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हमारी मजबूरी का फायदा उठा रहे निजी स्कूल
सरकारी स्कूलों से अभिभावकों का मोह भंग हो रहा है. हालत यह है कि शहर में मात्र 167 स्कूल पंजीकृत हैं, जबकि हजार की संख्या में निजी स्कूल चल रहे हैं. लेकिन इन निजी स्कूलों में अभिभावकों का आर्थिक शोषण भी हो रहा है. री एडमिशन के नाम हर साल अभिभावकों से दस हजार रुपये […]
सरकारी स्कूलों से अभिभावकों का मोह भंग हो रहा है. हालत यह है कि शहर में मात्र 167 स्कूल पंजीकृत हैं, जबकि हजार की संख्या में निजी स्कूल चल रहे हैं. लेकिन इन निजी स्कूलों में अभिभावकों का आर्थिक शोषण भी हो रहा है. री एडमिशन के नाम हर साल अभिभावकों से दस हजार रुपये तक वसूल किये जाते हैं.
मिसलेनियस शुल्क, जेनरेटर शुल्क आदि के नाम पर भी हजारों रुपये हर साल वसूल किये जाते हैं. स्कूल ड्रेस, टाई-बेल्ट, किताब व कॉपियां भी स्कूलों से ही खरीदनी पड़ती हैं. इन सबके बावजूद मंथली स्कूल फीस जमा करने में एक दिन की भी देरी होने पर बच्चे को असेंबली के समय सभी बच्चों के सामने प्रताड़ित किया जाता है.
मुजफ्फरपुर : स्कूल संचालक हमारी मजबूरी का फायदा उठाते हैं. वह जानते हैं कि बच्चे की पढ़ाई से कोई भी अभिभावक समझौता नहीं कर सकता है. इसी का लाभ स्कूल संचालक उठाते हैं. एक दिन स्कूल की फीस देने में देरी होती है तो बच्चों को प्रार्थना की लाइन से बाहर कर दिया जाता है और उसके साथ ऐसा व्यवहार होता है कि बच्चे सहम जाते हैं. जबकि स्कूल वाले स्कूल की फीस भी लेट फाइन के साथ लेते हैं. इतना ही नहीं, स्कूल में अमीर घरानों के बच्चों द्वारा सामान्य परिवार के बच्चों के टिफिन, ड्रेस को लेकर कमेंट होता है. इसका खराब असर बच्चों पर पड़ता है लेकिन हम मजबूर हैं. यह कहना है निजी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ा रहे अभिभावकों का.
अभिभावकों की शिकायत
दिवेश कुमार : सबसे पहले इनकम टैक्स विभाग निजी स्कूलों द्वारा वसूले जा रहे तमाम फीस की रसीद की जांच करे. सभी निजी स्कूल कई प्रकार के शुल्क अभिभावकों से लेते हैं लेकिन उसे इनकम टैक्स में शो नहीं करके टैक्स की चोरी करते हैं. वहीं स्कूलों में शिक्षकों को अधिक वेतन देकर उनके खाते से वापस तक ले लिये जाते है. पढ़ाई तो राम भरोसे है. अगर घर पर प्राइवेट ट्यूशन नहीं रखें तो आपके बच्चे का भविष्य अंधकारमय है.
कमल किशोर प्रसाद : अधिकांश निजी स्कूल में डिग्री होल्डर टीचर नहीं हैं. जिस हिसाब से स्कूल की फीस होती है, उस स्तर पर स्कूल में शिक्षकों की बहाली नहीं होती है. स्कूल में रखे जाने वाले शिक्षक किस मापदंड पर रखे जाते हैं, स्कूल वाले यह तो बताएं. ट्यूशन व स्कूल बस के अलावा जो शुल्क अभिभावकों से लिया जाता है, उसकी रसीद नहीं मिलती है. इस पर सरकार की कोई नजर नहीं है.
विभा देवी : निजी स्कूल में पढ़ाई कैसी होती है, किसी से छुपी नहीं है. ऊपर से कई तरह के शुल्क वसूले जाते हैं जिसका कोई हिसाब नहीं होता है. एक दिन अगर स्कूल में फीस जमा होने में देरी होती है तो प्रार्थना सभा में ही सैकड़ों बच्चों के सामने उसे लाइन से बाहर कर दिया जाता है. जिसका छोटे-छोटे बच्चों के दिमाग पर खराब असर पड़ता है. ऐसे में निजी स्कूल संचालकों की मनमानी पर रोक लगाने की जरूरत है.
