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बैराजों की श्रृंखला से प्रवाह खो देगी गंगा : डॉ भरत

मुजफ्फरपुर: मनुष्य प्रकृति का हिस्सा है. ऐसे में उसे पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ का अधिकार है. पर यह छेड़छाड़ पर्यावरण के प्रकृति के आधार पर होनी चाहिए, न कि उसका स्वरू प ही बिगाड़ दे. यह अत्यंत विनाशकारी होता है. यह बातें देश के जाने-माने अर्थशास्त्री व समाजसेवी डॉ भरत झुनझुनवाला ने कही. वे गुरुवार […]

मुजफ्फरपुर: मनुष्य प्रकृति का हिस्सा है. ऐसे में उसे पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ का अधिकार है. पर यह छेड़छाड़ पर्यावरण के प्रकृति के आधार पर होनी चाहिए, न कि उसका स्वरू प ही बिगाड़ दे. यह अत्यंत विनाशकारी होता है.

यह बातें देश के जाने-माने अर्थशास्त्री व समाजसेवी डॉ भरत झुनझुनवाला ने कही. वे गुरुवार को एलएस कॉलेज सभागार में ‘गंगा बेसिन : संरक्षण व चुनौतियां’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में मुख्य अतिथि के रू प में बोल रहे थे. उन्होंने कहा, केंद्र सरकार इन दिनों गंगा बेसिन में इलाहाबाद से हल्दिया तक जल मार्ग बनाने के लिए प्रत्येक 50 किलोमीटर पर 16 से 20 बैराज बनाने की योजना बना रही है. इसका मकसद बिजली संयंत्रों में कोयला पहुंचाना है.

गंगा संस्कृत के ‘ग’ शब्द से बना है. यह बहाव का संकेत है. पर बैराज बनने से गंगा का प्रवाह प्रभावित होगा. फरक्का बैराज इसका उदाहरण है. इस बैराज के माध्यम से गंगा नदी की धारा को मोड़ा जाता है, ताकि वह हुगली नदी में मिल सके.

इससे नदी के एक हिस्से से पानी लगातार निकलता रहता है, जिससे वह स्थान टापू में बदल रहा है. वहीं दूसरी ओर जिस ओर नदी की धारा मोड़ी जाती है, उस ओर मिट्टी का कटाव होता है, जिससे गांव के गांव उजड़ जाने का खतरा बना हुआ है. कुछ ऐसी ही स्थिति अमेरिका के मिसीसिप्पी नदी में भी है. वहां बैराज के कारण बन रहे टापू व मिट्टी के कटाव को देखते हुए वहां की सरकार पीछे हट रही है.

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