मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि में सत्र देरी का एक कारण ‘अबसेंट’ रिजल्ट भी हैं. इनकी संख्या हर परीक्षा में अच्छी-खासी होती है. इनके रिजल्ट सुधार की प्रक्रिया काफी जटिल है. इसमें काफी वक्त लगता है. ऐसे भी उदाहरण हैं, परीक्षा देने का सबूत होने के बावजूद पिछले दो साल से रिजल्ट में सुधार नहीं हो सका है. सुधार की प्रक्रिया में परीक्षा की गोपनीयता भंग होती ही है, गड़बड़ी की आशंका भी बनी रहती है.
परीक्षा फॉर्म भरने के बाद छात्र परीक्षा में शामिल होते हैं. परीक्षा के बाद उनकी कॉपियों की जांच भी होती है. लेकिन मार्क्स फाइल पर उनका अंक नहीं चढ़ाया जाता.
टेबुलेटिंग के दौरान टेबुलेटर भी जांच किये बगैर टीआर पर ऐसे छात्र-छात्रओं को अबसेंट (परीक्षा से अनुपस्थित) मान लेते हैं. जब परीक्षा विभाग रिजल्ट जारी करती है तो इन्हें प्रमोटेड की श्रेणी में डाल दिया जाता है. जानकारी मिलने के बाद छात्र कॉलेज से आवेदन अग्रसारित करा कर परीक्षा विभाग पहुंचता है, तो उसे परीक्षा केंद्र से मेमो (उपस्थिति पंजी की कॉपी) लाने को कहा जाता है. नियमों के तहत मेमो की कॉपी परीक्षा के बाद परीक्षा विभाग में जमा कर देने का प्रावधान है. बावजूद छात्र केंद्र पर जाकर मेमो की कॉपी लाते हैं.
कई बार इसके लिए उन्हें बिचौलियों की मदद लेनी पड़ती है. मामला यही नहीं थमता. मेमो के आधार पर स्टोर से कॉपी निकालने की जिम्मेदारी परीक्षा विभाग की होती है, लेकिन खुद छात्र-छात्राओं को ही मेमो के साथ स्टोर रू म में भेज दिया जाता है. वहां रखी लाखों कॉपियों में से उसकी कॉपी निकाली जाती है व उसे परीक्षा विभाग भेजा जाता है. तब जाकर मार्क्स फाइल व टीआर पर अंक चढ़ाये जाते हैं. आखिर में छात्र को अंक पत्र मिलता है. कई बार शरारती छात्र फर्जी मेमो के आधार पर कॉपी निकलवाने स्टोर पहुंच जाते हैं और स्टोर कर्मियों को परेशान करते हैं.