सिवाल नाथानी : स्कूल संचालक जो आये दिन नये-नये तरीके के शुल्क अभिभावकों से वसूल रहे हैं, इस पर रोक लगे. इसके साथ ही स्कूल से ड्रेस, कॉपी, किताब आदि सामान लेने पर रोक लगनी चाहिए. जो किताब हम बाजार से खरीदते हैं, उस पर हमें कुछ प्रतिशत की छूट मिलती है. लेकिन स्कूल से किताबें लेने पर हमलोगों से प्रिंट रेट लिया जाता है. इसे निजी स्कूल की मनमानी नहीं तो क्या कहा जाये? इस पर रोक लगाने की जरूरत है.
ऋतु राज : निजी स्कूल की मनमानी को लेकर राज्य बाल संरक्षण आयोग में शिकायत कर चुकी हूं. इस दिशा में अगर आयोग की ओर से कार्रवाई नहीं होती है तो केंद्रीय आयोग में इसकी शिकायत करेंगे. स्कूली फीस में देरी पर बच्चों को स्कूल में नहीं घुसने देना, कतार में से बाहर निकाल देना, सभी बच्चों के सामने उसे डांटना- इसका बच्चे के ऊपर गलत प्रभाव पड़ता है. इस पर अविलंब रोक लगाने की जरूरत है.
सुभाष नाथानी : सभी निजी स्कूलों के फीस में बहुत अंतर है. जेनरेटर शुल्क के नाम पर प्रत्येक माह एक स्कूल हजारों रुपये लेता है. ट्रस्ट को छोड़ दें तो सभी स्कूल में हर साल फीस में बढ़ोतरी होती है. हर साल स्कूल में री एडमिशन को लेकर शुल्क वसूला जाता है. प्रत्येक माह फीस लेने के बाद भी हाफ इयरली फीस अलग से वसूल की जाती है. आखिर एक ही स्कूल में कितनी फीस दी जाये. साल में दो माह की छुट्टी होती है, उसकी फीस भी ली जाती है, क्यों?
नवीन कुमार : निजी स्कूल में सरकार के स्तर से तय कोई मानक पर नहीं काम किया जाता है. हर निजी स्कूल में उनके मालिक का अलग-अलग नियम चलता है. अगर आपको अपने बच्चे को पढ़ाना है तो उनकी शर्त का पूरा पालन करना होगा. अगर कोई अभिभावक शिकायत करे तो उसे कहा जाता है कि पढ़ाना है तो पढ़ाइये, नहीं तो जाइये. ऐसे में अभिभावक क्या करें उन्हें कुछ समझ नहीं आता है. अंत में स्कूल प्रबंधन के सामने घुटने टेकना पड़ता है.
पवन कुमार जोशी : निजी स्कूलों की फीस एक मानक के अनुरूप होना चाहिए. हर स्कूल की अलग-अलग फीस है. बड़े निजी स्कूलों को देखकर छोटे-छोटे निजी स्कूल संचालक भी कई प्रकार के शुल्क वसूलते हैं. लेकिन सुविधा के नाम पर केवल खानापूर्ति करते हैं. यह कौन सा नियम है कि स्कूल की पोशाक, कॉपी, किताब सभी स्कूल में ही लेना है. एक तरह से कहा जाये तो यह सीधे-सीधे अभिभावकों को उनकी मजबूरी के नाम पर लूटा जा रहा है.
डॉ अरविंद कुमार : स्कूल का यूनीफॉर्म साल दो साल में चेंज कर दिया जाता है, लेकिन इसकी सूचना अभिभावकों को नहीं दी जाती है. ऐसे में हर साल नया ड्रेस का अलग बोझ अभिभावकों पर पड़ता है. इसी तरह किसी प्रकार के बदलाव की सूचना स्कूल प्रबंधन द्वारा अभिभावकों को नहीं दी जाती है. इस मनमानी पर रोक लगनी चाहिए.
सुनील कुमार : स्कूल की शैक्षणिक व्यवस्था के नाम पर अभिभावकों को छला जाता है. किसी कार्यक्रम में भाग लेने को लेने कहा जाता है तो कहा जाता है कि इसमें अगर वे भाग लेते हैं तो आगे फीस में छूट होगी. लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं है. अगर कहा जाये तो इनका अपना कायदा कानून है. इस पर किसी का रोक-टोक नहीं है. आखिर क्यों इस पर रोक नहीं लगती? कब तक यह चलता रहेगा?
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