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डाकबम कांवरियों का जत्था रवाना

मुजफ्फरपुर : दूसरी सोमवारी पर बाबा को जलाभिषेक करने के लिए सैकड़ों डाक कांवरिये पहलेजा के लिए रवाना हुए. कांवरियों ने सबसे पहले बाबा की पूजा की उसके बाद कांवर यात्रा के लिए निकले. बाबा के दर्शन के लिए सुबह से ही गरीबनाथ मंदिर में कांवरियों की भीड़ लगी रही. सुबह से शाम तक डाक […]

मुजफ्फरपुर : दूसरी सोमवारी पर बाबा को जलाभिषेक करने के लिए सैकड़ों डाक कांवरिये पहलेजा के लिए रवाना हुए. कांवरियों ने सबसे पहले बाबा की पूजा की उसके बाद कांवर यात्रा के लिए निकले. बाबा के दर्शन के लिए सुबह से ही गरीबनाथ मंदिर में कांवरियों की भीड़ लगी रही. सुबह से शाम तक डाक कांवरियों का जत्था मंदिर से रवाना होता रहा.

गरीबनाथ मंदिर न्यास समिति की ओर से भी रविवार की रात कांवरियों के जलाभिषेक की व्यवस्था को दुरुस्त करने में लगी रही. जलाभिषेक के बाद कांवरियों के बाहर निकलने वाले रास्ते को ठीक किया गया. मंदिर के प्रधान पुजारी पं.विनय पाठक ने कहा कि इस बार डाक कांवरियों का जत्था पहली सोमवारी से अधिक है. गरीबनाथ मंदिर न्यास समिति पुलिस प्रशासन की चौकसी भी इस बार पहले से बढ़ा दी गयी है.
* रावण
के तप से स्थापित हुआ वैद्यनाथ लिंग

वैद्यनाथ लिंग झारखंड में स्थित है. यह 12 ज्योतिर्लिगों में एक है. यहां ज्योतिर्लिग शक्तिपीठ दोनों है. भगवान शंकर के नवें अवतार श्री वैद्यनाथ की कथा शिवभक्त रावण से जुड़ी है. एक बार राक्षसपति रावण ने कैलास पर्वत पर जाकर शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिये घोर तप किया. शीत, ताप, वर्षा अग्नि के कष्ट सहन करने पर भी जब भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए तो रावण ने अपना सिर काटकाट कर शिव लिंग पर चढ़ाना शुरू किया.

नौ सिर चढ़ाने के बाद जब दसवां सिर काटने लगा तो भगवान शिव ने प्रकट होकर वर मांगने को कहा. भगवान शिव ने उसके सभी मस्तकों को पूर्ववत् कर दिया और उसे उत्तम बल प्रदान किया. तब रावण ने विनयपूर्वक कहा, मैं आपको लंका ले जाना चाहता हूं. भगवान शिव रावण की प्रार्थना पर राजी हो गये. लेकिन रावण से कहा, तुम मुङो लंका ले जाकर श्रद्धा भक्ति से स्थापित करो और यह लिंग जहां रहेगा मैं वहीं निवास करूंगा. लेकिन ध्यान रहे कि यदि तुम कहीं बीच में इस लिंग को धरती पर रख दोगे तो यह वहीं स्थापित हो जायेगा और मैं वहीं निवास करूंगा. ऐसा कह कर भगवान अंतध्र्यान हो गये.

रावण अपनी मनोकामना की पूर्ति से बहुत खुश हुआ और शिव लिंग को लेकर लंका की ओर चल पड़ा. ईश्वर लीला के अनुसार मार्ग में उसे तीव्र लघुशंका लगी. वहां जंगल में एक गोप चरवाहा को लिंग थमा कर लघुशंका करने चला गया. काफी देर होते देख कर गोप चरवाहा लिंग के भार को संभाल नहीं सका और उसने लिंग को वहीं धरती पर रख दिया. अत: भगवान का शिवलिंग वहीं स्थिर होकर स्थापित हो गया और इसका नाम वैद्यनाथेश्वर पड़ा.

इधर दुष्टात्मा रावण के पास भगवान शिव के निवास के समाचार से देवताओं को काफी दुख हुआ. उनके आग्रह पर नारद जी रावण के पास जाकर उसकी भक्ति तपस्या की काफी प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि तुमने भगवान शिव पर विश्वास करके भूल की. अब तुम कैलाश पर्वत जाकर उसे उखाड़ डालो. तहसनहस कर दो. तभी तुम्हारे लक्ष्य की प्राप्ति होगी तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी. रावण नारद की बातों में गया. कैलास पर्वत पर जाकर उत्पात मचाना शुरू कर दिया.

भगवान शिव ने उसके अहंकार करतूतों से खिन्न होकर कहा, एक अद्भुत शक्ति शीघ्र पैदा होगी जो तुम्हारे घमंड बल को मात देगी. नारद जी अपने मंसूबे को सफल होते देख काफी खुश हुए. इसकी सूचना देवताओं को मिली तो उन्होंने राहत की सांस ली. अंत में भगवान शिव को रावण के घमंड को नाश करने के लिये राम के रूप में अवतार लेना पड़ा.

प्रस्तुति : पं.विनय पाठक

(गरीबनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी)

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