मुजफ्फरपुर: वर्तमान समय में महिला सशक्तीकरण बेहद जरूरी है. इसके आंदोलन भी चल रहे हैं. पर भारत में यह आंदोलन ज्यादा सफल नहीं है. इसका कारण यहां की महिलाओं में पाश्चात्य संस्कृति का बढ़ता प्रभाव है.
आज देश में जारी महिला सशक्तीकरण आंदोलन में शामिल अधिकांश महिलाएं खुद पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हैं. ऐसे में यह महिलाओं के वास्तविक हितों तक नहीं पहुंच सकी.
यह बातें बीआरए बिहार विवि के दर्शनशास्त्र विभाग के प्रो सरोज कुमार वर्मा ने कही. वे रविवार को अघोरिया बाजार स्थित विश्व विभूति पुस्तकालय में गांधी शांति प्रतिष्ठान की ओर से आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्त के रूप में बोल रहे थे.
व्याख्यान का विषय था ‘महिला सशक्तीकरण व यौन अपराध’.प्रो वर्मा ने कहा कि महिला सशक्तीकरण आंदोलन का मकसद महिलाओं को समाज में व्याप्त विकृतियों की जंजीर से मुक्त कराना था. पर यह जंजीर टूटने के बजाये मजबूत होती चली गयी व बाजार ने उस कैद को बहुआयामी बनाने का काम किया. उपभोक्तावाद की धारा ने स्त्री को भोग की सामग्री बना कर छोड़ दिया. उन्होंने समाज में बढ़ रहे यौनाचार की घटनाओं के लिए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को दोषी ठहराया.
उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में नैतिक मूल्यों व सदाचार के लिए कोई जगह नहीं है. यह पूरी तरह बाजार पर आधारित हो गयी है. बाजारवाद युवा वर्ग के दमित इच्छाओं को उत्प्रेरित कर लाभ उठाने में विश्वास करती है. यही उत्प्रेरण युवावर्ग में कामुकता, हिंसा व दुष्कर्म को बढ़ावा देता है. यही कारण है कि तमाम कानून होने के बावजूद ऐसी घटनाओं को रोका नहीं जा सका है.
अध्यक्षता प्रो भारती सिन्हा, संचालन अरविंद वरुण व धन्यवाद ज्ञापन कामता प्रताप ने किया. मौके पर डॉ अरुण कुमार सिंह, लक्षणदेव प्रसाद सिंह, प्रो भोजनंदन प्रसाद सिंह, विनय प्रशांत, प्रो उदय शंकर, प्रो अजीत कुमार, मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह, प्रो श्रीप्रकाश, डॉ हेमनारायण विश्वकर्मा, शाहिद कमाल, एसके प्रधान, डॉ कृष्ण मोहन, मधुमंगल ठाकुर सहित अन्य गण्यमान्य लोग मौजूद थे.