसके पूरा होने के बाद ही वापस जायेंगे. यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रमाण था. यही दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की अहिंसात्मक लड़ाई लड़ी और सफल रहे. ऐसे में एलएस कॉलेज को चंपारण आंदोलन का ही नहीं, स्वतंत्रता आंदोलन का प्रवेश द्वार कहा जा सकता है.
डाक टिकटों में भी दिखे महात्मा गांधी
सेमिनार के दौरान ही एलएस कॉलेज सभागार में महात्मा गांधी से जुड़ी डाक टिकटों की प्रदर्शनी भी लगायी गयी. फिलाटेली सोसाइटी की ओर से आयोजित इस प्रदर्शनी में गांधी जी के 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने, दांडी यात्र, गांधी की पहली गोरखपुर यात्र (08 फरवरी, 1922) के अलावा भारत के स्वतंत्र होने के 75 साल पूरे होने पर निकाली गयी विशेष डाक टिकट को दिखाया गया. यही नहीं, एलएस कॉलेज पर निकाली गयी डाक टिकट भी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा, इसमें एलएस कॉलेज के भवन के अलावा लंगट बाबू की तसवीर भी अंकित है.
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