मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि के हिंदी विभाग में ‘हिंदी उपन्यास : परंपरा एवं प्रयोग’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन शनिवार को हुआ. इस अवसर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विवि, वर्धा (महाराष्ट्र) के प्रतिकुलपति डॉ चितरंजन मिश्र ने विकास के स्वरूप पर एक संदर्भ का उल्लेख करते हुए कहा कि जो बचेगा वो रचेगा कैसे, रचता तो वो है जो खपता है, बचने वाला कभी रचता नहीं. ठीक इसी तरह वाणभट्ट खपने-खपाने वाले थे.
उन्होंने ‘कादंबरी’ की रचना कर हिंदी उपन्यास की परंपरा रखी. इस विद्या की शुरुआत नवजागरण के साथ हुई. इसमें जस का तस शब्दों को रख देना उपन्यास के केंद्र का यथार्थ है. इसमें ज्यादातर स्त्रियों का यथार्थ उभर कर सामने आया. उन्होंने विषय प्रवेश के क्रम में ‘गोदान’ पर संक्षिप्त प्रकाश डाला. उन्होंने स्पष्ट किया कि तुलसी के केंद्र में ईश्वर (राम) हैं, इसलिए उन्होंने लोकप्रियता पायी, लेकिन प्रेमचंद ईश्वर को खारिज कर लोकप्रियता हासिल किये.
काशी हिंदू विवि, वाराणसी के प्राध्यपाक एवं आलोचक डॉ अवधेश प्रधान ने कहा कि हिंदी की किसी भी साहित्यिक परंपरा का ठीक-ठीक मूल्यांकन नहीं किया जा सकता. साहित्य की हर विद्या को नवजागरण और स्वतंत्रता के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. उद्घाटन कुलपति डॉ पंडित पलांडे ने किया. मौके पर कुलसचिव डॉ विवेकानंद शुक्ला ने भी विचार रखा. अध्यक्षता एवं धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष डॉ कुमकुम राय व संचालन प्रो सतीश कुमार राय ने किया. मौके पर डॉ रेवती रमण, डॉ त्रिविक्रम नारायण सिंह, डॉ कल्याण कुमार झा, डॉ शेखर शंकर मिश्र, डॉ रणवीर कुमार राजन आदि भी मौजूद थे.
विमर्श सत्र में दो उपन्यासों पर हुई चर्चा
सेमिनार के दूसरे सत्र में ‘भारतीय उपन्यास की अवधारणा और गोदान’ विषय पर विस्तृत विमर्श हुआ. इसकी अध्यक्षता प्रो. रवींद्र कुमार रवि ने किया. मुख्य वक्ता काशी हिंदू विवि, वाराणसी के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ सदानंद शाही और विवि के हिंदी विभाग की प्राध्यापिका डॉ पूनम सिन्हा. मौके पर पवन कुमार ने आलेख पाठ किया. संचालन डॉ धीरेंद्र प्रसाद राय और धन्यवाद ज्ञापन डॉ रंजना कुमारी ने किया. तीसरे सत्र में ‘हिंदी उपन्यास और त्यागपत्र’ पर हुए विमर्श की अध्यक्षता प्राध्यापक डॉ रवींद्र उपाध्याय ने किया. वहीं पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विवि के प्राध्यापक डॉ अनिल राय और बीएन मंडल विवि मधेपुरा के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ विनय कुमार चौधरी ने व्याख्यान दिया. डॉ सुनील कुमार ने आलेख पाठ, डॉ वीरेंद्रनाथ मिश्र ने संचालन और डॉ राजीव कुमार झा ने धन्यवाद ज्ञापन किया.