फोटो दीपकनिराला निकेतन में महावाणी स्मरण का आयोजनवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर : आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का साहित्य संभावनाओं के नये-नये द्वार खोलता है. हम सब सौभाग्यशाली हैं कि उनका सानिध्य मिला. उक्त बातें बेला के संपादक डॉ संजय पंकज ने रविवार को निराला निकेतन में आयोजित महावाणी स्मरण में कही. डॉ विजय शंकर मिश्र ने आचार्य की गजल ‘जिन्होंने हो तुझे देखा नयन वे और होते हैं, कि बनते वंदना के बंद क्षण वे और होते हैं’ सुना कर तालियां बटोरी. सीताराम पांडेय ने कविता के माध्यम से पिता के प्रति अपनी संवेदना रखी. पंखुरी सिन्हा ने शहर की हरियाली, पक्षियों का अथाह झुंड, फूलों की क्यारी पंक्तियों से वर्तमान समय के सौंदर्य को रेखांकित किया. मीनाक्षी मीनल ने ‘मैं नहीं चाहती अपने लिए हीरों का हार’ कविता में स्त्री के अस्तित्व को उजागर किया. श्रवण कुमार ने ‘मैं जिनकी फिक्र में दिन रात लिखता हूं’ कविता सुना कर श्रमिकों का दर्द बयां किया. राजमंगल पाठक की बेवफाई कविता भी काफी सराही गयी. डॉ शारदा चरण ने ‘जीते रहे सदा मनभावन, युग-युग के रिश्ते’ गीत सुनाकर लोगों की तालियां बटोरी. इस मौके पर नंद कुमार आदित्य, उदय नारायण सिंह, बनारसी बाबू, भुवनेश शुक्ला, ललन कुमार, वीरेंद्र वीरेन की कविताएं भी सराही गयी. कार्यक्रम का संचालन नर्मदेश्वर चौधरी ने किया.
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संभावनाओं के नये द्वार खोलता है महाकवि का साहित्य
फोटो दीपकनिराला निकेतन में महावाणी स्मरण का आयोजनवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर : आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का साहित्य संभावनाओं के नये-नये द्वार खोलता है. हम सब सौभाग्यशाली हैं कि उनका सानिध्य मिला. उक्त बातें बेला के संपादक डॉ संजय पंकज ने रविवार को निराला निकेतन में आयोजित महावाणी स्मरण में कही. डॉ विजय शंकर मिश्र ने आचार्य […]
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