मुजफ्फरपुर: एइएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम) के प्रकोप से इस बार मृत 58 बच्चों में से 40 की मृत्यु शाम से देर रात तक हुई है. स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में बच्चों की मृत्यु का जो समय अंकित किया गया है, उससे इस बात की पुष्टि होती है.
एसकेएमसीएच में 31 बच्चों की मृत्यु हुई थी. इनमें 20 बच्चों ने शाम के बाद दम तोड़ा. केजरीवाल मातृसदन में भी 27 बच्चों की मृत्यु हुई. यहां भी 20 बच्चे देर रात ही काल का ग्रास बने. हालांकि, शाम के बाद से बच्चों की मौत के कारणों की खोज नहीं की जा सकी है. नेशनल सेंटर फॉर कंट्रोल डिजीज व सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल की टीम जांच के लिए देर रात में मौत का डाटा जरूर ले गयी है. सूत्रों की मानें तो बीमार बच्चों पर आद्र्रता का प्रभाव व उससे उत्पन्न लक्षणों को बीमारी के कारणों की खोज के लिए महत्वपूर्ण बिंदु माना जा रहा है.
18 घंटे पार कर पा ली जिंदगी
एइएस से पीड़ित होने वाले बच्चे इलाज के 18 घंटे तक डेंजर जोन में थे. इस बीमारी से पीड़ित अधिकतर बच्चों की मृत्यु इलाज के 18 घंटों के अंदर हुई थी. यह अवधि बच्चों के लिए डेंजर रही. इलाज के 18 घंटे बाद तक जो बच्चे जीवित रहे, उन्होंने मौत पर विजय पा ली. केजरीवाल अस्पताल में भरती 85 बच्चों में 27 बच्चों की जान इलाज के 18 घंटे के अंदर गयी. लेकिन जो बच्चे 18 घंटे का डेंजर अवधि पार कर गये, उन्हें नयी जिंदगी मिली.
केजरीवाल मातृसदन में कांटी की तीन वर्षीया भारती 18 घंटे जीवन से जूझती रही, लेकिन 18 घंटे के बाद वह मौत से हार गयी. हालांकि इस अवधि तक जीवित रहने के बाद किसी दूसरे बच्चे की मृत्यु नहीं हुई. अधिकतर बच्चों ने इलाज के एक से दस घंटे के अंदर ही दम तोड़ दिया. स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में बच्चों के भरती होने व उसकी मौत के दौरान की अवधि से पता चलता है कि उन्हीं बच्चों की जान बच पायी, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता 18 घंटे तक वायरस को हावी नहीं होने दिया. हालांकि, बीमारी की पहचान करने आये विशेषज्ञों ने अभी यह आंकड़ा नहीं लिया है.
बीमारी की जांच करने आये विशेषज्ञ ने बीमारी के हर पहलू का अध्ययन किया है. एक ही परिवार एक बच्चे की बीमारी से दूसरे बच्चे को बीमारी नहीं हुई. इन बातों को भी अध्ययन में शामिल किया गया है. बीमारी के कारणों की पहचान के लिए हर तरह का डाटा उन्हें मुहैया कराया गया है.
डॉ ज्ञान भूषण, सिविल सजर्न